सुरेंद्र किशोर : पटेल का उपेक्षित परिवार बनाम आज की राजनीति में परिवारवाद की महामारी

सरदार पटेल के जन्म दिन पर
( 31 अक्तूबर, 1875–15 दिसंबर 1950)
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पटेल का उपेक्षित परिवार बनाम आज
की राजनीति में परिवारवाद की महामारी

-दीपोत्सव पर समस्त सुधिजनों को समृद्धि से पूर्ण सदा स्वस्थ जीवन की आत्मिक-हार्दिक शुभकामनाएं💐💐💐💐💐


देश के उप प्रधान मंत्री रहे सरदार वल्लभ भाई पटेल की दोनों संतान देश सेवा और समाज सेवा की भावना से ओतप्रोत थीं।
वे योग्य पिता की योग्य संतानें थीं।उनको लेकर कभी कोई विवाद भी नहीं सुना गया।
सरदार पटेल के पुत्र डाह्या भाई पटेल को उच्च कोटि का सांसद माना गया और उनकी पुत्री मनीबेन पटेल को स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेवी।


मनी बेन पटेल ने अपने पिता के निजी सहायक के रुप में भी काम किया।
सरदार पटेल के निधन के बाद मनीबेन पटेल बंबई चली गईं।वहां उन्होंने सरदार पटेल ट्रस्ट और अन्य दातव्य संस्थाओं के लिए काम किया।
वह कई शैक्षणिक संस्थाओं से भी जुड़ी रहीं।
उन्होंने अपने पिता के जीवन और स्वतंत्रता आंदोलन पर अपने संस्मरण लिखे।
तब तक महाराष्ट्र प्रदेश का गठन नहीं हुआ था और गुजरात भी बंबई राज्य का ही हिस्सा था।
सरदार पटेल के निधन के समय कांग्रेस पार्टी के कोष के पैसे सरदार पटेल के पास थे।
मनी बेन ने पैसे से भरे बक्से को ज्यों का त्यों जवाहरलाल नेहरु को ले जाकर सौंप दिया।
मनीबेन का जन्म 3 अप्रैल, 1903 को हुआ था।उनका निधन सन 1988 में हुआ।
मनीबेन सन 1918 में ही गांधी जी के प्रभाव में आ गई थीं।
वह अहमदाबाद स्थित गांधी आश्रम में काम करने लगीं।
मनी बेन पटेल ने असहयोग आंदोलन और नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया।


