कौशल सिखौला : गुरु धारण न करने वाले इन्हें पूजे..

बलिहारी गुरु आपनों गोविंद दियो बताय
गुरुओं के भी गुरु अनादि शंकर

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भारतीय संस्कृति में गुरु की महिमा अपार है । शास्त्र कहते हैं कि सदगुरु मिल जाएं तो सर्वस्व मिल जाता है । तमाम वेद पुराणों का लेखन करने वाले महर्षि वेदव्यास की स्मृति में गुरु पूजा का पर्व आज श्रद्धापूर्वक मनाया जा रहा है । शहर शहर गुरुजनों की पूजा होगी और व्यासजी का जन्मोत्सव मनाया जाएगा । राजा दक्ष को दिया वचन निभाने के लिए भगवान आशुतोष इसी दिन एक मास के लिए कनखल आ जाएंगे और दक्षेश्वर बनकर विराजमान होंगे । पूर्णिमा से ही गंगाजल की महायात्रा के लिए शिवभक्त कांवड़ियों का आगमन शुरू हो जाएगा ।

Veerchhattisgarh
-लेखक

गुरु भक्ति की महिमा आदि अनादि ऋषि मुनियों ने बार बार गाई है । सच कहें तो पहली बार ऋषि मुनियों के आश्रमों में चलने वाले गुरुकुलों से गुरुज्ञान और गुरुजन पूजा की परंपरा प्रारंभ हुई । शास्त्रों के अनुसार यह पर्व आरंभ में प्राचीन सप्तऋषियों के आश्रमों से शुरू हुआ था । भारद्वाज , गौतम , जमदग्नि , कश्यप , अत्री, वशिष्ठ और विश्वामित्र के गुरुकुलों में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन विद्यार्थी संसार का ज्ञान कराने वाले गुरुओं को यथा शक्ति भावांजलि दिया करते थे ।

गुरु दक्षिणा देकर अपने कर्तव्य पथ पर रवाना हो जाते थे । यह दिन तमाम वेद शास्त्रों का ज्ञान कराने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म दिवस भी है । कालांतर में इसी दिन भगवान बुद्ध और महावीर की पूजा उनके अनुयाई करने लगे । धीरे धीरे गुरु पूजा व्यास पूजा के रूप में मठ मंदिरों , अखाड़ों , आश्रमों एवं शिक्षण संस्थाओं में पहुंच गई । यज्ञोपवीत पहनाकर जिस कुल गुरु ने पहला गुरुमंत्र दिया , उसकी वार्षिक पूजा भी इसी दिन की जाती है । गुरु पूजा के लिए भक्तजन तीर्थों पर तो जाते ही हैं , ग्राम पुरोहितों को भी पूजा जाता है ।

भगवान शंकर इस ब्रह्मांड और जगत के अनादि गुरु हैं । गुरु की महिमा का गान उनके पुत्र गणेश और कार्तिकेय ने किया । शिव पुराण एवम स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णन है कि अपनी सवारी मूषक पर सवार गणेश को शिव ने जब अपनी परिक्रमा कर प्रथम पूज्य देव के पद पर आसीन किया , तब गणेश एवम अन्य देवताओं ने शिव को प्रथम गुरुपद पर आसीन कर आषाढ़ पूर्णिमा के दिन उनकी पूजा की थी ।

तभी से गुरु पूजा शिवलोक में हो रही है । अपने ससुर राजा दक्ष को दिया वचन निभाने के लिए शिव गुरु पूर्णिमा के दिन कनखल आते हैं और पूरे श्रावण मास में दक्षेश्वर बनकर विराजमान रहते है । उनके प्रतिरूप देश भर के शिवालयों में साकार हो उठते हैं । इसीलिए करोड़ों शिवभक्त पूरे सावन भोले भंडारी का जलाभिषेक पूजा के रूप में करते हैं ।

शास्त्रीय मान्यता है कि जिसने कभी गुरु धारण न किया हो वह माता पिता को पूजे । स्त्री के लिए पति को भी गुरु बताया गया है । शिव और हनुमान को पूजे । तीनों अजन्मा अनादि देव ब्रह्मा , विष्णु और महेश को भी आदि गुरु माना गया है । कुलगुरु और कुल पुरोहित को भी गुरु रूप में पूजा जा सकता है । गुरु वह प्राणी है जो सदा देता है । शिष्य वह को सदा लेता है । समस्त गुरुजनों के पवित्र चरणों में प्रणाम ।

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