धन्य है बालको.. करोड़ों-अरबों की बात लेकिन हजार-हजार के लिए ये चक्कर काट रहे महीनों से दिनरात… स्वर्ण पदक नही रोटी का सहारा चाहिए..
कोरबा। जिन्होंने बालको के साथ ही देश सेवा में अपनी स्वर्णिम वर्ष खपा दिए, उन्हें किसी स्वर्ण पदक की आवश्यकता नहीं है लेकिन उनके जीवन में…
ऐसे हैं बालको के मीठे दावें
बालको प्रबंधन का दावा है कि “छत्तीसगढ़ में अब तक 3100 से अधिक गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को शिक्षित किया जा चुका है। शासकीय महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और आशा कार्यकर्ताओं की मदद से गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के स्वास्थ्य की नियमित जांच की जा रही है। परियोजना का उद्देश्य भारत के ग्रामीण पिछड़े इलाकों को देश के विकास की मुख्यधारा से जोड़ना है.. और इन योजनाओं पर लाखों रुपये खर्च किया जा चुका है।”
बालको प्रबंधन के द्वारा जारी प्रेस नोट्स में दावा किया जाता है कि “युवाओं को रोजगारपरक कौशल से सशक्त बनाने के उद्देश्य से बालको ने 2010 में कोरबा वेदांता स्किल स्कूल की स्थापना के लिए लर्नेट स्किल्स लिमिटेड के साथ भागीदारी की। वेदांता स्किल स्कूल प्रशिक्षण केंद्र में आतिथ्य उद्योग, वेल्डिंग, सिलाई मशीन ऑपरेटर, सोलर पीवी टेक्निशियन, इलेक्ट्रीशियन और फिटर के छह ट्रेडों में मुफ्त आवासीय प्रशिक्षण दिया जा रहा है।”
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इसमें एक दावे की असलियत क्या है..? यह तो नीचे इस लिंक पर दी गई सामग्री से स्पष्ट होता है…
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5 star बालको प्रबंधन..? : मालिक अनिल अग्रवाल के साथ प्रदेश सरकार, प्रशासन, पब्लिक से भी कर रहा फ्रॉड..? बॉलीवुड को पछाड़ दिया इस विषय पर.. नकल नहीं कॉपी पेस्ट कहिए…! http://veerchhattisgarh.in/?p=10015
मजदूरों – कर्मचारियों की छोटी सी खट्टी-मीठी आशा
एक सामान्य कर्मचारी जो किसी भी सरकारी संस्थान से जुड़कर काम करता है, उसकी एक सामान्य सी इच्छा होती है, सेवानिवृत्त होने के बाद एक छोटा सा घर बनाना और बाल-बच्चों का विवाह कर मिलने वाले पेंशन से अपना जीवन निर्वाह करना।
बस यही सपना लिए वह नाईट ड्यूटी करता है तो दिन में सोता है और अगर डे ड्यूटी करता है तो नाईट में सोकर जीवन संस्थान के लिए जीकर अपनी जिंदगी डिस्पोजेबल कर लेता है। यही एक आम मजदूर, कर्मचारी की जीवनशैली होती है लेकिन सारी जिंदगी किसी संस्थान में खपा देने के बाद भी मात्र 900 रुपयों से लेकर 3000 रुपयों तक के पेंशन के लिए लगभग 1 वर्ष तक चक्कर लगाने के बाद भी हासिल शून्य बटा सन्नाटा हो तो कितनी पीड़ा मन में उभरती होगी जब उस संस्थान द्वारा प्रेस विज्ञप्ति संस्कृति की चाशनी में डूबे सरकार-स्थानीय प्रशासन को लहालोट करने वाले समाचारों को पढ़ता होगा।
सूत्रों के अनुसार सामाजिक समरसता के क्षेत्र में बड़े-बड़े काम करने वाले बालको के ऐसे प्रकरण सामने आने के बाद भी बुजुर्गों, विधवाओं की समस्या के निराकरण के लिए समुचित प्रयास करने के स्थान पर टालमटोल की नीतियों का हथियार चलाया जा रहा है।
मीठे दावों के कड़वे सत्य
भीख नहीं अपने अधिकार के लिए कराह रही बुजुर्गों की अंतरात्मा
बालको प्रबंधन में रिटायर हो चुके, वीआरएस ले चुके कर्मचारियों के पेंशन योजना की राशि मिलने में हो रहे की विलंब की बातें सामने आ रही है। बुजुर्गों को दिए जाने वाली पेंशन की राशि समय से नहीं देने से लोग बेहद परेशान हैं।
अब ऐसी स्थिति में जब किसी की पत्नी नही है, किसी का पति नही है। कही पर दोनों हैं तो बच्चे नहीं है क्योंकि सेवानिवृत्त होने के बाद या लगभग स्वेच्छा से लिए गए VRS की जमाराशि के खर्च हो जाने के बाद बच्चे छोड़कर चले गए हैं तो ऐसे में बहुत अधिक नहीं लेकिन लगभग 1000 से 3000 तक का मिल रहा पेंशन डूबते हुए के लिए तिनके के सहारे जैसा काम करता है लेकिन जब उसके लिए भी दर-दर भटकना पड़े तो ऐसे में बुजुर्ग हो चुके लोगों की आत्मा किस प्रकार से कराहती होगी, इसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
पेंशन योजना में अनुबंध का उल्लंघन..?
