मोदी इफेक्ट…सत्ता की खातिर या दिल से…लाल सलाम वाले भी कहेंगे जय श्री राम..? बेबाक / अशोक तिवारी
प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा ने भारतीय राजनीति की परिभाषा राम मंदिर भूमि पूजन के साथ ही पूरी तरह से बदलकर रख दी है।
5 अगस्त को जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की शिला रखने के साथ ही भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ गया जब इसके बाद से ही विपक्षी नेता भी राम में मग्न नजर आए। कुछ अरसे पूर्व तक इस मुद्दे से दूरी बनाने वाले या कन्नी काटने वाले नेता भी राम को अब अपना बनाकर वोटों की आस लगाए हैं।
मुसीबत आने पर इंसान है भगवान को याद कर उसके चरणों में सिर झुकाकर दंडवत हो जाता है। अब इंसान तो क्या देश की वे राजनीतिक पार्टियां जो भगवान को गालियां देने में,ईश्वर के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े करती थी, वे राजनीतिक पार्टियां भी ईश्वर के सामने नतमस्तक हो रहीं हैं। श्रीराम अब देश की सभी पार्टियों के एजेंडे में है। इसी कड़ी में भाकपा भी शामिल हो गई है।
अब भगवान श्रीराम की शरण में केरल के कम्युनिस्ट भी आ गये हैं।मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भाकपा ने अपना फोकस बदलते हुए राम और रामायण पर ऑनलाइन संवाद की श्रृंखला आरंभ की है। कहा जा रहा है कि राजनीतिक लड़ाई को मजबूती देने के लिए दक्षिणपंथी संगठनों का भाजपा के प्रति ये हथियार है।
उल्लेखनीय है कि अपने फेसबुक पेज पर सात दिवसीय ऑनलाइन संवाद की शुरूआत cpi केरल मलप्पुरम की जिला कमेटी ने की है। इसमें श्रीराम और रामायण पर पार्टी के राज्य स्तर के नेता और पदाधिकारी चर्चा कर रहे हैं। “रामायण और भारतीय विरासत” के टाइटल के साथ शुरुआत हुई इस संवाद श्रृंखला में पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेताओं ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। 25 जुलाई को शुरू हुई इस चर्चा का समापन 30 जुलाई को किया गया।
राजनीतिक दलों को ,राम हमारी संस्कृति और आस्था के प्रतीक हैं और भारत वर्ष के राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं ,ऐसा प्रतीत होता दिख रहा है ।ऐसा कहा जा सकता है क्योंकि हमारे हिन्दू समाज ने इन दलों को विवश कर दिया है ऐसा मानने के लिये।
दिखावा नहीं हार्दिक परिवर्तन होना चाहिए,राजनीतिक लाभ मात्र के लिए नहीं वरन समाज और राष्ट्रहित में वास्तविक वैचारिक परिवर्तन होना चाहिए इन दलों की सोच में।
समाज सब समझता है।