डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : भोग के प्रतीक रावण का दग्ध होना भारत की चेतना का प्रतिबिम्ब
आज रावण को जलाने का दिन है, लेकिन कुछ लोग रावण को नहीं जलाना चाहते। रावण जलता तो बहुतों का नहीं है, लेकिन वे रावण को जलाने के विषय में सोचते तो हैं। रावण को जलाने का उत्सव तो करते हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि रावण को क्यों बार-बार जलाना, क्या एक बार जलाने से मन नहीं भरा जो आप युगों-युगों से बार-बार जलाते आ रहे हैं?
वास्तविकता तो यह है कि रावण का दग्ध होना भारत की चेतना का प्रतिबिम्ब है। भारत वही है जो रावण को दग्ध करता है। रावण का दहन तब होता है जब जीवन में राम की प्रभुता होती है।
रावण असीम भोग का प्रतीक है, जो दशों इन्द्रियों के अनियंत्रित उपभोग को प्रदर्शित करता है। जब मन और बुद्धि भी इन इन्द्रियों की अनुचर बन जाती हैं तब भोग ही जीवन का सर्वस्व बन जाता है और इस भोग के लिए संयम, शान्ति, संतुलन, संतोष, मर्यादा सबका परित्याग कर पूरी दुनिया पर विजय कर भोगाच्छादित सोने की लंका बनायी जाती है। भोग की अनियंत्रित भावना की गर्जना ही रावण है।
रावण का वध तब होता है जब मन में राम रमते हैं। ‘रमन्ते योगिनः रस्मिन् स रामः’ योगी अपने मन में राम का रमण कर रावण का संहार करते हैं। शुद्ध, बुद्ध, निर्विकार आत्मतत्व का बोध ही राम है।
जब राम का बोध होता है तब मर्यादा, शक्ति और संयम का जागरण होता है, जिससे रावण का स्वयमेव वध हो जाता है। इसी भाव को प्रदर्शित करने के लिए भारत युगों-युगों से रावण का वध करते आ रहा है और यही भारत के अस्तित्व का आधार भी है। जब तक भारत रावण का वध करता रहेगा तब तक भारत, भारत रहेगा।
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
साभार-डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह