सुरेंद्र किशोर : बॉबी हत्याकांड.. 40 साल पहले.

10 मई, 1983 को ‘आज’ और ‘प्रदीप’ में छपी
बाॅबी हत्या कांड की सनसनीखेज खबर ने
राजनीति में हलचल मचा दी थी।
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उच्चत्तम स्तर से सी.बी.आई.पर दबाव डलवा कर कई प्रमुख
नेताओं को जेल जाने से बचा लिया गया था।


10 मई 1983 को पटना के दैनिक आज और दैनिक प्रदीप में सनसनीखज खबर छपी थी।
वह खबर श्वेतनिशा त्रिवेदी उर्फ बाॅबी की रहस्यमय हत्या को लेकर थी।
उससे पहले दो दिनों से पटना के राजनीतिक हलकों में यह सनसनीखेज अफवाह तैर रही थी कि बिहार विधान सभा की एक महिला स्टाफ की हत्या करके उसकी लाश गायब कर दी गई है।यह भी कि उसमें नेताओं का हाथ है।
उस संबंध में न तो कोई एफ.आई.आर.हुई थी और न ही बाॅबी क अभिभावक कुछ कहने को तैयार थीं।अखबार भी खबर नहीं दे रहा था।


उन दिनों मैं दैनिक ‘आज’ का संवाददाता था।प्रदीप के संवाददाता और अपने मित्र परशुराम शर्मा से मैंने विचार विमर्श किया।हमने तय किया कि
हम लोग रिश्क लेंगे।
रिश्क लिया।दोनों अखबारों में यह खबर छपी।
संयोग से उन दिनों पटना के डी.एम.,आर.के. सिंह Now Central Minister अैार वरीय एस.पी.किशोर कुणाल थे।
दोनों कत्र्तव्यनिष्ठ अफसर थे।
कुणाल जी ने पहल की।


आज और प्रदीप में छपी खबरों को आधार बना कर प्राथमिकी दर्ज कराई।प्राथमिकी में दोनों अखबारों के नाम दर्ज हैं।
कब्र से लाश निकाली गई।जांच आगे बढ़ी।
जब बड़े -बड़े सत्ताधारी नेता फंसते नजर आए तो मामला सी.बी.आई. को सौंप दिया गया।
उच्चत्तम स्तर से सी.बी.आई.को यह निदेश
मिला कि इस केस को रफा दफा कर दिया जाए।रफा दफा कर दिया गया।
उन दिनों अदालत भी आज की तरह सक्रिय नहीं थी।इसलिए पटना हाईकोर्ट में संबंधित दायर पी.आई.एल.भी अस्वीकृत कर दिया गया।
कुछ सत्ताधारी नेताओं को बचाने के लिए सी.बी.आई.ने श्वेत निशा त्रिवेदी उर्फ बाॅबी की हत्या को आत्म हत्या करार देकर उस केस को रफा दफा कर दिया था।
एक कांग्रेसी विधायक ने हाल में यह तर्क दिया है कि ‘‘यदि बाॅबी सेक्स स्कैंडल को हम तब रफा-दफा नहीं करवाते तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता।’’
बिहार विधान सभा सचिवालय की अति सुंदर महिला टाइपिस्ट बाॅबी को जहर दिया गया जिससे 7 मई 1983 को उसकी मौत हो गयी।
उस समय यह आम चर्चा थी कि किसने जहर दिया।
बाॅबी बिहार विधान परिषद की सदस्य कांग्रेसी नेत्री राजेश्वरी
सरोज दास की,जो विधान परिषद की उप सभापति रह चुकी थीं,गोद ली हुई बेटी थी।
हत्या उनके पटना स्थित सरकारी आवास में ही हुई।वे ईसाई थे।
हड़बड़ी में लाश को कब्र में दफना दिया गया।
दो डाक्टरों से निधन के कारणों से संबंधित जाली सर्टिफिकेट ले लिये गये।एक डाक्टर ने लिखा कि आंतरिक रक्त स्त्राव से बाॅबी की मृत्यु हुई।दूसरे ने लिखा कि अचानक हृदय गति रुक जाने से मृत्यु हुई।
लाश का पोस्ट मार्टम हुआ । वेसरा में मेलेथियन जहर पाया गया।
करीब सौ कांग्रेसी विधायकों ने तत्कालीन मुख्य मंत्री डा.जगन्नाथ मिश्र का घेराव करके उनसे कहा कि आप जल्द केस को सी.बी.आई.को सौंपिए अन्यथा आपकी सरकार गिरा दी जाएगी।किशोर कुणाल दबाव में नहीं आ रहे थे।
राज्य सरकार ने 25 मई 1983 को इस केस की जांच का भार सी.बी.आई.को सौंप दिया था।

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