अटूट हिंदू-सिक्ख संबंधों को तोड़ने विपक्षी दलों के नेता रच रहे षड़यंत्र..

आज ‘किसान आंदोलन’ के नाम पर हिन्दुओं और सिखों को अलग-अलग दिखाने की कोशिश हो रही है तो कही राम को सिखों से अलग करने कुत्सित चित्रण किया जा रहा है। सिक्खों और हिंदुओं के बीच दरार पैदा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी सुरक्षा में सेंध लगाकर बड़ी साजिश रचने की बात सामने आ रही है। औरंगजेब ने भी यही करने का प्रयास किया था।

 

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औरंगजेब का पूरा जोर इस बात पर था कि वो हिन्दुओं और सिखों को अलग-अलग साबित कर गुरु तेग बहादुर को भ्रमित कर सके और दोनों समुदायों के बीच कटुता पैदा कर सके।दरबार में उनके बीच हुई बातचीत का वर्णन हिंदी समाचार पत्र ‘उगता भारत’ के संस्थापक-संपादक राकेश कुमार आर्य ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दू राष्ट्र स्वप्नदृष्टा: बंदा वीर बैरागी‘ में किया है। इसकी चर्चा कई अन्य जगह भी मिलती है।

आज ‘किसान आंदोलन’ के नाम पर हिन्दुओं और सिखों को अलग-अलग दिखाने की कोशिश हो रही है, इन दोनों में दरार पैदा किया जा रहा है और वैमनस्य का माहौल बनाया जा रहा है। जिस पार्टी ने सिखों का नरसंहार करवाया, वो आज उनकी हितैषी होने का दावा कर रही है। क्या सच में ऐसा है? इसके विश्लेषण के लिए सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गोविंद सिंह की जयंती से अच्छा मौका कब हो सकता है। एक न्यूज पोर्टल में हिंदू-सिक्ख समाज के अमिट-अटूट विश्वास के साथ जुड़े संबंधों का उल्लेख करते हुए आगे लिखा है –

गुरु गोविंद सिंह ने सिखों को योद्धा बना दिया। वो चाहते थे कि उनके अत्याचारों का प्रतिकार ही न हो।
ख़ालसा को एक ख़ास पहचान दी, एक ख़ास कार्य सौंपा गया और इसीलिए संगत में ये ख़ास हुए। आगे के कई युद्धों में खालसा पंथ ने जो बहादुरी दिखाई, वो तो इतिहास है। 13 अप्रैल वो तारीख है, जब 1699 में गुरु गोविन्द सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। 321 साल हो गए लेकिन सिखों का मातृभूमि और धर्म के प्रति आस्था अडिग ही होती चली गई। गुरु गोविन्द सिंह ने एक तरह से समुदाय को पुनर्जीवन दिया।

सिख गुरु हिन्दू देवी-देवताओं की ही पूजा करते थे, तीर्थाटन करते थे। गुरु नानक अयोध्या सहित पूरे देश के हिन्दू तीर्थों के यात्रा पर निकले थे।

सिख और हिंदू कभी अलग थे ही नहीं। उन्हें अलग करने की साजिश पहले मुगलों ने की, अब कुछ राजनीतिक दल कर रहे हैं। वो चाहते हैं कि सिखों को गुरु गोविंद सिंह की शिक्षा याद न रहे और वो हिन्दुओं से घृणा करें।

गुरु ग्रन्थ साहिब सिखों की सबसे पवित्र पुस्तक है। गुरु गोविंद सिंह जानते थे कि आने वाले समय में अगर गुरु परंपरा जारी रही तो इसका गलत उपयोग किया जा सकता है, इसीलिए उन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब को ही सिखों को गुरु के रूप में मानने का निर्देश दिया, क्योंकि इसमें सभी सिख गुरुओं की वाणी समाहित है।

इसी में गुरु अमरदास ने राम का नाम परमात्मा के रूप में लिखा है। उन्होंने इसमें समझाया है:
राम-राम करता सभ जग फिरै, राम न पाया जाए।
गुर कै शब्दि भेदिआ, इस बिध वासिया मन आए।।
इसमें उन्होंने बताया है कि सिर्फ राम नाम लेने से परमात्मा प्राप्त नहीं हो जाते, बल्कि हमें इस शब्द के मर्म को भी अपने मन में बसाना चाहिए। सिख गुरुओं ने राम और परमात्मा को एक ही माना है।ऐसे में आज अगर अचानक कुछ लोग आकर कहते हैं कि राम मंदिर सिखों का नहीं है या फिर हिन्दू और सिख अलग हैं, तो उनके मन में खोट है। नाम जपने की परंपरा हिन्दुओं में भी है, सिख गुरुओं ने भी इसकी महिमा का बखान किया है।

