अ से अजीत जोगी.. अ से अरुण साव.. कोरबा BJP की राजनीति में fire Brandआक्रामक चेहरे की खोज…

2023 के चुनाव को लेकर प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव का मानना है कि ” बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है जो हर चुनोती के लिए तैयार है छत्तीसगढ़ में बीजेपी के कार्यकर्ता बुथस्तर तक अपनी पकड़ बनाये हुए है. अगर आज भी चुनाव होते है तो बीजेपी उसके लिए तैयार है।” श्री साव की बात सही है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने बुथस्तर पर जाकर पार्टी को मजबूती प्रदान की है लेकिन उन नेताओं का क्या जो आपसी गुटबाजी में उलझे हुए हैं।

गुटबाजी के कारण ही 15 साल की सत्ता के बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में सिमटकर रह जाने वाली भाजपा उपचुनावों में भी लगातार मात खाती रही है। जिन्हें टिकट की मलाई नहीं मिलती वे जयचंद के रोल में आ जाते हैं और कोरबा में भी ऐसे जयचंदो की कमी नहीं है।

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संगठन को मजबूत करने और भूपेश सरकार को आक्रमक रूप से घेरने के लिए महत्वपूर्ण पदों पर श्री साव ने बदलाव कर दिए। शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर प्रदेश संगठन में बदलाव में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला फैसला प्रदेश कोषाध्यक्ष रहे गौरीशंकर अग्रवाल को हटाने का था और ऐसा करके पार्टी ने बड़ा संदेश दिया था कि अब नए युवा पीढ़ी के लोगों को संगठन में महत्व दिया जाएगा।

भाजपा श्री साव के नेतृत्व में ही अगला विधानसभा चुनाव लड़ेगी। अध्यक्ष  बनने के बाद पहली बार कोरबा आ रहे अरुण साव के सामने गुटबाजी को दूर कर संगठन को मजबूत करने की बड़ी चुनौती है। यह चुनौती इसलिए भी बड़ी हो जाती है क्योंकि पार्टी के पास सीएम का कोई चेहरा सामने नहीं है पीएम मोदी ही सबसे बड़ा चेहरा है और पीएम नरेंद्र मोदी व कमल फूल के निशान की साख पर भाजपा विधानसभा चुनाव की वैतरणी पार करेगी।

पार्टी ने अब जब पिछड़ा वर्ग को नेतृत्व सौंपा है। देश की सर्वोच्च पद पर आदिवासी राष्ट्रपति बनाकर आदिवासी वर्ग को भी साधकर रखा है तो देखना है कि राज्य में पिछड़ा वर्ग की बड़ी आबादी है और अरुण साव पिछड़ों को साधने में कितना बड़ा काम कर पातें हैं !!

देखा जाए तो कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में सामाजिक समीकरण का तानाबाना बुनकर नए नेतृत्व को सामने लाकर भाजपा की डेढ़ दशक की सरकार को अद्भुत हराया था।  भाजपा इसके बाद से ही वापसी का माहौल नहीं बना पा रही है।

आदिवासी व दलित राजनीति के स्थान पर कांग्रेस ने पिछ़़ड़ा वर्ग कार्ड खेला और वह सफल भी रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछड़ा वर्ग से आते हैं। आदिवासी व दलित राजनीति के साथ ही पिछड़ा वर्ग कार्ड शीर्ष नेतृत्व ने चला है और इस क्रम में अरुण साव जैसे बेदाग छवि के आक्रामक नेता के हाथों पिछड़े वर्ग की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले राज्य की सौंपी है। अध्यक्ष बनने के बाद से ही विभिन्न मुद्दों पर राज्य सरकार को उन्होंने घेरा है।

15 बरस तक कोने में रहकर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचना कांग्रेस की सामाजिक समीकरणों की राजनीति के कारण संभव हुआ है। आदिवासी व दलित राजनीति के बजाए कांग्रेस ने पिछ़़ड़ा समीकरण उभारे और वह सफल भी रही है। कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछड़ा वर्ग से आते हैं। राज्य में पिछड़ा वर्ग की आबादी सबसे ज्यादा है।

2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य में पार्टी की करारी हार के बाद लोकसभा चुनाव में 11 नए चेहरे उतरे गए, जिसका परिणाम सकारात्मक रहा।  क्या विधानसभा चुनाव में यह प्रयोग दोहराया जाएगा ?

ज्योतिष दृष्टि में अरुण साव
अंकज्योतिष में अक्षर ए को नंबर 1 से जोड़ा जाता है और हिंदी में “अ” अक्षर से। जिनके विषय में कहा जाता है ये काफी प्रभावशाली शख्सियत के मालिक होते हैं. ये दूसरों के सामने अपनी छवि गढ़ने में सक्षम होते हैं। अमिताभ बच्चन, स्व. राष्ट्रपति अब्दुल कलाम,संगीतकार ए.आर. रहमान जैसी कई हस्तियां इस श्रेणी में आती है।
प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी जिनके व्यक्तित्व को प्रदेश की राजनीति में “न भूतो न भविष्यति” कहा जा सकता है।अब जब “अ” से अरुण साव को प्रदेश भाजपा की बागडोर सौंपी गई है तो वे पार्टी को किस ऊंचाई तक ले जाएंगे, यह भविष्य के गर्भ में है।

कोरबा भाजपा को आक्रामक नेतृत्व की आवश्यकता

बता दें कि कोरबा में भाजपा लगातार हार और गुटबाजी से जूझ रही है। महापौर चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।  चुनाव को ज्यादा समय नहीं बचा है।  जिले की सभी विधानसभा सीटों पर विशेष रूप से कोरबा में एक आक्रामक चेहरे की आवश्यकता है जो भाजपा को शहर की राजनीति में शीर्ष पर पहुंचा सके। जिसकी बात में दम हो, शब्दों में वजन हो। शहर की राजनीति जिले का राजनीतिक भविष्य तय करती है। अभी तक जिले की शीर्ष राजनीति में भाजपा ने जो महत्व पिछड़े वर्ग के नेतृत्व को उभारकर दिया है, वैसा किसी पार्टी में नहीं हो सका। निःसंदेह कोरबा भाजपा के अधिकांश नेताओं की राजनीति सोशल मीडिया, विज्ञापन, पोस्टर तक सिमटकर रह गई है।आक्रामकता श्री साव के तेवर में है लेकिन प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कोरबा शहर में बीजेपी के एक भी नेता के तेवर आक्रमक नही है। कोई ऐसा सर्वमान्य नेता नहीं है जिसकी स्वयं की कोई विशेष छवि पब्लिक के मन में बनी हो।

अब देखना है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की छत्तीसगढ़वाद की संस्कृति की राजनीति से टकराने के लिए मां सर्वमंगला की उर्जाधानी में ऊर्जावान आक्रामक नेता की तलाश में अरुण साव कितने सफल होंगे ?

 

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