नेहरू सरकार से लंबित क्षतिपूर्ति राशि किसानों को PM मोदी के कार्यकाल में मिली
नेहरू सरकार के शासनकाल की लंबित क्षतिपूर्ति राशि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काल में पाकर 56 वर्षों बाद अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले के गांववालो के चेहरे खिले हैं।

बीते दशकों की सरकारों ने इस विषय को लेकर कोई रुचि नहीं दिखाई। मोदी सरकार ने करीब साढ़े पांच दशक बाद जमीन के क्षतिपूर्ति राशि की सुध ली है। तत्कालीन समय में नेहरू सरकार के निर्देश पर 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने छावनी, बंकर और बैरक बनाने के लिए गांववालों की जमीनों का अधिग्रहण किया था।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने ग्रामीणों को मुआवजा दिलाने की ठानी और इस दिशा में प्रयास करते रहे। आखिरकार सरकार ने गांववालों को 38 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया जो लोगों की जमीनों के हिसाब से उनमें बांटा जाएगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शुक्रवार (19 अक्टूबर) को पश्चिन कामेंग जिले के बोमडिला में आयोजित विशेष कार्यक्रम में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने ग्रामीणों को मुआवजे के चेक बांटे। रिजिजू ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, ”ग्रामीणों को कुल 37.73 करोड़ रुपये के चेक बांटे गए। वे सामुदायिक जमीनें थीं। इसलिए जो बड़ी राशि उन्हें मिली है वह गांववालों के बीच बांटी जाएगी।”
जिन लोगों को मुआवजे के चेक मिले, उनमें 6.31 करोड़ रुपये का मुआवजा पाने वाले प्रेम दोरजी ख्रीमे, 6.21 करोड़ रुपये का मुआवजा पाने वाले फुंत्सो खावा और 5.98 करोड़ रुपये का मुआवजा पाने वाले खांडू ग्लो शामिल हैं। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद सेना ने जमीन के एक बड़ा हिस्से का छावनी, बंकर, बैरक, सड़क, पुल और अन्य जरूरतों के लिए अधिग्रहण किया था। हालांकि, पिछले वर्ष तक जमीन मालिकों को कोई मुआवजा नहीं दिया गया था। रिजिजू मूल रूप से अरुणाचल प्रदेश से आते हैं। उन्होंने रक्षा मंत्रालय से पैरवी की और मुआवजे की स्वीकृतती हो गई। रिजिजू ने कहा, ”सेना के द्वारा जमीन अधिग्रहण राष्ट्रहित में किया गया था लेकिन किसी सरकार ने 1960 से अरुणाचल प्रदेश के ग्रामीणों को मुआवजा देने की सुध नहीं ली। आखिरकार इसे मंजूरी देने के लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण का आभारी हूं। कुल 37.73 करोड़ रुपयों के चेक दिए गए।”
