भूपेंद्र सिंह : रामायण, राम का अयन है और इसी अयन शब्द का प्रयोग सूर्य के…में उत्तरायण और दक्षिणायन के लिए होता है

दसों दिशाओं के रथ पर आरूढ़ होकर भगवान सूर्य इस संसार में अपनी रश्मि लेकर उपस्थित होते हैं। जो दस दिशाएँ अपने रथ पर आरूढ़ करके उनको लेकर आती हैं वहीं दशरथ हैं और जो सूर्य उपस्थित होकर इस संसार को उज्ज्वल करते हैं, वहीं राम हैं।


जो भूमि में बीज को बोता है वहीं इस संसार का जनक है क्यूँकि अन्न ही जीवन को संचालित करने के सबसे श्रेष्ठ माध्यम हैं। जिस हल से वह जनक ज़मीन में बीज को जीवन संचालित करने के लिए रोपित करता हैं, उसी हल की फाल को सीता कहते हैं अर्थात् वह हल ही सीता हैं। शुभ लक्षणों वाला, इस भूमि का जलवायु ही लक्ष्मण है और भरण पोषण करने वाला कृषक भरता होने से भरत है। ज़मीन में डाले बीज के खोने पर जो हवाएँ चलकर उसको उससे बाहर निकलती हैं वहीं वायु अन्नोतपादन के लिए सूर्य अर्थात् रश्मियुक्त राम के सबसे निकटतम सहयोगी बनती हैं।
उस सूर्य को जब दसों दिशायें अपने मुख में निगल लेती हैं तो वह दशमुख दिशाएँ ही रावण हैं। समुद्र में डूबता सूर्य ही सूर्य के अंत का सबसे सुंदर दृश्य उत्पन्न करता है। अतः समुद्र में तरंगों से उत्पन्न ध्वनि रोर करने से भी रावण है। वहीं रावण अर्थात् समुद्र जब बादल बनाता है और बिजली कड़काता है तो वह रोमांचित करने वाली बिजली जो अपने मार्ग में पड़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति को निगल सकती है, वह उसका पुत्र इंद्रजीत मेघ का नाद करने से मेघनाद है। समुद्र में रमते रमते धरती के छोर पर पहुँचकर वर्ष में आधे आधे साल दिन और रात गुज़ारने वाले ध्रुवीय देशों का प्रतिनिधि आधे आधे साल सोने जागने वाला कुंभकर्ण है।

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रामायण, राम का अयन है और इसी अयन शब्द का प्रयोग सूर्य के संबंध में उत्तरायण और दक्षिणायन शब्द में करते हैं। इक्ष्वाकु का अर्थ है ईख अथवा गन्ना। आज भी इसके किसान प्रत्येक जाति, संप्रदाय में पूरे अवध क्षेत्र में मौजूद हैं और प्रत्येक जाति संप्रदाय का व्यक्ति गन्ने के साथ पूजा का विशिष्ट त्योहार मनाता है। वहीं ईख के कृषक विभिन्न जाति कुल के रूप में फैलकर इस महान देश की रचना किए इक्ष्वाकु हैं।
जय श्री राम॥

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