नई शिक्षा नीति बच्चों में व्यावहारिकता और कौशल बढ़ाने में कारगर : संतोष पांडे
(नई शिक्षा नीति को लेकर प्रस्तुत है शिक्षा के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके संतोष पांडे (graduated Chemistry and Biology, MBA 2005 Allahabad) 2012 से शहर के प्रतिष्ठित DDM school के प्रबंधन में बतौर मुख्य प्रशासनिक अधिकारी 2020 तक अपनी सेवाएं देतें रहें..उनके विचार।)
यह मोदी सरकार के एक के बाद एक बड़े फैसले लेने तथा कोरोना की विभीषका के बीच आयी 21वीं सदी की पहली शिक्षा नीति है और यह 34 साल पुराने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की जगह लेगी। शिक्षा क्षेत्र से जुड़े होने के नातें मैं मानता हूँ कि इस नीति को धरातल पर लाने में अभी कई तरह की समस्याओं का सामना करना होगा।
आधारभूत संसाधनो की कमी और प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापकों की कमी अभी इतनी जल्दी ये बदलाव नहीं आने देगी। फिर भी शुरुआत हो चुकी है। मानव संसाधन मंत्रालय का नाम भी बदला गया है और अब इसे शिक्षा मंत्रालय के परन्तु रूप में जाना जायेगा नाम बदलने मात्र से यह काम आसान तो नहीं किन्तु मोदी सरकार के इरादे यूँही छोड़ देने के तो नहीं लगते। अगले एक दो माह तक तो स्कूल खुलने के आसार तो दिखाई नहीं देते किन्तु बड़े बदलाव के लिए यही सही समय है, जब प्राइमरी स्तर पर कार्य किये जा सकते हैं।
नई शिक्षा नीति में 10+2 के फार्मेट को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। अभी तक हमारे देश में स्कूली पाठ्यक्रम 10+2 के हिसाब से चलता है लेकिन अब ये 5+3+ 3+ 4 के हिसाब से होगा। इसका मतलब है कि प्राइमरी से दूसरी कक्षा तक एक हिस्सा, फिर तीसरी से पांचवीं तक दुसरा हिस्सा, छठी से आठवीं तक तीसरा हिस्सा और नौवी से 12 तक आखिरी हिस्सा होगा।
पहले स्टेज में तीन साल बच्चे प्री-स्कूलिंग शिक्षा लेंगे। फिर अगले दो साल कक्षा एक एवं दो में बच्चे स्कूल में पढ़ेंगे। इन पांच सालों की पढ़ाई के लिए एक नया पाठ्यक्रम तैयार होगा। मोटे तौर पर एक्टिविटी आधारित शिक्षण पर ध्यान रहेगा। इसमें तीन से आठ साल तक की आयु के बच्चे रखे जायेंगे। इस प्रकार पढ़ाई के पहले पांच साल का चरण पूरा होगा। दूसरे स्टेज में कक्षा तीन से पांच तक की पढ़ाई होगी। इस दौरान प्रयोगों के जरिए बच्चों को विज्ञान, गणित, कला आदि की पढ़ाई कराई जाएगी। आठ से 11 साल तक की उम के बच्चों को इसमें कवर किया जाएगा।नई नीति के तहत कक्षा तीन, पांच एवं आठवीं में भी परीक्षाएं होगीं जबकि 10वीं एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं बदले स्वरूप में जारी रहेंगी।
बच्चों की रिपोर्ट कार्ड में बदलाव होगा। उनका तीन स्तर पर आकलन किया जाएग। एक स्वयं छात्र करेगा ,दूसरा सहपाठी और तीसरा उसका शिक्षक। नेशनल एसेसमेंट सेंटर-परख बनाया जाएगा जो बच्चों के सीखने की क्षमता का समय-समय पर परीक्षण करेगा।
प्री स्कूल जो अभी बच्चो के मनोरंजन केंद्र के नाम से रजिस्टर होते थे। अब स्कूल की परिभाषा में आ जायेंगे। सरकार का कहना है की बुनियादी ढांचों के विकास के साथ साथ नए केंद्र खोले जायेंगे सभी को जोड़ने का प्रयास होगा। परामर्शदाता,प्रशिक्षक भी इस क्रम में जोड़े जायेंगे, जिससे स्किल डेवलपमेंट और संख्यात्मक ज्ञान की दिशा में हमारे कदम बढ़ेंगे। शुरू से ही रोजगार परक कार्यक्रमों से भी जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। पुरानी व्यवस्था जिसे पुरानी सरकारें ढो रही थी, जिनमे हम सिर्फ कार्यालय बाबू जैसे पदों को सुशोभित करने के लिए पीढ़ियां पैदा कर रहे थे, उनसे छुटकारा मिलेगा।
बच्चो को अब केवल पुराने ढर्रे से निकल कर नयी व्यवस्था की तरफ बढ़ना है, जिसमे वे काबिल इंसान बन सकें। इन सुधारों में नंबर गेम से भी छुटकारा मिलने जा रहा है,जिसके कारण आये दिन बच्चों के डिप्रेशन में जाने, आत्महत्या करने की प्रवित्ति बढ़ने के उदाहरण सामने आ रहे थे। बच्चो के साथ-साथ अभिभावकों पर भी एक प्रकार का दवाब बना रहता था। प्रबंधन में रहने के कारण जब भी अभिभावकों से मैं बात करता था तो लगभग हर अभिभावक शिक्षा की पुरानी लार्ड मैकाले व्यवस्था से परेशान नजर आता था। बच्चा सिर्फ सर्टिफिकेट लेने और अभिभावक सिर्फ महंगी फीस देने तक ही सीमित रह गया था। सरकारों में अध्यापकों को पढ़ाने के अलावा सभी सरकारी कार्यों में साल भर व्यस्त रखने का एक तंत्र विकसित हो गया था। सो अध्यापक वही करे जो सरकार कराये की नीति पर आके पढ़ना पढ़ाना भूल ही गया था। इस नीति में अन्य कामों में निर्भरता कम किये जाने के आसार हैं जो अध्यापकों को उनका मूल कार्य करने की दिशा में अनुकूलता बढ़ाएंगे। निजी स्कूलों में कम वेतन देकर ऐसे बिना प्रशिक्षण अध्यापक रखे गए हैं जिन्हे पता ही नहीं है कि पढ़ाना क्या होता है? कम पैसे में इतना ही मिलेगा वाला ऐटिटूड अध्यापको में देखा जा रहा है। बिना झिझक मैं ये कहने को बाध्य हूँ की 80 प्रतिशत अध्यापक ऐसे ही गैर प्रशिक्षित हैं जो पढ़ाना नहीं जानते चाहे वो सरकारी या निजी स्कूल हो।
नई नीति अब बहुत कुछ बदल देने की क्षमता रखती है। इस 21वीं सदी की नयी नीति बच्चो में व्याहारिक और कौशल बढ़ाने वाली नीति साबित होगी, जिससे समग्र ज्ञान , चिंतन की कला अनुभव इत्यादि विकसित होंगे जो आगे के जीवन को गति देने में पर्याप्त कुशल होंगे। बच्चो,अध्यापकों और अभिभावकों सबके पास विकल्प होंगे चुनने के।
जो एक बहुत बड़ी बात है, नयी नीति में जो सबसे अच्छी बात मुझे लगी है और आप सब भी सहमत होंगे की शिक्षा का माध्यम प्राइमरी स्तर तक कम से कम अपनी मातृ भाषा या क्षेत्रीय भाषा में होगी यह बड़ा परिवर्तन है। किसी पर कोई खास भाषा थोपा नहीं जायेगा। स्वतंत्र होंगे सभी अपनी भाषा चुनने के लिए।संस्कृत और संस्कृति दोनों का ध्यान रखा है। इस नीति में ऐसी पृष्ठभूमि तैयार की जाएगी जिससे आपके बच्चों को सीखने का अवसर मिल सके। नई नीति परीक्षा में रटने की प्रव्रित्ति को खत्म करने वाली होंगी जिससे मानसिक विचारों को तेज करने में सहायता मिलेगी। शिक्षा पहले की तरह लाभ के लिए नहीं बल्कि व्यावहारिक होगी। ये बदलाव यूँ ही नहीं आया है ढाई लाख ग्राम पंचायतों, 6600 ब्लॉकों,6000 यूएलबी .676 जिलों से प्राप्त लगभग 2 लाख सुझावों का अध्ययन करके इस नीति को विकसित करने का काम किया गया हैं।
अध्यापकों की भर्ती,पदोन्नति योग्यता आधारित होगी। जिसकी बजह से क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिलेंगे क्योंकि अध्यापक भी इस रेस में बने रहने के लिए खुद को अपग्रेड करते रहेंगे और भी बहुत सारी परिकल्पनाएं हैं जो बेहतर तथा उम्मीदों से भरी हैं और मेरे विचार से प्री स्कूल से प्राइमरी स्तर तक का बदलाव नींव है अगले आने वाली पीढ़ियों तक।सदा परिवर्तन होता रहेगा और परिवर्तन की उम्मीद भी जारी रहेगी।
आइये नयी शिक्षा नीति का स्वागत करें। 2020 ये इतिहास में दर्ज होने वाला साल है।ऑनलाइन शिक्षा प्रदयोगिकी का इस्तेमाल ,डिजिटल प्लेटफॉर्म,लोकल स्थानीय भाषा ,प्रगति, कैरियर में सुधार, जीवन स्तर में सुधार, अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा पहुंचने के आसार सभी कुछ मुझे दिखाई दे रहे हैं। आइए इस मार्ग को प्रशस्त करें।
