राजनीतिक ऑक्सीजन : अकर्मण्य केंद्र से गुहार लगा रहे..कर्मयोगी मैदान में खुद डटें

प्रसिद्ध कहावत है कि होनहार लोग काम करते हैं जबकि अकर्मण्य लोग छाती पीटते रहते हैं। इन दिनों ऐसा ही महाराष्ट्र, दिल्ली और योगी आदित्यनाथ के शासन वाले उत्तर प्रदेश के साथ भी घट रहा है। इन राज्यों में कोरोनावायरस की दूसरी लहर के चलते ऑक्सीजन की भारी कमी है, लेकिन अकर्मण्यता और काम करने की लगन का पता ऐसे ही वक्त में चलता है।

एक ओर जहां महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ऑक्सीजन के लिए  केन्द्र सरकार के सामने झोली फैलाकर खड़े हो गए हैं, वही इस दौरान उत्तर प्रदेश ने स्वयं ही लिक्विड ऑक्सीजन का प्लांट बनाने की दिशा में शुरुआत की है जो अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय है।

कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा पीड़ित महाराष्ट्र है, यही कारण है कि वहां ऑक्सीजन सिलेंडरों की भारी कमी पड़ गई है। कुछ इसी तरह राजधानी दिल्ली में भी गंभीर मरीजों के लिए ऑक्सीजन की भारी कमी हो गई थी जिसे केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद ठीक किया जा सका। महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे से लेकर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल तक इस मुद्दे पर मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि ऑक्सीजन की कमी पर केंद्र सरकार ध्यान नहीं दे रही। केजरीवाल तो आरोप लगाते हुए यहां तक कह गए कि दिल्ली के हिस्से की ऑक्सीजन भी दूसरे राज्यों को दी जा रही है।

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केजरीवाल की ऑक्सीजन गुहार पर हर्षवर्धन 24 अप्रैल को ट्वीट कर बोले- पूरा कोटा दिया, इस्तेमाल करना उनकी जिम्मेदारी।

साफ है कि इन दोनों ही राज्यों की सरकारों के मुख्यमंत्री ऑक्सीजन की कमी के मुद्दे पर केवल रोना रोकर राजनीति कर रहे हैं, जबकि उत्तर प्रदेश इस बीच अपवाद बन गया है।

संसाधनों के लिहाज से भी देखा जाए तो उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र और दिल्ली से पीछे ही है। इसके बावजूद कोरोनावायरस से लड़ाई में यूपी अभी तक नंबर वन रहा है। ऑक्सीजन का मुद्दा इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार शिकायत और सुविधाओं का रोना रोने के बजाए खुद संसाधनों को पैदा करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है जो कि उसके अव्वल रहने की मुख्य वजह है।