डॉ. पवन विजय : वेस्सन्तर जातक और महाराजा हरिश्चन्द्र

वेस्सन्तर जातक कथा राजा हरिश्चन्द्र के त्याग पर आधारित है। एक बार बोधिसत्व वेस्सन्तर के रूप में जन्मे थे वेस्सन्तर बड़े दानी थे, उनकी दानशीलता की परीक्षा लेने के लिए शक्क यानी इन्द्र ने एक लीला रची। वेस्सन्तर के पास एक हाथी था जिसे उनसे एक ब्राह्मण ने दान में मांग लिया। इस हाथी की विशेषता यह थी कि वह अपनी इच्छानुसार वर्षा करा सकता था। इस कारण राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था पर इस हाथी को दान में दिए जाने के बाद राज्य में वर्षा नहीं हुई और उस हाथी के अभाव में यह अनावृष्टि शीघ्र ही अकाल में बदल गई।

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इस बात से जनता बहुत रुष्ट हुयी और वेस्सन्तर को सपरिवार राज्य से निष्कासित कर दिया। वेस्सन्तर को अपनी दानशीलता की परीक्षा देते हुए अपने धन से हाथ धोना पड़ा और उन्हें अपने बच्चे और अपनी पत्नी सभी को बेचना पड़ा। उनकी पत्नी और बच्चे दास दासी बन गये पर वह अपनी दानशीलता की हर परीक्षा में खरे उतरे और इन्द्र ने उनकी दानशीलता से प्रसन्न होकर उनका परिवार, उनका खोया हुआ वैभव और उनका राज्य उन्हें वापस कर दिया ।

इस कहानी में हाथी राजलक्ष्मी का प्रतीक है।सत्यवादी दानवीर महाराजा हरिश्चंद्र भगवान राम के पूर्वज थे। बौद्ध कथाएं रामायण युग से बहुत ही बाद की हैं जो रामकथा से प्रेरित होकर जातक कथाओं के रूप में हमारे सामने आती हैं। जातक का अर्थ जन्म संबंधी होता है, जिस तरह से लोक कहानियां शास्त्रों को ग्राम और बिना पढ़े लिखे लोगों से परिचय करवाने और व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में योगदान देती हैं उसी तरह जातक कथाएं भी अवतार और पुरखों की बातों को स्थानीय भाषा में प्रस्तुत करती थीं।

अभी कोई नवबौद्ध आएगा और बोलेगा कि रामायण पुष्यमित्र शुंग के काल में लिखी गई खैर अगली बार मैं भगवान बुद्ध की दृष्टि में भगवान राम के बारे में लिखूंगा।

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