स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक : विश्वास और विकास
यदि आप अपने जीवन में सफल होना चाहते हैं, तो इसके लिए एक बहुत मूल्यवान कारण है ‘विश्वास’। अर्थात “दूसरे लोग आप पर विश्वास करें।” “यदि आप दूसरों का विश्वास जीत लेंगे, तो वे आपको अनेक प्रकार से सहयोग एवं सुख देंगे। तब आप अपने जीवन में सफल हो जाएंगे।”
यदि आप दूसरों का विश्वास नहीं जीत पाए, तो दूसरे लोग आप पर शंका करेंगे, कदम कदम पर संशय करेंगे। “ऐसी स्थिति में वे लोग न तो आपको कोई विशेष सहयोग देंगे, और न ही सुख। परिणाम यह होगा, कि आप चारों ओर से निराश हो जाएंगे। हो सकता है, कि धीरे-धीरे आप डिप्रेशन की स्थिति में चले जाएं। तब आप अपने जीवन में असफल हो जाएंगे।” “इसलिए यदि आप जीवन में सफल होना चाहते हों, तो दूसरों का विश्वास अवश्य ही जीतें।”
“यह विश्वास धन से नहीं खरीदा जाता। यह किसी बाजार में नहीं मिलता, किसी दुकान पर नहीं बिकता, बल्कि सेवा परोपकार दान दया नम्रता सभ्यता आदि उत्तम गुणों को धारण करने से मिलता है।”
यदि आपने इन सेवा परोपकार आदि उत्तम गुणों को धारण कर के दूसरों का विश्वास प्राप्त कर लिया, तो “वे लोग आपके मौन रहने पर भी आपकी भावनाओं को समझ जाएंगे। और यदि आपने दूसरों का विश्वास प्राप्त नहीं किया, यदि दूसरे लोग आप पर संशय करते होंगे, तो आपकी सीधी सरल स्पष्ट भाषा को भी नहीं समझेंगे, और उसके उल्टे सीधे अर्थ लगाएंगे। तब आपको बहुत कष्ट होगा।” “ऐसे कष्ट से बचने के लिए यही बुद्धिमत्ता है, कि सेवा परोपकार आदि उत्तम गुणों को धारण कर के अपना व्यवहार शुद्ध रखें।”
“इसके साथ ही साथ जीवन की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है, कि दूसरों के साथ आप का व्यवहार पारदर्शी हो। अर्थात आप दूसरों के साथ सच्चाई और ईमानदारी से व्यवहार करें। झूठ छल कपट चालाकी धोखाधड़ी आदि दोषों से रहित हो कर अच्छा व्यवहार करें। तभी आप दूसरों का विश्वास जीत पाएंगे। तभी दूसरों से सहयोग एवं सुख मिलेगा। और तब ही आपका जीवन सफल होगा, अन्यथा नहीं।”
साभार- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”