नितिन त्रिपाठी : कभी कभार मोबाइल पर खेल लिया करो..
कुछ वर्षों पूर्व मार्क ज़करबर्ग ने जब मेटा का वर्चुअल रियाल्टी विजन रखा था, उसकी प्रेजेंटेशन देने गये थे यह तबकी फ़ोटो है. इस फ़ोटो में सभी दर्शक ज़ोम्बी जैसे हेडसेट पहने हुवे हैं. प्रश्न उठे थे कि क्या भविष्य में यह संभव होगा. ज़्यादातर नॉन साइंस कम्युनिटी या तो भय मिश्रित आश्चर्य में थी या उनका उत्तर न में था. वैसे ही जैसे अस्सी के दसक में जब जेफ़ ह्वाकिंस ने विजन दिया था कि हाथ में कंप्यूटर जैसी टच स्क्रीन डिवाइस होगी जिससे लोग ईमेल, फैक्स, गाना, फ़ोन सब कर पायेंगे. ज़्यादातर लोगों का मानना था यह साइंस फिक्शन है. नब्बे के दसक में उनकी डिवाइसेज फेल भी हुईं. कंपनी पाम दिवालिया घोषित हो गई. पर बस कुछ सालों में ऐपल का आईफ़ोन आया.
मार्क ज़करबर्ग ने भविष्य सोचा है मेटा का मेटावर्स. एक वर्चुअल रियाल्टी की दुनिया. खरबों खर्च कर पहला वर्जन आया और लाखों भी नहीं कमा पाया. फेल. वैसे वह कोई पहली बार उन्होंने नहीं सोचा है. जब से कंप्यूटर आये, रिसर्च हुई – सारे साइंटिस्ट्स को पता है एक दिन वर्चुअल रियाल्टी का होगा. बस वह दिन कब आएगा – दो साल में हो सकता है, दस साल लग सकते हैं और पचीस भी.
वजह बस इतनी है कि वर्चुअल रियाल्टी हार्डवेयर लिमिटेशन से मात खाती है. जिस दिन हाई रेजोल्यूशन बहुत हल्के वाइजर्स जो पहनने में कूल लगें, शानदार सेंसर हों, देखने में ओड न लगें बस उसी दिन उसी महीने वर्चुअल रियाल्टी विश्व पर राज करेगी.
यह वैसे ही है जैसे एआई सन साठ का कॉन्सेप्ट है. आज जो आप देख रहे हैं ज़्यादातर एल्गो साठ सत्तर के दसक की हैं. हम लोगों ने नब्बे में इंजीनियरिंग की है – उस समय हार्ड डिस्क न होती थी, इंटरनेट न था, पर पढ़ाई में एआई सब्जेक्ट था. बस यह था कि एआई के इम्प्लीमेंटेशन के लिये जो हार्डवेयर चाहिये वह उपलब्ध न था. पिछले पंद्रह सालों में यह हार्डवेयर रीजनेबल रेट पर उपलब्ध हुआ और दुनिया एआई मई है. सेम केस रोबोट का है. अस्सी के दसक में भी माना जाता था कि रोबोट युक्त भविष्य होगा. पर चालीस साल लगे ह्यूमैनॉइड रोबेट बनाने में. पता था कैसा होगा कैसे बनेगा – बस हार्डवेयर उपलब्ध नहीं था.
तो लेडीज़ एंड जेंटलमैन जैसे आप इन दिनों मोबाइल पर आँख गड़ा कर रखते हो आपकी अगली पीढ़ी ऐसे ही हेडसेट चौबीस घंटे पहने दिखेगी. जैसे आप अपने बच्चों को टोंकते हो कि दिन भर मोबाइल पर लगे रहते हो, कभी तो बाहर खेल आओ. वह अपने बच्चों को टोकेंगे कि क्या दिन भर वाइजर पहने रहते हो, कभी कभार मोबाइल पर खेल लिया करो.