…मुश्किल है।
. जब किसी शय में लगता नही दिल है
दुनिया से मन भर जाए तो जीना मुश्किल है
किसी की आँखों में वफ़ा तलाशते हो क्या ?
रिश्तें में चाहत रख उम्मीद पालते हो क्या ?
मायूसी ही मायूसी आख़िरश हासिल है ….
दुनिया से मन भर जाए तो जीना मुश्किल है
“गुजरे” को भूलना नही सीख पाए क्या ?
लगाम ए खुशी गैर हाथ में थमा आए क्या ?
ऐसे तो फिर खुद ही सुकून के कातिल है
मन भर जाए तो जीना मुश्किल है
दिन रात के फेरों को चुप देखते हुए
मन का जो ना हुआ उसको सोचते हुए
नेकी कर ना भूले फिर तो साँसे बोझिल है
मन भर जाए तो जीना मुश्किल है
सीने के कटोरे में खारे पानी भर कर
आँसू को बहने का ना रास्ता देकर
ठहरे पानी से हुई रूह चोटिल है
लबालब भर जाए तो जीना मुश्किल है
अकेले रहने से डरते हो क्या ?
आसानी से भरोसा करते हो क्या ?
अपनों को आजमाने का गर अब पल है
जान लोगे असलियत तो जीना मुश्किल है
आँखों के आगे का मंजर फ़िजूल लगे तो ,
खुद का होना ,न होना फिजूल लगे तो
उसके होकर भी, नही अपनों में शामिल है
मन भर जाए तो जीना मुश्किल है
रिश्तों में हक़ की बात करने से डरते हो ?
झूठ उसका उसी को बताने से डरते हो ?
लोगों से ऊब कर हो गए गर बेदिल है
इस उदास डूब में जीना बड़ा मुश्किल है
भीतर जब सूना जंगल बियाबान हो जाए तो
जिंदगी बेमकसद है मालूम हो जाए तो
ये दुनिया फ़क़त अजनबी एक महफ़िल है
मन भर जाए तो जीना मुश्किल है
Madhu_ writer at film writer’s association Mumbai