डॉ. भूपेंद्र सिंग : ट्रम्प के आगे भारत के अतिरिक्त सभी की स्थिति अपमानजनक
ट्रम्प ने स्पष्ट करना शुरू कर दिया है कि मुफ्त में कुछ नहीं मिलने वाला। यूरोप भी समझ ले और बाक़ी भी देश समझ लें कि आपको सुरक्षा की गारंटी भी चाहिए तो हम उसके बदले में कुछ न कुछ #वसूल_करेंगे। पहले अमेरिका मिडिल ईस्ट और अगल बगल के देशों में युद्ध लड़कर अथवा चौधरी बनकर वसूली करता था और अब उसने स्पष्ट कर दिया है कि नियम सबके लिए बराबर रहेगा।
अब तक ट्रम्प के साथ जितनी भी द्विपक्षीय वार्ता हुई है उसमें भारत के अतिरिक्त सभी अपमानजनक स्थिति में पहुँचे हैं। अमेरिका और रूस अलगाव की राह पर थे, तब भारत अमेरिका और रूस दोनों के साथ खड़ा था। अब भी उसका अमेरिका से बिगाड़ नहीं हुआ है, जो थोड़े बहुत मामले हैं वह सेटल हो रहे हैं। भारत यह सब इसलिए करने में सक्षम है क्योंकि वह सुरक्षा के लिए अपना इंतज़ाम बनाकर रखा हुआ है। अब यूरोपीय यूनियन अमेरिका से अलगाव की राह पर है और भारत का दौरा नया मार्केट और सहयोगी तलाशने की गरज से है। यदि इस दौरे में सब कुछ अच्छा रहा तो भारत ऐसा देश होगा जिसका रूस, चीन, यूरोपीय यूनियन और अमेरिका सबके साथ लगभग सकारात्मक संबंध रहेगा।
ट्रम्प और खासकर उनके सहयोगी जे डी वांस और एलोन मस्क को जिसको जो कहना है खुलकर कह रहे हैं। जर्मनी चुनाव में इसका व्यापक असर दिखा है। म्यूनिख सिक्योरिटी कौंसिल में वांस ने जर्मनी और ब्रिटेन समेत सभी यूरोपीय देशों को खूब सुनाया। फ्रांस के राष्ट्रपति के साथ भी टोका टिप्पणी की स्थिति आ गई। ब्रिटेन के स्टारमर को भी खूब बैठाकर सुनाया गया। अब यूक्रेन के राष्ट्रपति के साथ जो स्थितियां बनी हैं, वह अभूतपूर्व हैं। आख़िर ये सब हो क्या रहा है?
ये स्पष्ट संदेश दिए जा रहे हैं ट्रम्प, वांस और मस्क की तरफ़ से कि सब लोग अपना अपना देखिए, दूसरे के सहारे चलना बंद करिए। अपने अपने देश को अपने अपने तरीक़े से बचाइए। मस्क और वांस का कहना है कि पूरा यूरोप इस लाम और प्रवासियों के भरने से परेशान है। लेकिन यूरोप के नेता इस ख़तरे को स्वीकार करने के बजाय जो लोग इस ख़तरे की तरफ़ इशारा कर रहे हैं उनको जेल भेजने में लगे हैं। अमेरिका के राइट विंग में लंबे समय से यह चिंता है कि हथियार रखकर ही क्या होगा जब ये देश युद्ध लड़ने का माद्दा हो छोड़ देंगे, और युद्ध तो तब लड़ेंगे जब उन्हें यह पता होगा कि आखिर वह बचाना क्या चाहते हैं?
अर्थात स्पष्ट प्रश्न है कि आखिर यूरोप क्या है जिसे बचाया जाना चाहिए? अमेरिका के राइट विंग के लोगों का स्पष्ट मानना है जो वह कहना नहीं चाहते, कि यूरोप गोरे ईसाइयों की वह भूमि है जो दुनिया पर राज करती रही है लेकिन इनके नेता यह सब बात भूलकर इस लाम और प्रवासियों से घिरते जा रहे हैं और अपनी नाकामी को छुपाने के लिए मीठे मीठे वामपंथी शब्दों को ढाल बनाकर इस नाकामी की तरफ़ उँगली उठाने वाले गोरे ईसाइयों को ही जेल में बंद कर रहे हैं। जर्मनी में मस्क ने AFD का खूब पक्ष लिया और आज इतने लोगों ने उसे वोट दिया है कि अब शायद लोगों को जेल भेजना अब जर्मनी में उतना आसान नहीं होगा। वह सभी देशों में धीरे धीरे ऐसी ही स्थिति बनायेंगे। तमाम भारतीय पत्रकारों को लग रहा है कि ट्रम्प, वांस और मस्क अलग थलग पड़ते जा रहे हैं। जबकि सच यह है कि यूरोप का जो नेतृत्व अपनी जनता और पहचान से कटता जा रहा है, उसे ये तीनों अलग थलग कर रहे हैं।
आख़िर यदि इनका एक मात्र उद्देश्य अहम की तुष्टि है तो फिर मेलोनी से इनके संबद्ध अच्छे क्यों हैं? जर्मनी के नेता जिस AFD को नाज़ी बता रहे थे आज़ ईस्ट जर्मनी में सौ प्रतिशत अचानक हावी हो गई। सच बात तो यह है कि अमेरिका का नया नेतृत्व धीरे धीरे पूरे यूरोप में ऐसी पार्टियों को खड़ा करता जाएगा जो वास्तव में यूरोप की रक्षा करना चाहते हैं। वामपंथ के लिए यह भारी खतरे की घंटी है। वामपंथ पैरासाइट विचारधारा है और अब अमेरिका यदि अपना शरीर इनको खून चूसने के लिए नहीं देगा तो यह कैसे सर्वाइव करेंगे?
अमेरिका यूक्रेन के साथ क्या ग़लत कर रहा है? एक हाथ दो, दूसरे हाथ लो। बात स्पष्ट है। जर्मनी, यूरोपियन यूनियन में सबसे आगे बढ़कर बोल रहा था कि रूस के पास बहुत संसाधन हैं, वह अकेले कैसे इतना संसाधन ले सकता है? इसका बटवारा होना चाहिए। युद्ध इसीलिए तो हुआ था कि पुतिन हटेगा, फिर रूस के संसाधन हड़पे जायेंगे, यूक्रेन को किनारे लगाया जाएगा। अमेरिका अब कह रहा है कि सबसे ज़्यादा पैसे हमने लगाए हैं इसलिए हम डील करेंगे, और चूँकि पुतिन हार नहीं माना तो अब हम अपना हिस्सा यूक्रेन से लेंगे। यूरोप को हिस्सा नहीं मिल रहा, मिलेगा भी तो शायद उतना नहीं मिलेगा।
अब यह पपेट जेलेंस्की ओवल ऑफिस में जाकर डील करने के बजाय यह दिखाना चाह रहा था कि उसने बहुत शानदार काम किया है। जेलेंस्की ने युद्ध लड़कर कुल इतना ही किया है कि हथियार लॉबी के हथियार को एक्सपायर होने से पहले निकाल दिया और अमेरिका एवं यूरोप के टैक्स पेयर्स का पैसा इस लॉबी के पास पहुँचा दिया। अपने दसियों लाख लोग मरवा डाले। ज़मीन तब भी जानी थी और आज भी जा रही है। स्पष्ट बात है कि दूसरे के सहारे रहोगे तो खोना तय है।
ट्रम्प और वांस की यह बात लोगों को अच्छी नहीं लग रही है कि वह सबको कह रहा है कि अपना अपना देखो। और जहाँ अपना देखने लायक़ लोग नहीं हैं वहाँ मस्क माहौल बनाकर अपना अपना देखने लायक़ लोग खड़ा कर रहा है।
यूरोप को बामपंथ ने ऐसा जकड़ा है कि रोमानिया में चुनाव परिणाम अस्वीकार कर दिया जाता है, जीतने वाले को जेल में डाल दिया जाता है और यूरोप में यह स्वीकार्य है। अमेरिका में उभरा दक्षिण पंथ इस स्थिति को बर्दाश्त नहीं करेगा। इस बार मामला आर-पार का लग रहा है। भारत के लोगों को इस कांड का आनंद लेना चाहिए क्योंकि हम सब पहले से अपने सहारे हैं।
