भूपेंद्र सिंह : बमुश्किल 1% ब्राह्मण होंगे लेकिन इन बड़बोले बाबाओं के चक्कर में बाक़ी लोग पूरे ब्राह्मण समाज को निशाने पर लेते हैं

जैसे ही कोई बाबा “वर्णाश्रम धर्म” बचाने की बात करे अथवा हिंदू धर्म को वर्णाश्रम कहे तो सावधान हो जाइए, वह सम्पूर्ण हिंदू समाज को मूर्ख बनाकर अपना पैर पुजवाना चाहता है एवं अपने कथा और दक्षिणा व्यापार के धंधे को आगे बढ़ाने के लिए संपूर्ण हिंदू समाज में फूंट डलवाकर, बहुसंख्यक आम ब्राह्मणों को गाली दिलवाना चाहता है।
ये बाबा कभी नहीं बता पायेंगे कि पिछले दो तीन हज़ार साल के इतिहास में हिंदुस्तान में कभी आश्रम धर्म का पालन हुआ भी है या नहीं? ये लोग ख़ुद बुढ़ापे तक, मरने के क़रीब आकर भी कथा व्यापार में लगे रहते हैं, कोई भी मोहमाया छोड़कर वनगमन नहीं करता लेकिन वर्ण श्रेष्ठता के सिद्धांत को बखूबी मानते हैं।

कुल मिलाकर यदि इन्हीं के सिद्धांत वर्णाश्रम को भी हिंदू मान लिया जाय तो ये ख़ुद आधे ही हिंदू हैं। आज के समय में कथा एवं दक्षिणा व्यापार में बमुश्किल 1% ब्राह्मण होंगे लेकिन इन बड़बोले बाबाओं के चक्कर में बाक़ी लोग पूरे ब्राह्मण समाज को निशाने पर लेते हैं। ब्राह्मणों में भी एक मूर्ख वर्ग है जिसको लगता है कि शायद इन बाबाओं के कथा के नातें उनका सम्मान बरक़रार रहे। ऐसा कुछ नहीं रहने वाला। जिस दिन भारत में श्री नरसिंह राव जी ने उदारीकरण लाया था उसी दिन तय हो गया था कि हिंदू समाज इन बेकार के बंधनों से बाहर निकलेगा और आर्थिक उन्नति की तरफ़ जाएगा। आज बड़ा से बड़ा ब्राह्मण भी प्रत्येक जाति बिरादरी के उस व्यक्ति के साथ बैठना चाहता है जिससे चार पैसे का फ़ायदा हो। आज के समय में सम्मान और सामीप्य पाने का एक मात्र कारण है “अर्थ”। सभी लोगों को उसकी तरफ़ ध्यान लगाना चाहिए। हाँ, हिंदू होने के नाते उस अर्थ को प्राप्त करने का तरीका और शर्त दूसरे को कष्ट देना बस नहीं होना चाहिए।
वैसे भी हमारे मूल संस्कृति चाहे वो आर्यावर्त की हो अथवा आर्ययान (ईरान) की, कहीं भी मूल ग्रंथों में वर्ण व्यवस्था हमारे आंतरिक विभाजन के लिए नहीं लिखी है। मैंने पूर्व में भी कहा है कि ऋग्वेद के पूरे दस हज़ार ऋचाओं में कहीं भी “वर्णाश्रम” शब्द नहीं आया है। कहीं भी वर्ण शब्द का प्रयोग अपने बंटवारे के लिए नहीं लिखा है। उसी प्रकार ईरान के आर्य भी बहुत बात में राजा जमशेद के काल में वर्ण विभाजन की तरफ़ पहुँचे। यह उनके पास भी हज़ारों वर्ष बाद लागू हुई। इसलिए वर्णाश्रम नामक फ्रॉड से निकलिये। सभी हिंदू को अपना मानिए, अपने बराबर मानिए। ऊंच नीच के मेंटल डिसऑर्डर से मुक्ति के लिए प्रयासरत रहिए। भले बड़ी ही गंभीर मानसिक बीमारी है ये, लेकिन आपको मुक्ति मिल सकती है।

Veerchhattisgarh

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