राजीव मिश्रा : गरीबी और अभाव की दवा व्यवसाय है. सरकारी नौकरी नहीं..

भईया जी की तबीयत खराब थी.. कमजोरी थी, चक्कर आते थे, कभी दस्त की शिकायत तो कभी कब्ज की… शहर भर के डॉक्टर से दिखा कर थक चुके थे..कहीं बाहर जाकर दिखाने की सोच रहे थे.

तभी एक नया डॉक्टर आया शहर में. बहुत ही काबिल, बहुत ही नामी. सुना था बहुत से सीरियस मरीजों को उसने दो खुराक में ठीक कर दिया था. तो भईया जी भी पहुंच गए, नंबर लगाया, लाइन लग के दिखाया. डॉक्टर साहब ने पुरानी सारी पर्चियां देखीं, सारे रिपोर्ट देखे और फिर दवाई लिख दी.

Veerchhattisgarh

आज तीन महीना हो गया. भईया जी ठीके नहीं हो रहे, कुछ फायदा ही नहीं हुआ. बोलते हैं डॉक्टर बेकार है.. झूठे इतना नाम है.

– का हुआ भईया जी? दवाई खाए?
– दवाइया तो खाइए रहे हैं… ऊ तो दू साल से खा रहे हैं?
– अरे, डॉक्टर को तो दिखाए तीने महीना हुआ है… दवाई कौन वाला खा रहे हैं?
– अरे वही खा रहे हैं, पुरानका!
– काहे! नया डॉक्टर का दवाई काहे नहीं खाए?
– अरे ई वाला हमको सूट नहीं करता है, गरमी हो जाता है इससे. बिहारी पेट है, इसमें गुजराती दवाई नहीं ना पचेगा…

हमने गुजराती डॉक्टर को बुलाया था क्योंकि उसने गुजरात में गरीबी का इलाज किया था, तंदरुस्त बना दिया था. पर उसकी दवाई आपको खानी नहीं है. आप चाहते हैं कि वह आपको मनपसंद दवाई दे…दे देगा! एक बीकोसुल का कैप्सूल, एक ताकत का सिरप लिख देगा. जो बोलिएगा लिख देगा, डॉक्टर झक मार के लिख ही देता है. पर जिस बीमारी की जो दवा है, खानी तो वही पड़ेगी.

गरीबी और अभाव की दवा व्यवसाय है. सरकारी नौकरी नहीं है. गुजराती व्यवसाय करके समृद्ध हुआ है, मोदी ने उसको सिर्फ व्यवसाय के लिए उपयुक्त सुरक्षित सरकार दी है. आपको सरकारी नौकरी से समृद्धि चाहिए..

सरकारी नौकरी से समृद्धि नहीं आती, आता है शुद्ध भ्रष्टाचार और कामचोरी. यह सरकारी नौकरी की परिभाषा में निहित है..लोगों को चाहिए ही इसीलिए. अगर समृद्धि आती है तो जिन हजार दो हजार को नौकरी मिलती है उसके घर में आती है, बाकी के लाखों लोगों को मिलती है सिर्फ गरीबी, निराशा और असंतोष. सचिवालय में घूस लेने वाला एक हाथ बढ़ जाता है, स्कूल में स्वेटर बुनने वाली और पोलियो ड्रॉप पिलाने जनगणना कराने वाली एक बहन जी बढ़ जाती हैं. आपको जो मिलता है वह आपकी उत्पादकता और उपयोगिता से अधिक मिलता है तभी तो आप यहीं आने के लिए मरे जा रहे हैं. तो जो आपको मिल रहा है वह एक उत्पादक व्यक्ति से उसके श्रम का फल छीन कर ही मिलेगा. ऊपर से आप दफ्तर में बैठ कर उसी व्यवसायी से घूस मांगोगे, वर्दी पहन कर उसी पर धौंस जमाओगे जिसकी उत्पादकता से आपका रोजगार है. यह कैसे संपन्नता का फॉर्मूला हो गया आखिर?

संपन्नता और समृद्धि का इलाज पूंजीवाद का इंजेक्शन है.. थोड़ा दुखता है लेकिन इफेक्टिव है. मेहनत लगती है, परिणाम, सफलता और असफलता…आपकी योग्यता और उद्यम पर निर्भर होता है… समाजवाद की मीठी गोली से इलाज नहीं होगा. सिर्फ गरीबी आयेगी. डॉक्टर बदलने से काम नहीं चलता, दवाई भी बदलनी होगी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *