दोनों हाथ काट दिए..गीता हाथ में लेकर फांसी चढ़े

भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र 19 साल की उम्र में देश की आजादी के लिये फाँसी पर चढ़ गये। कुछ इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि खुदीराम से पूर्व 17 जनवरी 1872 को 68 कूकाओं के सार्वजनिक नरसंहार के समय 13 वर्ष का एक बालक भी शहीद हुआ था। उपलब्ध तथ्यानुसार उस बालक को, जिसका नम्बर 50 वाँ था, जैसे ही तोप के सामने लाया गया, उसने लुधियाना के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर कावन की दाढी कसकर पकड ली और तब तक नहीं छोडी जब तक उसके दोनों हाथ तलवार से काट नहीं दिये गये बाद में उसे उसी तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया था।

छात्र जीवन से ही आजादी की लगन मन में लिये  खुदीराम ने देश पर अत्याचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प में अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए पहला बम फेंका और मात्र 19 वें वर्ष में हाथ में भगवद गीता लेकर हँसते – हँसते फाँसी के फन्दे पर चढकर इतिहास रच दिया।