पंकज कुमार झा : धर्म को नहीं… अधर्म को राजनीति से अलग करने की आवश्यकता…

आइये! आइये कृपया धर्म की राजनीति करें!

हमारा सबसे बड़ा संकट है अनावश्यक अपराधबोध से ग्रस्त हो जाना। रक्षात्मक हो जाना। उदाहरणतः जब हमें बड़ी घृणा के साथ यह कहा जाता है कि हमारा हिंदुत्व तो ‘राजनीतिक हिंदुत्व’ है। तो ऐसा ‘आरोप’ लगते ही हम झट से रक्षात्मक हो जाते हैं। सफाई देने लगते हैं। जबकि…

जबकि इससे अधिक प्रशंसा के शब्द आपके लिये कुछ हो ही नहीं सकते। हमारी राजनीति हिन्दुवादी है, इससे अधिक अथाह गौरव की बात और क्या होगी भला? आप धर्म की राजनीति करते हैं, अहा! विरोधी भी आप पर यह आरोप ही लगा पाते हैं, सोचिये आप कितने पवित्र-पुनीत-पावन-अनुपम परंपरा के लोग हैं।

कितने श्रेष्ठ हैं आप कि आज के इस अधर्मी और पतित समय में भी धर्म की राजनीति कर पाते हैं। ऐसा कर आप जाने-अनजाने ‘अधर्म’ को राजनीति से अलग करने का इतना महनीय कार्य कर जाते हैं, जैसा द्वापर-त्रेता में भी होना जरा कठिन था। कलजुग में तो खैर असम्भव ही था ऐसा होना।

लहालोट हो जाया कीजिए इस ‘आरोप’ पर कि आप धर्म की राजनीति करते हैं। इसे तमगा की तरह चिपका लीजिये स्वयं से। मुकुट बना लीजिये इस वाक्य को।

धर्म को नहीं भगिनी-भ्राता …. अधर्म को राजनीति से अलग करने की आवश्यकता है। हमारी राजनीति में ‘धर्म निरपेक्ष’ शब्द घुसा देने वालों को सदा के लिए माड़ के जंगलों में भटकने छोड़ दीजिए। अवसर देख कर राम-राम करने वाले को कालनेमि गति दीजिए।

नये-नये स्वतंत्र हुए देश की, हमारे जैसे धर्मप्राण राष्ट्र को धर्म निरपेक्ष कह उसकी भ्रूण हत्या का पाप किया गया था। वैसे ही, जैसे अश्वत्थामा ने पांडव पीढ़ी की भ्रूण हत्या कर दी थी। राजनीति के संदर्भ में धर्म को पतित बना देने वालों के मस्तक से जनादेश की मणि नोंच लीजिये कृपया।

यह भी स्मरण रखिये। लाख षड्यंत्र करने के बावजूद ईश्वर की कृपा ऐसी हुई कि ‘वह’ देश को ‘पंथ निरपेक्ष’ ही बना पायी, धर्म निरपेक्ष नहीं। सो, अधर्म की राजनीति को नष्ट करने, धर्म की राजनीति कीजिए। गर्व से कहिये कि आपकी राजनीति ‘धर्म’ है। यह कदापि असंवैधानिक नहीं है।

विजयी भव!

राहुल गांधी प्रामाणिक व्यक्ति हैं। उन्हें पदयात्रा का विचार मैंने ही दिया था – श्याम मानव।

समझ गये या कुछ समझना शेष है?

कल हृदय रो उठा जब स्वामी रामभद्राचार्य जी महराज ने चैनल पर एंकर से कहा – ‘मैं जन्म से दृष्टिहीन हूँ, फिर भी सभी वेद कंठाग्र है मुझे। डेढ़ लाख से अधिक पन्ने कंठस्थ हैं। अब और कौन सा चमत्कार देखना चाहती हो बेटी?’

बंद करो बहन-भाई मीडिया ट्रायल यार। टीआरपी के लिये कुछ और करो न कृपया। 

अभी एक आलोचक मित्र से हुई बहस में उन्हें बता रहा था। श्याम मानव ने 30 लाख रुपया रखा है चुनौती के लिये। उतना तो नहीं, लेकिन 10 लाख रुपया मैंने भी तय किया है श्याम मानव के लिये। वे रायपुर आयें। किसी निष्पक्ष जज की अध्यक्षता में मुझसे शास्त्रार्थ करे। जज अगर निर्णय दे दें कि वे जीत गये, तो दस लाख श्याम के, अन्यथा उन्हें भी इतना छोड़ कर जाना पड़ेगा।

मित्र ने कहा – आपके बुलाने पर वे क्यों आयेंगे?

मैंने कहा- तो यही सवाल मेरा भी है। श्याम के बुलाने पर धीरेंद्र शास्त्री जी को क्यों जाना चाहिये?

है न ?

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