वह लंबे समय तक जेल में रहीं।
वह 1942 से 1945 तक यरवदा जेल में रहीं।
मनी बेन पटेल 1930 में अपने पिता सरदार पटेल की निजी सहायक बन गईं।
यह भूमिका उन्होंने 1950 में उनके निधन तक निभाई।
इस बीच मनीबेन ने डायरी लिखी।
डायरी में ईमानदारी से सच्ची बातंे लिखी गई हैं।
बाद में वह पुस्तक के रुप में छपी ।
उसका नाम है ‘‘इनसाइड स्टोरी आॅफ सरदार पटेल: द डायरी आॅफ मनी बेन पटेल।’’
डायरी में 1936 से 1950 तक का विवरण है।
निजी सहायक की भूमिका निभाते समय मनी बेन को कुछ अप्रिय काम भी करना पड़ता था।
वह इस बात का ध्यान रखती थीं कि किसी के साथ अनावश्यक बातचीत के कारण सरदार पटेल थक न जाएं।
जब भी मनी बेन ऐसा महसूस करती थीं तो वह अपने पिता को अपनी घड़ी दिखा कर सतर्क कर देती थीं।
मनी बेन सरदार के साथ ट्रेन में सफर भी करती थीं।मंत्री बनने से पहले सरदार साहब रेलगाड़ी की द्वितीय श्रेणी में सफर करते थे।पर मनी बेन तीसरे दर्जे में।पर बाद में जब सरदार पटेल पर पत्र व्यवहार का बोझ बढ़ गया तो मनीबेन भी उनके साथ सेकेंड क्लास में ही सफर करने लगीं।
सरदार पटेल के निधन के बाद मनी बेन पटेल सन 1952 और 1980 के बीच कई बार सांसद रहीं।
वह संसदीय कार्यवाहियों में सक्रिय रहती थीं।
वह मेहसाना से लोक सभा की सदस्य चुनी गई थीं।वह गुजरात कांग्रेस कमेटी की उपाध्यक्ष भी थीं।
डाह्या भाई पटेल मनी बेन से छोटे थे।
उनका जन्म 28 नवंबर 1905 को हुआ था।
11 अगस्त 1973 को उनका निधन हो गया।
सरदार पटेल परिवार के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण ही रहा कि बड़ी बहन से पहले छोटे भाई का ही निधन हो गया।
डाह्या भाई पटेल अपनी बहन मनी बेन पटेल से करीब ढाई साल छोटे थे।
उन्होंने गुजरात विद्यापीठ में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की।देश भर में फैली विद्यापीठें स्वतंत्रता आंदोलन का ही हिस्सा मानी जाती थीं।
उन दिनों स्वतत्रंता सेनानी अपनी संतानों को भरसक इन्हीं विद्यापीठों में शिक्षित करते थे।
तब आज की तरह नहीं था कि सरकारी स्कूलों में सरकार में शामिल मंत्रियों और अफसरों की संतानें नहीं पढ़तीं।
डाह्या भाई पटेल पहले ओरियंटल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में काम करते थे।
पर बाद में उन्होंने अपनी मर्जी से सरकारी नौकरी छोड़ दी और राजनीति में शामिल हो गये।
पहले वे कांग्रेस में थे।
पर,1960 में वह स्वतंत्र पार्टी में शामिल हो गये।
देश के पूर्व गवर्नर जनरल राज गोपालाचारी ने 1960 में स्वतंत्र पार्टी बनाई थी।
सन 1958 में डाह्या भाई पहली बार राज्य सभा के लिए चुने गये थे। सन 1964 और 1970 में भी वे राज्य सभा के लिए चुने गये थे।
इसी बीच वह स्वतंत्र पार्टी में शामिल हो गये।
डाह्या भाई दक्षिण पूर्व एशिया की राजनीति के विशेषज्ञ माने जाते थे।लोग उन्हें उच्च कोटि के सांसद कहते थे।उनके निधन पर राष्ट्रपति वी.वी.गिरि ने डाह्याभाई पटेल को देशभक्त और कुशल सांसद कहा था।
सरदार वल्लभ भाई पटेल की संतानों के राजनीतिक करियर को देखने से लगता है कि इन लोगों को उस तरह के अवसर नहीं मिले जिस तरह के अवसर इंदिरा गांधी को मिले जबकि योग्यता-क्षमता और सार्वजनिक कामों में योगदान की दृष्टि से वे कमतर नहीं थे,बल्कि बेहतर थे।
याद रहे जवाहर लाल नेहरु के जीवन काल में ही इंदिरा गांधी 1958 में कांग्रेस कार्य समिति की सदस्य बन चुकी थीं।एक साल बाद 1959 में इंदिरा गांधी तो कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गईं।
इंदिरा गांधी को जब कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का प्रयास शुरू हुआ तो कांग्रेस के वरीय नेता महावीर त्यागी ने प्रधान मंत्री को पत्र लिखकर उस प्रयास का विरोध किया।उसके जवाब में जवाहरलाल नेहरू ने त्यांगी जी को लिखा कि इंदु का अध्यक्ष बनना मुफीद होगा।
दोनों चिट्ठयों की फोटो काॅपीज त्यागी जी की संस्मरणात्मक पुस्तक में प्रकाशित हैं।
इंदिरा गांधी 1964 में केंद्र में मंत्री और 1966 में प्रधान मंत्री बनी थीं।
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31 अक्तूबर 24

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