NRI अमित सिंघल : यही असली पावर या शक्ति का प्रदर्शन है..

मेरा कार्यक्षेत्र राजनैतिक और अंतराष्ट्रीय सम्बन्धो के विषयो से जुड़े होने के कारण विदेश नीति के बारे में लिखने से बचता रहा हूँ. फिर भी, संकेतो में कुछ कहने का प्रयास करता हूँ.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के अध्ययन के समय हंस मोर्गेंथाऊ की राष्ट्रों के मध्य राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विचारो के बारे में पढ़ाया गया था.

मोर्गेंथाऊ ने राष्ट्रीय शक्ति के तत्वों में किसी देश की भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक संसाधन, औद्योगिक क्षमता, सैन्य तैयारियों, जनसँख्या, राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीय मनोबल, कूटनीति और सरकार की गुणवत्ता को माना है. उन्होंने कूटनीति की गुणवत्ता को इन तत्वों में सबसे महत्वपूर्ण माना. उन्होंने लिखा था कि राष्ट्र की कूटनीति इन विभिन्न तत्वों को जोड़ता है, उन्हें दिशा और वजन देता है, और राष्ट्र की शक्ति को जागृत करता है.

लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण मोर्गेंथाऊ की पावर या शक्ति की परिकल्पना है. वे मानते थे कि पावर के प्रयोग का मतलब यह है कि एक मनुष्य या राष्ट्र के द्वारा अन्य राष्ट्रों या मनुष्यों के मन और कार्यों पर नियंत्रण करना. ध्यान दीजिये: पावर का अर्थ है राष्ट्रों या मनुष्यों के मन और कार्यों पर नियंत्रण करना. ना कि उन्हें सैन्य शक्ति द्वारा पराजित करना.

अब भारत की भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक संसाधन, और जनसँख्या को कोई बदल नहीं सकता. औद्योगिक क्षमता और सैन्य तैयारियां विभिन्न सरकारों ने उन्नीस-बीस की होगी और प्रधानमंत्री मोदी जी उसे पच्चीस-छब्बीस पे ले आये. लेकिन राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीय मनोबल, कूटनीति और सरकार की गुणवत्ता को को मजबूत दिशा देने के मामले में पिछली सभी सरकारों से कई गुना आगे है.

प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में आने के बाद आतंकी क्षेत्र की सेना, नेताओ और जनता के मन और कार्यों पे भारत का नियंत्रण हो गया है.

इस हद तक कि वह क्षेत्र एक ऐसे देश की गोद में जाकर बैठ गया है जहाँ पे एक समुदाय विशेष को प्रताड़ित किया जा रहा है, उन्हें त्यौहार नहीं मनाने दिया जाता, व्रत रखने नहीं दिया जाता.

उस आतंकी क्षेत्र ने अपने सबसे घनिष्ट और पुराने देश – अमेरिका – से दुश्मनी मोल ली, उसके समाचारपत्रों और टीवी न्यूज़ में हर दिन भारत के बारे में चर्चा होती है, सभी पड़ोसी देशो से अनबन हो गयी है, हर समय वह खौफ में जीता है कि कब सर्जिकल स्ट्राइक हो जाए, उस क्षेत्र की कूटनीति का सारा समय इस बात पे व्यतीत होता है कि उसे भारत से कही कुछ नुकसान ना हो जाए, उसकी आर्मी का फोकस केवल भारत तक सीमित है.

एक तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने उस क्षेत्र का वह हाल कर दिया है कि वहां अब लोकतंत्र कई वर्षो तक पनप नहीं सकता, वे आर्मी और कठमुल्लो की छत्र-छाया में में रहने को विवश है, उनकी आर्मी के सारे हथियार अब एक देश से आ रहे है, उनका एक-एक कार्य भारत को नज़र में रखकर होता है. और तो और, अपनी अर्थव्यवस्था को भी उस क्षेत्र ने एक अन्य देश को एक तरह से गिरवी रख दिया है.

दूसरे शब्दों में, प्रधानमंत्री मोदी उस क्षेत्र को नार्थ कोरिया बनने की तरफ धकेल रहे है.

एक तरह से, प्रधानमंत्री मोदी ने उस आतंकी क्षेत्र का चरित्र और मनोबल, कूटनीति और सरकारी तंत्र को ध्वस्त कर दिया है, यह भी तब जब उस क्षेत्र के पास “बम” है.

अब आतंकी क्षेत्र दिवालिया हो गया है, इसपे हम प्रसन्न तो हो सकते है, लेकिन यह विचार का मुद्दा नहीं होना चाहिए.

मुद्दा यह होना चाहिए कि क्या भारत उस आतंकी क्षेत्र और उसके निवासियों के मन और कार्यों पर नियंत्रण कर रहा है?

उत्तर है: “हाँ”.

यही है असली पावर या शक्ति का प्रदर्शन.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *