नए संसद भवन का नाम मंगल पांडे या वीर सावरकर के नाम पर कर केंद्र सरकार करेगी जनभावनाओं का सम्मान…??

विश्व में भारत एवं भारतीय लोकतंत्र का गौरव के बढ़ते सम्मान के बीच भारत में लोकतंत्र के इतिहास की एक महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक घटना का बहिष्कार करते कर मोदी विरोध में अंधे हो चुके विपक्षी दलों ने भारतीय लोकतांत्रिक उजालों पर कालिख पोतने का प्रयास किया है।

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ये एक पुराना live vdo है जिसमें डेंगुर नाला में तेलयुक्त अथाह केमिकल छोड़कर नदी को बांझ करने के साथ ही शहरवासियों को किस प्रकार का विषैला पानी निगम के नल कनेक्शन के माध्यम से पिलाया जा रहा है, इस VDO को देखकर आप दहल जाएंगे कि भविष्य में जिन घरों में निगम के नल कनेक्शनों के माध्यम से पानी जा रहा है, उनका पूरा परिवार एक साथ किस प्रकार की गंभीर बीमारियों से जूझने वाला है।
यह संकट मात्र एक नदी का नहीं बल्कि पूरे शहर का संकट है।
रात के अंधेरे में और क्या-क्या इसमें अर्पित किया जाता होगा, यह पर्यावरण विभाग कोरबा को देखना चाहिए।
बुद्धिजीवियों से इस पर प्रतिक्रिया की अपेक्षा कोमा में जा रही जीवनदायिनी-जीवनधारा को है।

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दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे ऐतिहासिक दिवस को यादगार बनाने के स्थान पर विपक्ष संकीर्ण, बिखरावमूलक एवं विनाशकारी राजनीति का परिचय दे रहा है। आदिवासी समाज के नाम पर हिंदुओं को बांटने का कुत्सित प्रयास करने वाले कुप्रयास व सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद अब यह लगभग तय हो चुका है कि लोकतंत्र का मंदिर कही जाने वाली संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह से विपक्ष के कई विपक्षी दल गायब रहेंगे।

अब यह निश्चित हो गया है कि संसद के नए भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को करेंगे। पीएम मोदी संसद का उद्घाटन दोपहर 12 बजे करने वाले हैं लेकिन उससे पहले ही सुबद 7 बजे से हवन पूजन का कार्यक्रम शुरू हो जाएगा। सुबह 7:30 से 8:30 बजे तक हवन और पूजा होगी।

नए संसद भवन का नाम किसके नाम पर होगा, इसे लेकर भी लोगों में उत्सुकता है।

भारत में स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर नामकरण करने के विषय को लेकर उपेक्षा ही की बरती गई है। बस जयंती के अवसर पर एक श्रद्धांजलि देकर औपचारिकता पूरी की जाती रही है।

पराधीन भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम महानायक मंगल पांडे और वीर सावरकर दो ऐसी महान विभूतियां हैं जिनके कद को कोई छू नहीं सकता।

दोनों ने देश को एक दिशा दिखाई और नए संसद भवन का नाम उनके नाम पर रखने से बेहतर कोई व्यक्ति हो ही नहीं सकता है। इन दोनों में से किसी एक के नाम पर संसद भवन का नामकरण किए जाने पर सामाजिक न्याय, लोकतंत्र की महानता और राष्ट्रीय एकता के प्रतीक को बल मिलेगा और यही इनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने फैसले से आम जनमानस को चौकातें रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद मोदी सरकार ही एकमात्र ऐसी सरकार है जिसने किसी भी योजना का शिलान्यास व नामकरण-उद्घाटन समारोह अपने ही कार्यकाल में किया। नामकरण को लेकर भी केंद्र सरकार बेहद संवेदनशील निर्णय लेते रही है। ऐसे में अगर मंगल पांडे या वीर सावरकर के नाम पर नए संसद भवन का नाम रखे जाने की घोषणा हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

देश में मंगल पांडे व वीर सावरकर को लेकर लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए अगर नए संसद भवन का नामकरण किया जाता है तो कोई दो मत नहीं है कि इससे राष्ट्रीय एकता को बल मिलेगा और उनके द्वारा दिए गए योगदान के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

मंगल पांडे व वीर सावरकर के संबंध में विशेष तथ्य

वीर सावरकर

वीर सावरकर प्रथम भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने सर्वप्रथम विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। राष्ट्रध्वज तिरंगे के बीच में धर्म चक्र लगाने का सुझाव उन्होंने ही दिया था जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने माना। इतिहास में वे ऐसे प्रथम राजनीतिक बंदी थे जिन्हें विदेशी (फ्रांस) भूमि पर बंदी बनाने के कारण हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में गया।

विश्व के वे प्रथम कवि थे जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखकर याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा।

वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय विद्यार्थी थे वकालत की डिग्री के लिए जिन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया,सो उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया।

वीर सावरकर विश्व के प्रथम लेखक थे जिनकी कृति 1857 का प्रथम स्वतंत्रता को 2-2 देशों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया।विनायक दामोदर सावरकर दुनिया के अकेले स्वातंत्र्य-योद्धा थे जिन्हें 2-2 आजीवन कारावास की सजा मिली।

मंगल पांडे

महान स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे साहस और दृढ़ता के पर्याय रहे हैं, उन्होंने इतिहास के बेहद महत्वपूर्ण समय में देशभक्ति की लौ प्रज्वलित की और अनगिनत लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने अंग्रेजों को खत्म करने की कसम खा ली। उन्होंने ‘मारो फिरंगी को’ नारे के साथ अंग्रेजों पर हमला तक कर दिया था।

मंगल पांडे के लगाई यह चिंगारी भड़क उठी और बैरकपुर से मेरठ, दिल्ली, कानपुर और लखनऊ तक सिपाही विद्रोह शुरू हो गया। हालांकि मंगल पांडे को उन्हें जेल में डाल दिया गया और मौत की सजा सुनाई गई जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से मना करने के बाद कलकत्ता से 4 जल्लाद बुलाकर फांसी पर लटका दिया गया। विद्रोह को शांत करने के लिए तय तारीख से 10 दिन पहले ही उन्हें 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई।

-चित्र इंटरनेट से साभार

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