देवांशु झा : भुज भूकंप…विनाश से विकास तक..जीवंत रिपोर्ताज

पिछले दिनों श्री अतुल मालवीय जी की यह पुस्तक आई थी। मैंने पुस्तक लगभग बीस-पच्चीस दिनों पहले ही मंगवा ली थी लेकिन पढ़ नहीं सका था। अतुल सर फेसबुक के मेरे पुराने अग्रज फ्रेंड हैं। उनका अयाचित स्नेह मुझे सदैव मिलता रहा है। भुज में आए प्रलयंकारी भूकंप के वृत्तांत दो वर्ष पहले उन्होंने फेसबुक पर लिखे थे, तभी मैंने कहा था कि यह किसी पुस्तक रूप में आए तो अच्छा।‌

अतुल सर एक सिद्धहस्त बैंकर रहे हैं और गंभीर अध्येता, लेखक भी हैं। उन्होंने पहले रवीन्द्रनाथ समेत अन्य बांग्ला कवि-लेखकों की कृतियों का अनुवाद किया है। भुज भूकंप का यह रौंगटे खड़े करने वाला वृत्तांत उनकी नयी पुस्तक है। गुजरात के कच्छ में जब विनाशकारी भूकंप आया था तब अतुल सर वहीं सिंडिकेट बैंक के शाखा प्रबंधक थे। यह उनकी भोगी देखी हुई, अश्रु-स्वेद से लिखी कथा है। इसके प्रारम्भिक पन्ने आपको विचलित कर सकते हैं। अतुल सर परम आस्थावान मनुष्य हैं। अत्यंत संस्कारनिष्ठ, देशप्रेमी परिवार से आने वाले श्री अतुल मालवीय उस भीषण भूगर्जना में सपरिवार सुरक्षित बच गए थे–कोई दैवीय कृपा ही थी।

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-श्री देवांशु झा

यह वृत्तांत 26 जनवरी 2001 की सुबह से शुरू होता है और उस विनाशलीला में असहाय अनुभव कर रहे मनुष्यों की दारुण दशा को वर्णित करता हुआ अक्खड़ जिजीविषा के साथ समाप्त होता है–कि नाश के दुख से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख! अतुल मालवीय का बड़प्पन यह है कि वे समष्टि भाव में जीने वाले मनुष्य हैं। आधुनिक विश्व सभ्यता के सबसे भयावह भूकंपों में से एक को झेलते हुए, जहां क्षणों के क्षण में मृत्यु अपनी जिह्वा लहराती हुई जनमात्र को लील रही थी, वहां वे अपनी पत्नी और बच्ची के साथ किसी अकेली विवश वृद्धा को भी भगाए लिए जा रहे थे। भुज की धरती जब क्षत-विक्षत लाशों से पटी पड़ी थी और पूरा नगर ध्वस्त हुआ पड़ा था तब अतुल मालवीय जी कैंपों में यहां वहां दर-दर भटकते हुए, क्षुधातुर मन के साथ सहायता सेवा में जुटे हुए थे।

उन्होंने मलबे में बदल चुकी अपनी बैंक शाखा से सात आठ दिनों में ही कंप्यूटर सर्वर समेत समस्त दस्तावेज, लाॅकर्स, धनराशि बाहर निकलवा कर हजारों बेहाल ग्राहकों को एक चमत्कार से भर दिया था। वे सेना और स्थानीय प्रशासन के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते रहे। तत्कालीन सेनाध्यक्ष एस पद्मनाभन ने उन्हें Warriors Of Peace Time कहा था।

जो ऊर्जा, सकारात्मकता और मनुष्यता उनके व्यक्तित्व में दीख पड़ती है, वही इस पुस्तक की भाषा बन जाती है। सरल और घटना के साथ बहती हुई आडम्बरहीन भाषा में छोटी-छोटी घटनाओं और कथाओं के साथ वे इस वृत्तांत को पूरा करते हैं। यह एक जीवंत रिपोर्ताज भी है। जिसे पढ़ते हुए हम कई बार व्याकुल होते हैं और कई बार सोचते हैं कि मनुष्य में कोई अपराजेय शक्ति होती है। उसके बिना प्रलयंकर ध्वंस के बाद उठ खड़ा होना संभव नहीं है। वह चाहे तो क्या नहीं कर सकता। गुजरात भूकम्प की दुखद किन्तु अविस्मरणीय घटना को अपने हृदय से कलमबद्ध करने के लिए मैं अतुल सर का आभारी हूॅं।

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