भूपेंद्र सिंह : मुख्यमंत्री ने छुआछूत को दिमाग़ी कोढ़ बताकर..
सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन के समय करपात्री महाराज को आमंत्रण भेजा गया था तब उन्होंने सरदार पटेल को पलटकर चिट्ठी लिखा था कि मैं मंदिर के उद्घाटन में अवश्य आ जाऊँगा लेकिन क्या मंदिर प्रशासन इस बात का ध्यान रखेगा कि शास्त्रों के अनुसार ही लोगों को मंदिर में प्रवेश मिलेगा? इसका स्पष्ट अर्थ यह था कि करपात्री महाराज चाहते थे कि शूद्रों को मंदिर परिसर में गलती से भी प्रवेश न मिले। सरदार पटेल उनकी इस हिंदू द्रोह और जातिगत अहंकार की तुच्छता से भरी इस बात का जवाब नहीं दिया। आठ सौ साल बाद के ध्वंस के बाद निर्मित हुए इस मंदिर को लेकर जहां सारा भारत उत्साहित था वहीं एक समूह शूद्रों के मंदिर प्रवेश से चिंतित था।
इसके पूर्व वह ऋषिकेश में पंडित मदन मोहन मालवीय जी के साथ श्री जयदयाल गोयनका जी की मध्यस्थता में शास्त्रार्थ कर चुके थे। जिसमें उनका कहना था कि मदन मोहन मालवीय जी शूद्रों को काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाकर महाभयानक पाप कर रहे हैं। वैश्यों बनियों को वह इस शर्त पर बीएचयू के शिक्षा देने के पक्ष में थे कि वह ब्राह्मणों क्षत्रियों के पीछे अथवा नीचे बैठकर शिक्षा ग्रहण करें। मदन मोहन मालवीय जी इसके ख़िलाफ़ थे पर करपात्री जी का कहना था कि शूद्रों को पढ़ाने की मूर्खता मालवीय जी को नहीं करनी चाहिए। ख़ैर न मालवीय जी को मानना था और न ही माने।
तब तक महान समाजसेवी बाबा राघवदादा के नेतृत्व में काशी विश्वनाथ मंदिर में शूद्रों के प्रवेश का मामला गरम हो गया। बाबा राघवदास ने कहा कि सभी जाति के हिंदू बराबर हैं और उन्हें मंदिर में प्रवेश मिलना ही चाहिये। करपात्री महाराज ने इसके ख़िलाफ़ कोर्ट से स्टे ले लिया। लेकिन अचानक संपूर्णानंद जी जो तत्कालीन मुख्यमंत्री थे, ने छुआछूत को दिमाग़ी कोढ़ बताकर छूआछूत निवारक अधिनियम लागू कर दिया। जिसके बाद शूद्रों ने बाबा राघवदास के नेतृत्व में काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश किया। इससे भड़के करपात्री महाराज ने वर्तमान में भी विराजित शिवलिंग को बुरा भला कहा और कहा कि शंकर भगवान इससे निकल चले गये हैं। जब तक शूद्र आते रहेंगे तब तक वह शिवलिंग में दोबारा नहीं आयेंगे। अंततः उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर – व्यक्तिगत का निर्माण कराया।
अब सदियों के संघर्षों के बाद राम मंदिर बनकर तैयार हुआ है। करपात्री महाराज के प्रथम शिष्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की मृत्यु हो चुकी है लेकिन दूसरे शिष्य अभी जीवित हैं। उनके दूसरे शिष्य निश्चलानंद सरस्वती ने कल घोषणा की है कि “नरेंद्र मोदी भगवान राम के मूर्ति को स्पर्श करेंगे और मैं वहाँ देखता रहूँगा??”
मैं यह कह सकता हूँ कि निश्चलानंद में तमाम पोलिटिकल करेक्टनेस होने के बावजूद करपात्री महाराज की शिक्षा उन में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। जो काम करपात्री जी ने आज से 70 वर्ष पूर्व सोमनाथ मंदिर के निर्माण के समय किया था वहीं काम निश्चलानंद ने आज राम मंदिर निर्माण के वक्त किया है। रत्ती भर आगे नहीं बढ़े हैं।