गीता के 11 वें अध्याय से लिया गया है भारतीय वायुसेना का ध्येय वाक्य ‘ नभ: स्पृशं दीप्तम् ’
नभ:स्पृशं दीप्तमनेकवर्णं
व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् ।
दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा
धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो ।।24।।
हे विष्णो ! आकाश को स्पर्श करने वाले, देदीप्यमान, अनेक वर्णों से युक्त तथा फैलाये हुए मुख और प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त आपको देखकर भयभीत अन्त:करण वाला मैं धीरज और शान्ति नहीं पाता हूँ ।
भारतीय वायुसेना का आदर्श वाक्य ‘नभ:स्पृशं दीप्तम्’ गीता के 11वें अध्याय से लिया गया है। महाभारत के महायुद्ध के दौरान कुरूक्षेत्र की युद्धभूमि में अर्जुन के हतोत्साहित होने पर।भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश देते हुए अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया और उनका का यह विराट रूप अनंत आकाश तक व्याप्त है।
8 oct. को आज भारतीय वायुसेना गीता के इस ध्येय वाक्य का अनुसरण करते हुए अनंत आकाश तक अपना वर्चस्व स्थापित करने का संकल्प लेती है।