OBC वर्ग के लिए भाजपा-कांग्रेस नीति.. आंकड़े चौंका देने वाले

आसन्न लोकसभा चुनाव में अडानी के साथ ही राहुल गांधी मोदी सरकार को घेरने के लिए लगातार ओबीसी, जातिगत जनगणना की बात कर रहे हैं। हालांकि हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की इस मांग को जनता ने ही सिरे से नकार दिया है। विपक्षी दलों के बीच परेशानी की बात यह है कि रोहित वेमुला से लेकर राफेल-बीबीसी डक्यूमेंट्री हुआ, मंदिर की तिथि, 370, पेगासस कांड और जार्ज सोरोस फुस्स हुआ, मणिपुर-खालिस्तानी कांड हो गया, लंबे समय तक अडानी-अडानी शोर रहा लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बेदाग छवि एक भी किसी तरह का कलंक का टीका विपक्षी दलों का कुनबा मिलकर लगा नहीं पाया। कुल मिलाकर यह कि सारा प्रोपेगैंडा पाताल में पब्लिक ने ही दफन कर दिया तो एक नया प्रकरण सामने लाया जा रहा था “ओबीसी”।


आसन्न लोकसभा चुनाव में ओबीसी को लेकर कांग्रेस की सोच क्या है यह कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ने ओबीसी कोटे में ओबीसी वर्ग के आरक्षण कोटे का हक मारकर बता दिया।

”2009 के अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने यही इरादा भी जताया और 2014 के कांग्रेस के घोषणापत्र में भी इन्होंने साफ-साफ कहा था कि वह इस मामले को कभी भी छोड़ेंगे नहीं। मतलब धर्म के आधार पर आरक्षण देंगे। यदि दलितों का, आदिवासियों का आरक्षण कट करना पड़े तो करेंगे।”

OBC की बात कर रहे कांग्रेस को यह जानना चाहिए कि भाजपा ने OBC के लिए किया क्या है..!

 देश को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री भाजपा ने दिया

देश पर 60 साल तक शासन करने वाली कांग्रेस की जगह बीजेपी ने देश को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री दिया। बीजेपी ने 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के ओबीसी उम्मीदवार के तौर पर पेश किया और पीएम मोदी के नेतृत्व में भारी जीत हासिल की। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब मोदी खुद को पिछड़ी मां का बेटा बता रहे थे। उस वक्त कांग्रेस के नेता राहुल गांधी अपना जनेऊ दिखाकर घूम रहे थे और अपनी सारस्वत कश्मीरी ब्राह्मण की पहचान को आगे कर रहे थे।

कांग्रेस ने 250 में 43 ओबीसी मुख्यमंत्री बनाए, बीजेपी ने 68 में 21 ओबीसी मुख्यमंत्री बनाए

ओबीसी को राजनीति में हिस्सेदारी देने के मामले में बीजेपी ने कांग्रेस को काफी पीछे छोड़ दिया है। आजादी के बाद अब तक बने सभी मुख्यमंत्रियों का आंकड़े को देखें तो ओबीसी मुख्यमंत्री बनाने के मामले में बीजेपी सबसे आगे है, जबकि कांग्रेस इस मामले में सबसे पीछे है। बीजेपी ने अब तक जितने मुख्यमंत्री बनाए हैं, उनमें से 30.9 फीसदी ओबीसी हैं। जबकि कांग्रेस द्वारा बनाए गए मुख्यमंत्रियों में सिर्फ 17.3 फीसदी ओबीसी हैं। अन्य दलों के लिए ये आंकड़ा 28 फीसदी है। संख्या की बात करें तो बीजेपी ने अब तक 68 मुख्यमंत्री बनाए हैं, जिनमें 21 ओबीसी थे। जबकि कांग्रेस के बनाए हुए 250 मुख्यमंत्रियों में सिर्फ 43 ही ओबीसी हैं।

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कांग्रेस के मुकाबले ओबीसी को मुख्यमंत्री बनाने में बीजेपी ने बाजी मारी

ओबीसी मुख्यमंत्रियों के आंकड़े को देखें तो स्थिति और स्पष्ट हो जाएगी। कांग्रेस सिस्टम के दौर में ओबीसी के मुख्यमंत्री बेहद कम बने। इसलिए कांग्रेस का कुल आंकड़ा इस मायने में बहुत खराब रहा। जब बीजेपी का उभार होता है, तब तक ओबीसी राजनीति में मजबूत होने लगे थे। बीजेपी ने खुद को ब्राह्मण-बनिया पार्टी की छवि से मुक्त करते हुए कई पहल किए। इसलिए 90 के दौर में उसने कल्याण सिंह, शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती, बाबू लाल गौर, विनय कटियार आदि को आगे कर दिया। इस तरह ओबीसी को मुख्यमंत्री बनाने में भी बीजेपी ने बाजी मार ली।

लोकसभा में बीजेपी के 303 में से 85 सांसद ओबीसी

लोकसभा में बीजेपी के 303 में से 85 सांसद ओबीसी हैं। यानि संसद में बीजेपी के 27 प्रतिशत सांसद हैं। वहीं कांग्रेस के कुल सांसदों की संख्या 52 है। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने जीत का परचम लहराया था। पूरे देश में चली पीएम मोदी की लहर के बाद बीजेपी ने 300 का आकंड़ा पार कर लिया। वहीं कांग्रेस सिर्फ 52 सीटों पर ही सिमट गई। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं।

देशभर में बीजेपी के 1,358 में से 365 विधायक ओबीसी

देशभर में बीजेपी के कुल 1,358 विधायक हैं। इनमें 365 विधायक ओबीसी समाज से हैं। यानि बीजेपी में 27 फीसदी विधायक ओबीसी से आते हैं। इससे साफ होता है कि बीजेपी ओबीसी समाज के लोगों ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया है।

बीजेपी के 163 में से 65 विधान पार्षद ओबीसी

देशभर में बीजेपी के विधान पार्षदों (एमएलसी) के आंकड़ो पर गौर करें तो पाएंगे कि बीजेपी 40 फीसदी एमएलसी ओबीसी  हैं। देशभर में बीजेपी के विधान पार्षदों की संख्या 163 है जिनमें 65 ओबीसी समाज से हैं।

भाजपा के मुख्यमंत्रियों, सांसदों, विधायकों, विधान पार्षदों के आंकड़े बताते हैं कि वह हमेशा से ओबीसी हितैषी रही है। केंद्र से लेकर भाजपा शासित राज्यों में भी ओबीसी वर्ग के जनप्रतिनिधियों की भागीदारी पहले की सरकारों की तुलना में कहीं अधिक है।

मोदी सरकार ने पिछड़े 10 वर्षों में पिछड़ा वर्ग के अनेक काम किए हैं। इससे ओबीसी समाज के लोगों को फायदा पहुंचा है। इस पर एक नजर-

पीएम मोदी ने दिया राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा

पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का काम पीएम मोदी ने किया है। कांग्रेस ने 60 साल के शासनकाल में पिछड़े वर्ग के लिए कुछ नहीं किया। 1952 में काका कालेकर के नाम से कमीशन बना था। इस कमीशन ने 1955 में भारत सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी कि देश में 52 प्रतिशत पिछड़ी जाति के लोग वास करते हैं, लेकिन उस समय की कांग्रेस सरकार ने कमीशन की रिपोर्ट के बाद भी पिछड़ी जातियों को आरक्षण नहीं दिया था। 1977 में पिछड़े वर्ग के लोगों ने काका कालेकर कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने की मांग उठाई। 1993 में कांग्रेस सरकार ने पिछड़ा आयोग बनाकर उसे एससी कमीशन से संबद्ध कर दिया, लेकिन अगस्त 2018 में राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। आज उसी की परिणाम है कि एमबीबीएस की सीटों में पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की घोषणा हो चुकी है।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को सिविल कोर्ट के अधिकार

मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को न केवल संवैधानिक दर्जा दिया बल्कि इसके लिए 123वां संविधान संशोधन करके संविधान में एक नया अनुच्छेद 338बी जोड़ा गया। आयोग को अब सिविल कोर्ट के अधिकार प्राप्त होंगे और वह देश भर से किसी भी व्यक्ति को सम्मन कर सकता है और उसे शपथ के तहत बयान देने को कह सकता है। उसे अब पिछड़ी जातियों की स्थिति का अध्ययन करने और उनकी स्थिति सुधारने के बारे में सुझाव देने तथा उनके अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की सुनवाई करने का भी अधिकार होगा। संविधान संशोधन के बाद अब इस आयोग को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग या राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के बराबर का दर्जा मिल गया है। इस तरह राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का दर्जा बढ़ाना मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि है।

ओबीसी जातियों के बंटवारे के लिए रोहिणी आयोग का गठन

बीजेपी का ओबीसी आबादी के लिए एक अन्य बड़ा कदम है ओबीसी जातियों के बंटवारे के लिए रोहिणी आयोग का गठन। 2 अक्टूबर, 2017 को केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत एक आयोग के गठन की अधिसूचना जारी की। इस आयोग को तीन काम सौंपे गए हैं- एक, ओबीसी के अंदर विभिन्न जातियों और समुदायों को आरक्षण का लाभ कितने असमान तरीके से मिला, इसकी जांच करना। दो, ओबीसी के बंटवारे के लिए तरीका, आधार और मानदंड तय करना, और तीन, ओबीसी को उपवर्गों में बांटने के लिए उनकी पहचान करना। आयोग की अध्यक्षता पूर्व न्यायाधीश जी. रोहिणी को सौंपी गई थी। इस आयोग के बनने से अति पिछड़ी जातियों को न्याय मिल पाएगा। इस आयोग के गठन के पीछे तर्क यह था कि ओबीसी में शामिल पिछड़ी जातियों में पिछड़ापन समान नहीं है। इसलिए ये जातियां आरक्षण का लाभ समान रूप से नहीं उठा पातीं। कुछ जातियों को वंचित रह जाना पड़ता है। इसलिए ओबीसी श्रेणी का बंटवारा किया जाना चाहिए।


कर्नाटक में पिछड़े वर्ग के आरक्षण की लूट को लेकर पूरे देश में पिछड़ा वर्ग के संगठनों में आक्रोश फैल गया है। संविधान बचाओ की बात लगातार करने वाली कांग्रेस बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान की भावना के विपरीत धर्म के आधार पर पूरे देश में आरक्षण लागू करना चाहती है और अपनी मंशा को अमलीजामा पहनाने के लिए अपने पार्टी के द्वारा शासित प्रदेश कर्नाटक से इसकी शुरुआत भी कर दी है।

छत्तीसगढ़ के विभिन्न पिछड़ा वर्ग संगठनों में इसे लेकर आक्रोष व्याप्त है और ताबड़तोड़ विभिन्न संगठनों के द्वारा कांग्रेस के इस फैसले को लेकर लगातार बैठक की जा रही है। कांग्रेस समर्थित पिछड़े वर्ग के संगठन भी इस विषय पर भाजपा के साथ खड़े हुए हैं।

माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ की राजनीति में पिछड़े वर्ग की जनसंख्या 52℅ है और कर्नाटक में पिछड़े वर्ग के आरक्षण का कोटा लूटने के कारण कांग्रेस से आक्रोशित पिछड़ा का वोट एकमुश्त भाजपा के खाते में जाएगा।

सभी मुसलमानों को पिछड़े वर्ग के रूप में वर्गीकृत करने वाली कर्नाटक की नीति पर सवाल उठाते हुए, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहीर ने कहा कि राज्य के मुख्य सचिव को उस रिपोर्ट को प्रस्तुत नहीं करने के लिए बुलाया जाएगा जिसके आधार पर मुसलमानों को धर्म के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया था।

अहीर ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार की ओबीसी आरक्षण नीति अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित कर रही है। यह 26 अप्रैल को राज्य में लोकसभा के लिए पहले दौर के मतदान से कुछ दिन पहले आया है।

आयोग ने राज्य में संपूर्ण मुस्लिम समुदाय को पिछड़ी जाति के रूप में वर्गीकृत करने की आलोचना की. “श्रेणी II-बी के तहत मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत कोटा है, फिर उन्हें दो अन्य श्रेणियों के तहत ओबीसी कोटा क्यों दिया जाता है? अहीर ने बुधवार को कहा, कर्नाटक सरकार द्वारा प्रस्तुत जवाब के संदर्भ में, यह स्पष्ट है कि वास्तविक अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकार छीने जा रहे हैं।

आयोग का कहना है कि 2023 में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की 930 पीजी सीटों में दिए गए आरक्षण की जब जांच की गई, तो यह तथ्य सामने आया है। आयोग ने पाया कि 930 में से 150 सीट मुस्लिम वर्ग को आरक्षित की गई हैं, जो करीब 16% हैं। इनमें मुस्लिम वर्ग की उन जातियों को भी लाभ दिया गया है, जो आरक्षण के दायरे में नहीं आतीं।

अहीर ने कहा कि राज्य की नीति के कारण मुसलमानों को चार प्रतिशत से अधिक ओबीसी कोटा मिल रहा है और वास्तविक ओबीसी समुदाय अपने अधिकारों से वंचित हो रहे हैं।

इस कारण छत्तीसगढ़ की सभी 11 सीटों पर भाजपा की जीत हो सकती है…!

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह देश में धर्म के आधार पर आरक्षण लागू करना चाहती है। प्रधानमंत्री मोदी बुधवार को अंबिकापुर में एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, ”जब कांग्रेस का घोषणापत्र आया तब से मैं कह रहा हूं कि कांग्रेस के घोषणापत्र पर मुस्लिम लीग की छाप है। जब संविधान बन रहा था तब काफी चर्चा और विचार के बाद बाबा साहब अंबेडकर के नेतृत्व में यह तय किया गया था कि भारत में धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं होगा। आरक्षण होगा तो मेरे दलित भाई बहनों के लिए, मेरे आदिवासी भाई बहनों के लिए होगा। लेकिन धर्म के नाम पर आरक्षण नहीं होगा। लेकिन वोट बैंक की भूखी कांग्रेस ने कभी इन महापुरुषों की बातों की परवाह नहीं की, संविधान की पवित्रता की बात नहीं की, बाबा साहब अंबेडकर के शब्दों की परवाह नहीं की।”

धर्म के आधार पर 15 फीसदी आरक्षण 

प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया, ”कांग्रेस ने बरसों पहले आंध्र प्रदेश में धर्म के आधार पर आरक्षण देने का प्रयास किया था। कांग्रेस ने इसे पूरे देश में लागू करने की योजना बनाई थी। इन लोगों ने धर्म के आधार पर 15 फीसदी आरक्षण की बात कही थी और यह भी कहा था कि एससी, एसटी, ओबीसी का कोटा है उसमें से कम करके धर्म के आधार पर कुछ लोगों को आरक्षण दिया जाए।” उन्होंने कहा, ”2009 के अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने यही इरादा भी जताया और 2014 के कांग्रेस के घोषणापत्र में भी इन्होंने साफ-साफ कहा था कि वह इस मामले को कभी भी छोड़ेंगे नहीं। मतलब धर्म के आधार पर आरक्षण देंगे। यदि दलितों का, आदिवासियों का आरक्षण कट करना पड़े तो करेंगे।”

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