गुरु नानक से लेकर गोविंद सिंह तक ने, किसी ने सिखों व हिन्दुओं को अलग नहीं समझा।
राम को सिखों से अलग नहीं किया जा सकता। गुरु अर्जुन दास ने ‘आदिग्रन्थ’ में ही रामकथा कह दी है। आप एक बात पर गौर कीजिए। सिख धर्म में निर्गुण की ही उपासना होती आई है और वहाँ अवतारों को लेकर उस तरह की मान्यता नहीं है। बावजूद इसके ‘हुकमि उपाई दस अवतारा‘ लिख कर गुरुवाणी ने सनातन के दशावतार को मान्यता दी है। राम-रावण युद्ध का प्रसंग भी उसमें है। “भूलो रावण मुगधु अचेति, लूटी लंका सीस समेत” वाली पंक्ति पर गौर कीजिए।
स्वयं गुरु नानक ने ही राम को गुरुमुख के रूप में चित्रित किया है। परमात्मा की शक्ति से मंडित मुक्तात्मा को ही इन ग्रंथों में ‘गुरुमुख’ कहा गया है। गुरु नानक लिखते हैं, “गुरुमुखि बाँधियों सेतु बिधातै, लंका लूटी देती संतापै। रामचंद्र मारिउ अहिं रावण, भेद बभीषन गुरुमुखि परचाईवु।” निर्गुण ब्रह्म सर्वव्यापक है और गुरु ग्रन्थ साहिब में उसे ‘राम’ कह कर ही पुकारा गया है। गुरुवाणी में बार-बार राम नाम का प्रयोग है।

अब आज बहुत से ऐसे लोग पैदा हो गए हैं, जो कहते हैं कि कबीर के राम अलग थे, तो नानक के राम अलग थे, बाल्मीकि के राम अलग थे और तुलसीदास के राम अलग थे। असल में ये सब भुलावे के लिए किया जाता है। राम एक ही थे, उन्हें विभिन्न महापुरुषों ने अलग-अलग रूप में देखा। कहीं वो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, कहीं एक आदर्श राजा तो कहीं परमब्रह्म। वो तीनों ही हैं। सिखों और हिन्दुओं में दरार पैदा करने के लिए इस तरह की बातें की जाती हैं।

गुरु गोविंद सिंह ने प्राचीन सनातन ग्रंथों का आम जनमानस की भाषा में अनुवाद किया। ‘गोविंद रामायण’ का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी किया था। गुरु गोविंद सिंह ने नैनादेवी पहाड़ के नीचे सतलज नदी के किनारे बैठ कर जुलाई 23, 1698 को ‘रामावतार’ की रचना पूरी की थी। इनमें करीब 900 श्लोक युद्ध को लेकर विस्तृत विवरण देते हैं। सिख आज भी दशहरा मनाते हैं। उन्होंने इसके अंत में लिखा है – “रामायण अनंत है। रामकथा सदा अनादि और अनंत रहेगी।“

पंजाब के लोकगीतों में यह बात कई तरह से आती है, जिसमें एक गीत का उदाहरण देना शायद प्रासंगिक जान पड़े- राम जेठा जती न कोई/ लक्ष्मण जेठा न भ्राता। गुरु गोबिंद सिंह जी राम के मिथक को ही रूपांतरित नहीं करते, बल्कि उनके लीला-अवतार को, पदावली लिखते हुए काव्य रूप में अभिव्यक्त करते हैं। इसके पीछे उनका आशय, राम के नायकत्व को दानवों के विरुद्ध निरंतर लड़ते हुए युगपुरुष के रूप में स्थापित करने में है। इस पूरे प्रकरण में उन्होंने अपनी भाषाई चेतना, परम पुरुष के संकल्प और मिथक रूपांतरण के साथ कई स्तरों पर इस महागाथा को देखने की कोशिश की है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इसके सृजन में उन्होंने जनमानस को केंद्र में रखा है, जिसमें लोक विश्वास, रुचियों और लोकमानस की प्रतिष्ठा सवरेपरि है। वे इसी आशय से कहते भी हैं- अथ मैं कहो राम अवतारा/ जैस जगत मो करा पसारा।

असली बात तो ये है कि जिस 1984 के दंगे ने सिखों और हिन्दुओं के बीच दरार डाली, उसी दंगे के अपराधी आज दोनों को फिर से अलग करने में लगे हुए हैं और खुद को सिखों का हितैषी बता रहे हैं।

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