पूरा प्रकरण बालको से रिटायर हो चुके अथवा वीआरएस ले चुके कर्मचारियों का है, जहां पर पेंशन के लिए कर्मचारियों को समय से पेंशन नहीं मिलने से वो परेशान हैं. बुजुर्ग पेंशनधारी जब अपने पेंशन की राशि की मांग करते प्रबंधन के चक्कर काटते हैं तो उनके द्वारा गुमराह करते हुए कह दिया जाता है कि अभी आप लोगों की पेन्शन की राशि के संबंध में चॉइस सेंटर जाकर संपर्क कीजिए। अब चॉइस सेंटर जाने पर वही जवाब मिलता है कि हमारी ओर से तो सब ओके है।
रायपुर हेड ऑफिस जाने का सुझाव दिया जाता है लाचार बुजुर्गों को
तब स्वर्णिम सुझाव दिया जाता है कि आप हेड ऑफिस रायपुर में संपर्क कीजिए क्योंकि पेंशन योजना का संचालन रायपुर से किया जाता है। अब 1000 – 2000 तक पेंशन के लिए रायपुर तक जाकर जूझने का टेंशन बुजुर्गों के सिर पर डाल कर स्थानीय प्रबंधन अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लहालोट हो जाता है।
बुजुर्गों के लिए जहां केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार अनेक योजनाएं चला रही है और इसके क्रियान्वयन का समुचित प्रबंधन वार्ड स्तर, पंचायत स्तर पर किया भी जा रहा है लेकिन… इस विषय पर जय हो बालको प्रबंधन की। सारे संसाधन होते हुए भी बुजुर्गों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करने का औचित्य समझ से परे है।
यह कैसा सामाजिक सरोकार..?
अनेक लोगों को तो एक वर्ष बीतने जा रहे हैं लेकिन मात्र और मात्र 1000-1000 रुपये की पेंशन राशि अब तक प्राप्त नहीं हो पाई है। कोई बहुत बड़ी राशि पेंशन में नहीं दी जा रही है लेकिन इसके लिए भी इस प्रकार से उन बुजुर्गों को प्रताड़ित करना जिन्होंने अपनी समूची जिंदगी बालको की सेवा में बिता दी यह किस सामाजिक सरोकार के दायरे में आता है ? यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है, जिसका जवाब संभवतः बालको प्रबंधन के पास भी न हो !!
जानकारों का कहना है कि मालिक अनिल अग्रवाल और सरकार के मध्य बालको की हिस्सेदारी तय करते समय एक अनुबंध हुआ था, जिसके अनुसार सूत्रों के अनुसार कर्मचारियों के हितों को लेकर किसी प्रकार की कोताही नहीं बरतने की बात भी अनुबंध में थी।
विभागीय तालमेल नहीं.. संपर्क नंबर तक एक दूसरे के पास नहीं
बालको प्रबंधन में पेंशन योजना के संबंध में जानकारी लेने के लिए मोबाईल पर श्रीमती राठौर मैडम से कॉल करने पर जवाब दिया गया कि अब तक इस प्रकार की कोई समस्या सामने नहीं आई है। श्रीमती राठौर ने कहा कि रघुवर प्रसाद पटेल, शैलेंद्र पांडेजी यह सब देखते हैं।लेकिन दोनों के मोबाईल नंबर उन्होंने अपने पास उपलब्ध नहीं होने की बात कही। इसके बाद बालको इस संबंध में जानकारी के लिए बालको प्रबंधन से जुड़े श्री विजय बाजपेयी को कॉल करने पर उनके द्वारा कॉल का जवाब नहीं दिया गया।
गणतंत्र दिवस पर बालको के संदेश की सार्थकता..!!
धन्य है बालको उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री पंकज शर्मा जिन्होंने 74वें गणतंत्र दिवस पर अपने संदेश में कहा कि “हम सब मिलकर ऐसा भारत बनाएं जो सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक प्रगति में पूरी दुनिया के लिए मिसाल हो। गुणवत्ता के मामले में पूरे विश्व में बालको के उत्पादों की सराहना किया जा रहा है। वर्ष 2025 तक देश में एल्यूमिनियम की मांग आज के मुकाबले दोगुनी हो जाएगी। ऐसे में हम सभी के लिए बड़ा अवसर है कि हम बाजार की मांग पूरा करने के लिए खुद को तैयार कर लें।”….विज्ञप्ति में तो world lable पर करोड़ों-अरबों रुपये के एल्यूमिनियम की मांग पूरी करने के लिए संकल्प लिया जा रहा है। दूर तक टॉर्च मारने की बात की जा रही लेकिन पास का कुछ हजार रुपये का बारीक गड्डा भरने में दिक्कत हो रही है।
नहीं चाहिए इन्हें स्वर्ण पदक
गणतंत्र दिवस के अवसर पर ही आज बालको द्वारा जारी किए गए प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि “कक्षा 10वीं में टॉप करने वाले विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक तथा 10 हजार रुपए नगद तथा कक्षा 12वीं के टॉपर विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक तथा लैपटॉप प्रदान कर उनके परिवारजनों की उपस्थिति में सम्मानित किया गया।”…जिन्होंने बालको के साथ ही देश सेवा में अपनी स्वर्णिम वर्ष खपा दिए, उन्हें किसी स्वर्ण पदक की आवश्यकता नहीं है लेकिन उनके जीवन में भोजन-पानी की व्यवस्था का एक मात्र साधन पेंशन है उसके देने के लिए बालको प्रबंधन को क्या टेंशन है ?..यह एक बड़े शोध का विषय है।
स्वधन्य हैं बालको द्वारा चलित स्वास्थ्य वाहन, परियोजना नई किरण, परियोजना आरोग्य, परियोजना मोर जल मोर माटी, परियोजना कनेक्ट, वेदांता स्किल स्कूल आदि जिनसे जरूरतमंद नागरिकों को लाभ मिल रहा है।
