समाजवाद,धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका..

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है,जिसमें संविधान की प्रस्तावना में बाद में जोड़े गए दो शब्द समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष को हटाने की बात याचिकाकर्ता ने कही है। दलील दी गई है कि सुप्रीम कोर्ट घोषित करे कि प्रस्तावना में दिये गये समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा गणतंत्र की प्रकृति बताते हैं और ये सरकार की संप्रभु शक्तियों और कामकाज तक सीमित हैं, ये आम नागरिकों, राजनैतिक दलों और सामाजिक संगठनों पर लागू नहीं होता। इसके साथ ही याचिका में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29ए (5) में दिये गये शब्द समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष को भी रद्द किए जाने की मांग की गई है।

संविधान सभा में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द को जोड़े जाने को लेकर हुई बहस और विरोध का जिक्र भी याचिका में करते हुए आगे कहा गया है कि संविधान सभा के एक मुख्य सदस्य के टी शाह ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द को संविधान की  प्रस्तावना में जोड़े जाने के पक्ष में थे। लेकिन प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर इसके पक्ष में नहीं थे। इसे लेकर संविधान सभा में जोरदार बहस हुई। 

के टी शाह ने तीन मौकों पर “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी”शब्द को जोड़े जाने की कोशिश की लेकिन लेकिन उनके प्रस्ताव को संविधान सभा ने खारिज कर दिया था। डॉ आंबेडकर ने इसे अनावश्यक करार दिया था और कहा था कि कोई व्यक्ति सेक्युलर रहना चाहता है या नहीं इसका फैसला उसे करने देना चाहिए। उन्होंने प्रस्तावना में “समाजवादी” शब्द जोड़े जाने का विरोध करते हुए कहा था कि इसे प्रस्तावना में शामिल किया जाना लोकतंत्र के सिद्धांत के खिलाफ है।