डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : “अमृतत्व ही भारत का इतिहास बोध है”

अंग्रेजों ने कहा कि भारत के पास कोई इतिहास बोध नहीं था। भारत के इतिहास को हमने कालक्रमित कर बोध कराया। अंग्रेजों की इस बात को उपनिवेशकालीन और स्वराज के बाद के अधिकांश इतिहासकार रटते चले आ रहे हैं।

वास्तविकता यह है कि जब आप किसी सभ्यता या संस्कृति की मूल चेतना को नहीं पहचानते तब आप उसकी विशेषता को भी उसका अवगुण मान लेते हैं।

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भारत का इतिहास केवल राजाओं के युद्ध का इतिहास नहीं है। किस वर्ष कौन जीता और कौन हारा इसका इतिहास नहीं है, बल्कि चिन्तन और बोध सातत्य का इतिहास है। इतिहास को केवल राज्य तक सीमित मानने वाले लोग उस दृष्टि को पहचान ही नहीं सकते जो तत्व के सातत्य पर निर्भर है।

यहाँ न व्यक्ति महत्वपूर्ण है और न काल महत्वपूर्ण है यहा वह तत्व महत्वपूर्ण है जो अमृत है।

अमृतत्व ही हमारा इतिहास है। राजा कोई भी हो और कभी भी हो लेकिन उसकी व्यवस्था और व्यवहार में उसी अमृतत्व का दर्शन होना चाहिए। जैसे वैदिक ऋषियों ने सुदीर्घ काल तक वेद के मंत्रों के रूप में जिस सत्य का साक्षात्कार किया वह सत्य हमारे लिए महत्वपूर्ण था न कि वैदिक ऋषि, इसलिए ऋषियों ने अपने नाम को नहीं अपने बोध को आगे किया। उपनिषदों में एक ही तत्व चिन्तन परिलक्षित होता है चाहे वह उपनिषद पांच सौ या हजार वर्ष आगे पीछे लिखा गया हो।

हम प्रत्येक काल और प्रत्येक व्यक्ति में उसी तत्व बोध की खोज करते थे। कोई राजा हो, कवि हो, साहित्यकार हो, या शिल्पकार, संगीतकार या किसी भी विधा से जुड़ा हो हम उसकी विधा में उसी अमृता की खोज करते थे जो हमारे उत्स में विद्यमान था। जिसमें उस अमृततत्व की झलक होती थी वही हमारा नायक होता था और वही हमारे इतिहास का अंग होता था।

इसी प्रकार हमारे लिए कोई भी ग्रंथ महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि उस ग्रंथ में अमृत तत्व का कितना प्रवाह है। हम किसी ग्रंथ के वाद-प्रतिवाद में अमतृतत्व के नीर-क्षीर विवेक को महत्व देते चले आ रहे हैं। यही हमारा इतिहास सातत्य है।

हमारा इतिहास कभी भूत नहीं हुआ। हम इतिहास को वर्तमान में लेकर चलने वाले लोग हैं, इसलिए त्रेता के रामराज्य की खोज कलियुग में भी करते हैं। क्या दुनिया की कोई और सभ्यता है जो अपने अतीत को वर्तमान में लाने के लिए इतनी उत्सुक हो? वह नहीं हो सकती, क्योंकि उसकी तत्व पर दृष्टि ही नहीं है और न ही उसके पास तत्व सातत्य है। वह व्यक्तियों और काल की गणना करती चली आ रही है, इसलिए उसके अतीत और वर्तमान में बहुत बड़ा भेद है और हमारा इतिहास तत्व प्रवाह की एक सतत प्रक्रिया है।

 

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