दीपक विश्वकर्मा : यह कारण है भारतीय होने के वैशिष्ट्य और श्रेष्ठता बोध की गौरवपूर्ण अनुभूति का

ये हैं पद्मविभूषण श्री सुदर्शन साहू. साधारण सा पत्थर इनकी छेनी-हथौड़ी की मार सहकर पूजा के योग्य बन जाता है. भुवनेश्वर में इनका विशाल स्टूडियो है जहाँ अनेक कारीगर इनके मार्गदर्शन में पत्थरों पर कभी न मिटने वाली कविताएं लिखते हैं. श्री साहू और उनकी टीम ने ना सिर्फ भारतवर्ष बल्कि दुनिया के अनेक देशों में जाकर अपने हुनर से पत्थरों को जीवंत बनाया है.
प्राचीन मंदिरों और ऐतिहासिक ईमारतों को देखना मुझे हमेशा ही खूब भाता है. जब कभी मैंने ऐसे स्थानों की यात्रा की, हमेशा ही मन में यह सवाल उठते कि कौन लोग होंगे जिन्होंने समय की सीमाओं से आगे निकल जाने वाली संरचनाओं का निर्माण किया.
सुदर्शन जी के स्टूडियो में जाकर मुझे अपनी जिज्ञासाओं का समाधान मिल गया. वहां मैंने कारीगरों को देखा जो पूरी तरह से तल्लीन होकर अलग-अलग मूर्तियों के निर्माण में लगे हैं. उन मूर्तियों की बारीकियां ऐसी कि मानो अभी बोल पड़ेगी.
सुदर्शन जी ने बताया कि मूर्तियों के आकार और काम की बारीकी के अनुसार अलग-अलग मूर्तियों के निर्माण में अलग-अलग समय लगता है. इनके स्टूडियो में ऐसी भी कलाकृतियां हैं जिनके निर्माण में 10 या इससे अधिक वर्षो तक का समय लगा. उनकी कीमत भी है करोड़ों में.
ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित विष्णु जी की विशाल प्रतिमा को तैयार करने में लगभग 5 वर्षों का समय लगा. सुदर्शनजी के मार्गदर्शन में एक कारीगर पिछले लगभग 1 वर्ष से भगवान गणेश की मूर्ति पर काम कर रहे हैं लेकिन उनका कहना है की मूर्ति को अंतिम स्वरूप लेने में लगभग 6 महीने और लगेंगे.
एक पहलू यह भी है कि जब कोई भी कलाकार किसी कलाकृति का निर्माण शुरू करता है तो वही कलाकार उसे पूरा भी करता है. कलाकारों ने इसकी वजह बताई कि यदि किसी दूसरे कलाकार ने अधूरी मूर्ति को पूरा करने की कोशिश की तो उसकी बारीक नक्काशियों में एकरूपता नहीं रहेगी.
सुदर्शन जी इन दिनों नई दिल्ली में नये संसद भवन में स्थापित होने वाली अनेक संरचनाओं पर काम कर रहे हैं. मेरे बैकग्राउंड में आप उन संरचनाओं की झलक देख सकते हैं. मूर्तिकला की इस पराकाष्ठा को देखना मेरे लिए रोमांचकारी रहा. मेरे लिए यह भारतीय होने के वैशिष्ट्य और श्रेष्ठता बोध की गौरवपूर्ण अनुभूति है.

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