डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : फटी जींस.. करवा चौथ और अमरता
फिल्म जगत और दूरदर्शन ने हमारे समाज में स्त्री और पुरुष दोनों को बहुत कुछ सिखाया। पति-पत्नी और सास-बहू के झगड़ों के नये-नये तरीके सिखाया, जींस फाड़ के पहनना सिखाया, पति-पत्नी के बीच छल, कपट और धोखा सिखाया, ब्वाय और गर्ल फ्रेंड के नाम पर माॅल, पार्क से लेकर मदिरालय, देवालय और तीर्थों तक में स्वच्छंद आलिंगन और चुम्बन सिखाया। यह सब सिखाते-सिखाते उसने यदि करवा चौथ भी सिखा दिया तो क्या बुरा किया?
यदि रात को दो बजे ब्वाय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड के नाम पर खुली सड़क पर विचरण करने पर आपको आपत्ति नहीं है तो स्वेच्छा से किसी के व्रत करने और अपने घर की छत पर चन्द्र दर्शन और चलनी में अपने पति का मुख देखने पर क्यों प्रश्न खड़ा हो रहा है? जैसे उनकी स्वतंत्रता का अधिकार है वैसे ही इनकी भी स्वतंत्रता का अधिकार है।
करवा चौथ पर अनेक प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं, क्या करवा चौथ का कोई शास्त्रीय उद्धरण है, करवा चौथ का प्रचलन कैसे हुआ, क्या करवा चौथ का प्रचलन फिल्म जगत द्वारा किया गया, आदि-आदि।
चतुर्थी या चौथ के पूजन की परम्परा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। कहीं बहुला चौथ, कहीं करवा चौथ, कहीं तिल चौथ ऐसे अनेक चौथ व्रतों का विधान है।
ऐसा नहीं है कि करवा चौथ से किसी के पति अमर हो जाएंगे। यह उन्हें भी पता है कि ऐसा होने वाला नहीं है। फिर भी यह उनकी सद्भावना है। भले ही उनके पति की मृत्यु एक न एक दिन सुनिश्चित है, लेकिन यह भावना करना की हमारे पति सदैव अमर रहें यह एक सांस्कृतिक भाव है। इस भाव को खड़ा करने में लाखों वर्ष लगे हैं।
भारतीय परम्परा में पति-पत्नी का सम्बंध अद्वितीय है, किसी अन्य संस्कृति में जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह केवल पारस्परिक काम-भोग पर अवलम्बित नहीं है, बल्कि परस्पर के समर्पण पर अवलम्बित है। पति पत्नी के मान-सम्मान, सुख और सुविधा की चिन्ता करता है तो पत्नी भी एनकेन प्रकारेण अपने समर्पण की भावना को अभिव्यक्त करना चाहती है।
यह अलग बात है कि आज से कुछ वर्ष पूर्व करवा चौथ का न तो यह राष्ट्रव्यापी स्वरूप था और न ही पद्धति, लेकिन फिल्मों के माध्यम से जब भारतीय नारी ने अनेक क्रियाकलापों का दर्शन किया तो उसे उसमें से करवा चौथ जैसे व्रत आदि अपनी भावना के अनुकूल लगे। अनेक स्त्रियों ने जींस फाड़ के पहनने के स्थान पर अपनी भावना को व्यक्त करने के लिए करवा चौथ को अपना लिया।
विषय किसी क्रिया-कर्म के शास्त्रीय और अशास्त्रीय होने का नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि उसकी भावना क्या है और कैसी है। भगवान ने स्वयं कहा है-
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति|
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:||
जो भक्त भक्तिभाव से मुझे पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पित करता है, उस पवित्र मन व भक्तिभाव से अर्पण की भेंट को मैं स्वीकार करता हूं। यही शास्त्र का सत्य है।
साभार – डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह