देवांशु झा : तेरा मेरा प्यार अमर

इस संसार की सबसे सुन्दर आवाज… स्वरसिद्धा को प्रणाम।

उत्तर से दक्षिण तक ऐसे गायकों की संख्या दर्जनों है, जिन्होंने अपने जीवन में हजारों गाने गाए। किन्तु…ऐसा कोई एक गायक नहीं जिसके गाए हजारों गानों में से एक हजार यादगार गानों की सूची तैयार की जा सके। ऐसा कहते हुए मैं स्वस्थ और सूक्ष्म कला-बोध की अपेक्षा करता हूॅं। भारत के कई हिस्सों में कलाकारों के प्रति तटस्थ आलोचना दृष्टि नहीं है। उनके लिए कलाकार अमर होते हैं। देवी-देवता सरीखे। मैं हर कलाकार को साधारण मनुष्य रूप में देखता हूॅं। असाधारणता को बहुत संभल कर देखना समझना पड़ता है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि लोकप्रिय अथवा सुगम संगीत के संसार में लता अनन्य हैं। क्योंकि वे चालीस, पचास,साठ और सत्तर के दशक तक अपने अधिकांश गीतों को असाधारणता प्रदान करती हैं। इसीलिए उनके हजारों गीत अमर हैं।

Veerchhattisgarh
-देवांशु झा

असली नकली फिल्म का बड़ा ही भावप्रवण प्रेमगीत है: तेरा मेरा प्यार अमर..। मैंने लता पर अपनी पिछली कई लेख में यह उल्लेख किया है कि वह स्वर की शुद्धता में अन्यतम हैं। ईश्वर ने उन्हें यह शुद्धता प्रदान की थी। वह गाने को उठाती हुई जिस तरह से हमें विस्मित करती हैं उसी तरह से पंक्ति– पंक्ति, मुखड़ा अन्तरा और समापन तक जोड़े रखती हैं। वह संतुलन महान कलावंतों को ही मिलता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि उनकी अद्वितीय आवाज राग विराग को एक साथ बांधे रखती है। यह वैशिष्ट्य अन्य किसी गायक में उस सातत्य के साथ नहीं मिलता। वह प्रेम की आश्वस्ति को गाते हुए विरह को ध्वनित करती हैं और विरह की अनिवार्यता को गाते हुए प्रेम को थामे रखती हैं। इन दो विरोधी स्वरों को उनका कंठ जिस संतुलन के साथ साधता है, वह चकित करता है। आप सुनिए–क्या कहा है चांद ने जिसको सुन के चांदनी…हर लहर पे झूम के क्यूं ये नाचने लगी। कैसी सहजता है! किन्तु भाव..ज्यों दूर से दीखती गहराती नदी के सीने पर खेलती लहरें।

उनकी महानता इस बात में नहीं कि हम आलतू फालतू विशेषणों से उन्हें ढंक दें। उनकी महानता अनुभव की भावभूमि पर है। वहां उतरना होगा। एक एक शब्द की भव्य सत्ता को सुर की नदी में डुबाती हुई वह बहती हैं। वह आवाज! और उच्चारण !!वैसी अन्यतम आवाज मैंने नहीं सुनी। आप ने सुनी हो संभवतः! वह आवाज पूर्णता की परिभाषा है। किन्तु लता केवल आवाज का आवरण नहीं। वह उस आवाज की आंखें बनती हैं। ऐसी आंखें जो देखती हैं, दिखाती भी हैं। अनुभूति की वे आंखें गायक और श्रोता दोनों की हैं। समदृष्टि! समानुभूति! यही उनका वैशिष्ट्य है। अस्सी के बाद वह अपने दिव्य स्वर को खोने लगती हैं। तब उन्हें सुनते हुए मुझे कष्ट होता है और मैं मन ही मन कहता हूॅं कि लता दी, तुम मत गाओ।‌ मैं जानता हूॅं, उनके अंध प्रशंसकों को मेरी यह बात अरुचिकर लगेगी। परन्तु यह सत्य है।

सुगम संगीत के संसार में भला ऐसा कौन सा गायक हुआ जिसने अपने समय के हर बड़े सितारे को गाते हुए हर गुमनाम , अपरिचित सितारे को भी अपनी आवाज से अमर कर दिया। ऐसी कोई अभिनेत्री रही हो तो मुझे बता दीजिए। उन्होंने जिसे छू दिया, वही असाधारण हो गई। वह हर खांचे में उतर गईं। ऐसा क्यों हुआ? ऐसा इसलिए हुआ कि वह बहती हुई सलिला हैं। सबको अपने स्पर्श से दीप्त करती हैं। रति अग्निहोत्री मेरी चेतना में आजतक केवल इसलिए रह गई हैं कि लता ने उनके लिए गाया: तेरे मेरे बीच में… उदाहरण देने के लिए बैठ जाऊं तो… मैं तो इतना ही जानता हूॅं कि गायन के संसार में साधारण से असाधारण तक ले जाने की यह कथा अदृष्टपूर्व है। कोई है ही नहीं उनके समकक्ष। वह अधिष्ठात्री स्वरसिद्धा हैं। एक पुरुष होकर मैंने उन्हें सुनते हुए सहस्रों बार सरेंडर किया है। मैं उन्हें बारम्बार प्रणाम करता हूॅं।

चलती हूॅं मैं तारों पर….

असली नकली का गाना लिंक में है…

https://youtu.be/FfTRwfysQEE?si=sV790YWMb67Kc3S9

 

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