वीरता-बलिदान को भुलाने वाले बौद्धिक-राजनीतिक-सामाजिक इकोसिस्टम का दोगलापन बेनकाब

….गांव के लोगों ने उनका बहिष्कार कर दिया, डकैत की मां कहकर अपमानित किया. पेट पालने के लिए जंगल से लकड़ी काट कर लाती थीं. कभी ज्वार-कभी बाजरा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं. क्योंकि दाल, चावल, गेंहू और उसे पकाने के लिए ईंधन खरीदने लायक न तो आर्थिक न ही शारीरिक सामर्थ्य शेष था.

हम बात कर रहे हैं मां जगरानी जी की, जो जन्मदात्री थीं उस अप्रतिम राष्ट्रनायक की, जो सदैव आजाद रहा-चन्द्रशेखर आजाद जो अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए…. 27 फरवरी 1931 को उनकी शहादत के कुछ वक्त बाद ही पिता शिवराम तिवारी की मृत्यु हो गई थी, उनके भाई पहले ही दिवंगत हो चुके थे. एमपी के झाबुआ जिले के भाबरा गांव में जगरानी देवी गुमनामी में दिन बिता रही थीं.

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इस देश समाज की कृतघ्नता इसी से परिलक्षित है कि आजाद की मां के साथ लज्जाजनक व्यवहार 1949 तक जारी रहा यानी जब देश को आजाद हुए दो वर्ष बीत चुके थे. महलों की विलासिता में जेल काटने वाले इस देश के हुक्मरान बन चुके थे. देश का मुस्तकबिल तय करने वालों के पास न तो बेबसी से जूझ रहे बलिदानियों के इन परिजनों का हाल लेने का वक्त था न ही जरूरत.

आजाद के सहयोगी क्रांतिकारी सदाशिव राव मलकापुरकर पन्द्रह वर्ष की कालापानी की सजा काटने के बाद जब जेल से बाहर आए तो उन्हें आजाद की मां की अतीव दुर्दशा की जानकारी मिली. उनका हृदय चित्कार कर उठा. तुरंत ही वह उन्हें अपने संग झांसी ले आए. सगे पुत्र के समान सेवा की. 22 मार्च 1951 को उनके निधन के बाद बड़ागांव गेट के बाहर मुक्तिधाम पर मुखाग्नि सदाशिव राव ने ही दी. इसी अंत्येष्टि स्थल पर उनकी समाधि बनाई गई है.

आज आजादी के नायक आजाद के बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित करते समय उनकी मां के साथ हुई नाइंसाफी बरबस याद आ जा रही है. ऐसा ही लज्जाजनक व्यवहार काकोरी कांड के नायक ठाकुर रोशन सिंह के परिजनों संग भी हुआ. जो मुफलिसी- बेबसी में जीवन जीने को अभिशप्त रहे इसका भी जिक्र होगा. ये याद जरूर रखिएगा कि वीर नायकों के बलिदान के बाद उनके परिजनों के संग त्रासदपूर्ण आचरण उस समाज में हुआ जो “शहीदों की चिताओँ पर लगेंगे हर बरस मेले” का खोखला राग अलापता रहता है. अमर राष्ट्र नायकों की वीरता-बलिदान को भुलाने वाले बौद्धिक-राजनीतिक-सामाजिक इकोसिस्टम के दोगलेपन को डंके की चोट पर बेनकाब करना ही होगा.

साभार – हरेश कुमार

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