सर्वेश तिवारी श्रीमुख : श्रीकृष्ण ने आक्रमण करने पर ही युद्ध किया लेकिन…

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा किये गए युद्धों के बारे में पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि उन्होंने अधिकांश युद्ध तब किया, जब किसी ने उनपर आक्रमण किया था। उन्होंने कभी भी स्वयं आगे बढ़ कर किसी पर युद्ध थोपने का प्रयास नहीं किया था। शायद यही कारण है कि सभ्यता उन्हें शान्तिदूत के रूप में स्मरण रखती है।

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पर रुकिये! एक युद्ध उन्होंने स्वयं आगे बढ़ कर किया था, और वह युद्ध था दैत्य नरकासुर के विरुद्ध। नरकासुर पर श्रीकृष्ण का कोप इतना अधिक था कि जब उन्हें ज्ञात हुआ कि उसका वध किसी स्त्री के हाथों ही सम्भव है, तो वे स्वयं अपनी पत्नी देवी सत्यभामा को युद्धभूमि में ले गए, पर उसका वध कर के ही रुके।
जानते हैं ऐसा क्यों हुआ? नरकासुर ने ऐसा क्या अपराध किया था कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सामान्य व्यवहार के विपरीत जा कर उसके राज्य पर आक्रमण किया? नरकासुर का अपराध यह था कि वह बालिकाओं पर अत्याचार करता था। उसने असँख्य कुमारियों का अपहरण किया था।
बल या छल से किसी कन्या की इच्छा के विपरीत उनका अपहरण करना और उनसे जबरन राक्षस विवाह करना एक ऐसा अपराध है जिसके लिए कभी क्षमा नहीं मिल सकती। ऐसे दुराचारियों का वध होना ही न्याय होता है। यही भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा है।
नरकासुर का भगवान श्रीकृष्ण से कोई सीधा बैर नहीं था। उसने उनका कुछ अहित नहीं किया था। पर उस अत्याचारी के अंत के लिए उन्होंने कोई कारण ढूंढने की आवश्यकता नहीं समझी। इसे उन्होंने अपना सामाजिक कर्तव्य माना और निकल पड़े।
अब प्रश्न यह है कि भगवान श्रीकृष्ण को पूजने वाला समाज उनसे निर्णय लेना कब सीखेगा? हाथ में कलावा और गले में रुद्राक्ष पहन, गलत पहचान के साथ हिन्दू बालिकाओं को छल से फँसाने निकले ये ट्रेंड आतंकी नरकासुर के ही कलियुगी स्वरूप हैं। कृष्ण के भक्त ऐसे आतंकियों को पत्थर मारना कब सीखेंगे?
लड़कियां यदि फँस जाती हैं तो जीवन भर घुट घुट कर मरती हैं। कुछ तो दो चार वर्ष तक बलात्कार की पीड़ा भोगने के बाद काट कर फेंक दी जाती हैं। और जो नहीं फँसती उन्हें राह चलते चाकुओं से गोद कर मार दिया जाता है। और दुर्भाग्य यह कि भारतीय लोकतंत्र के यशश्वी वोटर चाकू मारते देखते हैं और आगे बढ़ कर निकल जाते हैं। और वही चुपचाप निकल जाने वाले कायरों की फौज इधर उधर कहती मिल जाती है कि लड़की इसी लायक थी, अच्छा हुआ जो मर गयी…
एक लड़की जो केवल इसलिए मार दी जाती है कि वह किसी राक्षस के जाल में फँसना नहीं चाहती, क्या उसकी हत्या जायज है? अपनी कायरता छुपाने के लिए कितने अधम तर्क गढ़ेंगे लोग?
इस आतंक के विरुद्ध सोशल मीडिया में होने वाली चर्चा अभी पूरी नहीं है। यह सच है कि अब भी टीन एज की अधिकांश बच्चियों को इस आतंक के बारे में किसी ने बताया नहीं होता है। और यदि दो लोग बताने वाले होते हैं तो दर्जनों यह कहने वाले भी होते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होता, यह सब प्रोपगेंडा है। फिर वे कैसे बचेंगी?
साक्षी और साक्षी जैसी अन्य लड़कियों की हत्या पर हल्ला होना ही चाहिये। तबतक होना चाहिये, जबतक हर लड़की यह जान न जाय कि उसकी ओर बढ़ने वाला हर विधर्मी नरकासुर ही है। तभी हल निकलेगा। इस शहरी हो चुके समाज से श्रीकृष्ण की तरह आक्रमण की आशा तो नहीं ही है मुझे…

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

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