कौशल सिखौला : आज इमरजेंसी का अर्थ भ्रष्टाचार, देशद्रोही संगठनो के खिलाफ खड़े होना किसी पार्टी का चुनाव जीतना.. सेक्युलरिज्म का बिल्ला उतर जाता…

कल इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में लगाई गई इमरजेंसी की वर्षगांठ थी । भाजपा ने तो इस दिन को राजनीतिक रूप से विरोध करते हुए मनाया , कांग्रेस सत्ता वापसी की तैयारियां करती रही । आश्चर्य तब हुआ जब एक भी विरोधी दल का बयान नहीं पढ़ा । जबकि इंदिरा गांधी ने इन सभी दलों के नेताओं को 19 महीनों तक जेलों में ठूंस दिया था।

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इन सभी पार्टियों का जन्म भी कांग्रेस के दमनचक्र से जूझते हुए हुआ था । आपातकाल की बरसी पर ये सभी दल कांग्रेस के साथ गठबंधन की तैयारियां करते नजर आए । खैर , राजनीति चरम पर है , मोदी को हराना है तो इतने समझौते तो करने पड़ेंगे । वैसे चले तो भाजपा के साथ भी जाएं , पहले भी गए थे , परंतु सेक्युलरिज्म का बिल्ला उतर जाता है।

जब इमरजेंसी लगी तब भी हम एक दैनिक के लिए पत्रकारिता कर रहे थे । पर छोटे शहरों में सेंसरशिप का प्रभाव नहीं था , मालिकों और संपादकों पर था । उस दौर की पाबंदियों और जंजीरों की जानकारियां तब देर सबेर मिल ही जाती थी । चूंकि अखबारों के दफ्तरों पर पहरे थे , खबरों पर सेंसरशिप थी , कईं अखबारों की बिजली काट दी गई थी , पत्रकारों को जेलों में डाला जा रहा था , अतः मुश्किलें बहुत थी।

बावजूद इसके खबरें लोगों तक पहुंच पा रही थी । साथ साथ अफवाहें भी खूब फैल रही थी । इंदिरा , संजय से लेकर विद्याचरण शुक्ल तक के तमाम किस्से कुलदीप नैय्यर की पुस्तक किस्सा कुर्सी का में दर्ज हैं । अलबत्ता इमरजेंसी का काला अध्याय यह भी है कि खुशवंत सिंह जैसे पत्रकार इंदिरा के साथ खड़े हो गए थे । जबकि इंडियन एक्सप्रैस ग्रुप सबसे बड़ा शिकार बना था । हिंदुस्तान ग्रुप आपातकाल के मजे लूट रहा था।

आश्चर्य होता है कि वर्तमान मोदी सरकार की तुलना एक लॉबी अघोषित इमरजेंसी से करती है । इस लॉबी में वही लोग या उनके वंशज शामिल हैं , जिन्होंने इमरजेंसी थोपने में अहम भूमिका निभाई थी । कहां है आज की सरकार का आपातकाल ? मतलब यदि कोई पार्टी चुनाव जीतती है तो क्या यह आपातकाल है ? क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करना इमरजेंसी लगाना है ? या फिर हिन्दुत्व की बात करना सरकार का आपातकाल है?

क्या तीन तलाक़ हटाना , 370 हटाना , कश्मीर में शांति लाना, आतंकवाद पर रोक लगाना , देशद्रोही संगठनों पर एक्शन में आना आपातकाल है ? क्या सरकार टीवी चैनलों को या मीडिया को अपने इशारों पर चलाती है ? क्या देश की जनता बिकाऊ है जो बार बार बीजेपी को सत्ता में ला रही है ? विदेशों में देश का सम्मान बढ़ाना और देश रक्षा का सामान जुटाना आपातकाल है ? बताइए कि कहां लगा है अघोषित आपातकाल?

इमरजेंसी या आपातकाल का दर्द जानना है तो उन लोगों से मिलिए , जिन्होंने इसे भोगा । उन हजारों लोगों से पूछिए जिनकी जबरदस्ती नसबंदी कर दी गई थी । उन अधिकारियों और बाबुओं से पूछिए जिन्हें नसबंदी का साप्ताहिक कोटा किसी भी तरह पूरा करना पड़ता था । तुर्कमान गेट के उन हजारों मुस्लिम भाइयों से पूछिए जिनके आशियाने और दुकानें रातों रात उजाड़ दिए गए थे । आज की खुशहाली को अघोषित आपातकाल मत बताइए । आप जानते ही नहीं कि आपातकाल होता क्या है ?

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