डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : जातिवाद योग्यता के भक्षण और अयोग्यता के पोषण पर पल्लवित-पुष्पित होता है

जातिवाद का सबसे विद्रूप पक्ष यह होता है कि किसी योग्य व्यक्ति को इसलिए नकार दिया जाता है कि वह उनकी जाति का नहीं और अयोग्य व्यक्ति को इसलिए स्वीकार किया जाता है कि वह उनकी जाति का है।

जातिवाद गुण, योग्यता और नैतिकता का भक्षण करके उदरपूर्ति करता है। भारत में जातियों का उद्भव गुण एवं व्यवसाय (कर्म) के आधार पर हुआ था, जिसके प्रमाण आज भी उपलब्ध हैं, लेकिन आज जातिवाद योग्यता का भक्षण करता है।

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आज किसी सामान्य व्यक्ति की तो बात दूर महापुरुषों तक का भी मूल्यांकन जाति के आधार पर होता है। किसी महापुरुष के प्रति गुणों के आधार पर श्रद्धा-अश्रद्धा नहीं रखी जाति बल्कि उसकी जाति को देखकर रखी जाति है।

जातीय श्रेष्ठता का झूठा दम्भ आज उत्श्रृंखलता और उद्दण्डता के रूप में प्रकट होता है। जिनके अंदर अपने जातीय गुण का क, ख भी नहीं होता वे उतने ही जातीय दम्भ से सबसे अधिक भरे रहते हैं। एक अयोग्य अपराधी इसलिए स्वीकार्य हो जाता है क्योंकि वह उनकी जाति का है और एक महात्मा इसलिए अस्वीकार्य है क्योंकि वह उनकी जाति का नहीं है।

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