कौशल सिखौला : लोकसभा चुनाव.. तैयारी 2024 नहीं बल्कि 2029 की

इतना चीखने चिल्लाने का क्या फायदा ?
अविश्वास प्रस्ताव गिरना था , गिर गया । विपक्ष द्वारा यह अविश्वास प्रस्ताव जबरिया लाया गया था , मणिपुर मणिपुर करते हुए बिना तैयारियों के लाया गया था । इतनी कम तैयारियां कि जब सुनने की बारी आई तब विपक्ष बहिर्गमन कर गया।

अपने ग्रुप्स में शेयर कीजिए।

मणिपुर पर पीएम बहुत लंबा बोले , विपक्ष मौजूद होता तो जवाब मिलते । अफसोस की बात है कि विपक्ष प्रस्ताव तो लाया पर सोनिया और राहुल जैसे बड़े नेता तीन दिनों की बहस में कुछ ही घंटे सदन में बैठे । यदि वे देश की बागडोर संभालना चाहते हैं तो अभिमान छोड़कर उन्हें पूरे समय सदन में बैठना चाहिए थी । जहां तक नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी का सवाल है वे इतने कमजोर और बचकाना साबित होंगे , सोचा नहीं गया था।

Veerchhattisgarh

चलिए मणिपुर मणिपुर का प्रकरण चर्चाओं से खत्म हुआ और विश्वास अविश्वास का दौर भी खत्म ?
महीनेभर से यही चल रहा था !
पहले से अनुमान था कि एनडीए की ओर से इतने प्रभावशाली नेताओं के बोल लेने के बाद प्रधानमंत्री के लिए बोलने को कुछ नया शेष नहीं रह जाएगा !
लेकिन पीएम ने काफी लंबा भाषण दिया जो भले बीच में उबाऊ हो गया था किंतु बाद में मणिपुर पर विपक्ष की धज्जियां उधेड़ दी । बाद में पीएम मणिपुर पर बोले ही नहीं , विपक्ष की तमाम भ्रांतियों को भी धो डाला।

हम मानते हैं कि जो विपक्ष छब्बीस दलों का गठबंधन बनाकर आया है , उसे भी जनता के बीच जाकर यह सोचने का अधिकार है कि अगली बार वह सत्ता में आएगा । जनता किसे लाएगी यह जनता पर छोड़ दीजिए , मंसूबे आप भी पालिए , वे भी पाल रहे हैं । छब्बीस दलों ने बेशक इंडिया बना लिया हो लेकिन धैर्य नाम की कोई चीज उनके पास नहीं है । विपक्ष में इतना भी धैर्य नहीं कि पीएम का पूरा भाषण ही सुन लें ? विपक्ष राहुल गांधी का वह भाषण सुनने को तो तैयार था जिसमें आधा समय वे अपनी भारत जोड़ो यात्रा का बखान करते रहे , लेकिन पीएम को रोजाना संसद में लाने की मांग करने वाले विपक्षी दल उस समय भाग खड़े हुए , जब जवाब सुनने का समय आया ?

एक बाद साफ कर दें कि इस तरह तो विपक्ष 2024 में मोदी को मात नहीं दे पाएगा । आपने 80 दिनों तक आसमान सिर पर उठा रखा था । जब सुनने की बारी आई तो ऐसे खिसक लिए कि वोटिंग तक में भाग लेने की हिम्मत न जुटाई ? इसमें सबसे बड़ी दोषी कांग्रेस है । सोनिया गांधी हैं , राहुल गांधी हैं और अधीर रंजन हैं । क्या बात है कि आप बचकाना भाषण देने वाले राहुल गांधी को सुनने को तैयार हो लेकिन रोजाना पीएम पीएम करने के बावजूद पीएम को सुनना नहीं चाहते ?

देश की जनता को इतना भी नादान न समझिए कि वह राहुल गांधी को पीएम की कुर्सी पर बैठा देगी । विपक्ष जानता था कि अविश्वास प्रस्ताव जीतने के लिए उसके पास नंबर्स नहीं हैं । लेकिन कांग्रेस की जिद अविश्वास ले आई । खैर ! जो हुआ सो हुआ । एक बात अच्छी तरह समझ लीजिए कि वर्तमान हालात में विपक्ष की दाल गलने वाली नहीं । थोड़ा हो वक्त बाकी है और ज्यादा गंभीर होना है । खासकर राहुल गांधी को । यकीन मानिए , कितना भी इंडिया बना लें , गंभीरता धारण नहीं की तो निश्चित तौर पर तैयारी 2024 के बजाय 2029 की करने पड़ेगी ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *