राजनीतिक धर्म का पहला उपदेश है..”हर कोई जीतनेवाले से प्रेम करता है।”…राजनीति / अरविंद पांडे
एक बड़ा वर्ग इस सारे घटनाक्रम को लेकर भीतर से आन्दोलित है कि कहां रोजगार, कृषि, शिक्षा को लेकर बात होनी थी और हो क्या रहा है?

पवित्र सावन मास जिसका हर दिन भोलेनाथ का रहता है क्या नारी, क्या पुरुष, क्या व्यापारी, क्या राजनीति के खिलाडी सब के सब भोले की भक्ति कर उनकी कृपा प्राप्त करने में लीनरहते है लेकिन प्रदेश की राजनीति के भोले-सीधे त्रिभुनेसवर जो हमेशा शांत रहते है,इन दिनों नाराज चल रहे है और इस नाराजगी के बीच भगवान गणेश की भक्ति का दिन माने जाने वाले बुधवार को त्रिभुनेश्वर का त्रिनेत्र ऐसा लाल हुआ कि उनकी नाराजगी का कारण बने और अपने क्रोध से मानसूनी ठंडी हवाओं सी शांत पड़ी प्रदेश की राजनीति को ज्वालामुखी बना देने वाले बृहस्पति को शांत होना पड़ गया।
पूरे देश में कांग्रेस अस्थिर है, इसके बाह्य कारण भी हैं लेकिन छत्तीसगढ़ मे कांग्रेस खुद डिस्टर्ब हो गई है।
सावन के शिव भक्ति वाले महीने मे बृहस्पति जी को क्या पड़ी थी कि भोले से उलझ गये। परिणाम ये हुआ कि राजनीति गर्मा गई। फलस्वरूप हमेशा राम का लेने वाले वाले भी कमल भक्ति की तैयारी मे लग गये।
सभा मे भी हंगामा और ऐसे में त्रिभुनेश्वर का तीसरा नेत्र लाल हुआ तो सभा भी सन्न रह गई। गुरु बृहस्पति को भी शांत होना पड़ गया और तीन दिन तक चल रहा राजनीतिक घटनाक्रम ठंडा हो गया। हालांकि चुनाव को अभी ढाई बरस है,सो जो भी हुआ और आगे जो भी होगा उसमे कही ना कही ढाई साल वाले फार्मूले की हवा का असर तो जरुर रहेगा।
राजनीति विश्लेषक इसे शांत हुआ तूफान नही मान रहे। उनका मानना है कि भले ही बृहस्पति शांत हो गये हैं लेकिन जो बयान उनका अखबारो मे आया उसमें कही न कही राख के ढेर में छिपी हुई चिंगारी की तपिश भी स्पष्ट रूप से आने वाले समय में प्रदेश कांग्रेस की राजनीति को तपायेगी।सारे घटना क्रम में भूपेश बघेल की सक्रिय उपस्थिति साफ दिखाई पड़ती है।
एक बड़ा वर्ग इस सारे घटनाक्रम को लेकर भीतर से आन्दोलित है कि कहां रोजगार, कृषि, शिक्षा को लेकर बात होनी थी और हो क्या रहा है?
अगर आप सोफे पर बैठ कर राजनीति का मजा उठानेवालों में से एक हैं, तो आपको अंतरात्मा को लेकर कोई भी बहस महज सैद्धांतिक मालूम पड़ेगी। लेकिन यह जो हुआ है, बहस मूल्यों के संदर्भ में है। क्या सिर्फ पद पर बनें रहना ही जीवन की प्राथमिकताएं हैं! एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो कह रहा है कि चूक गए भोले।
जीवन की तरह ही राजनीतिक जीवन हमेशा सिर्फ स्याह या सफेद नहीं होता। राजनीति के खेल में ऐसी स्थितियां भी आती हैं, जब पद आपके पास नहीं हो तब भी गगनभेदी नाटकीय जयजयकार के बीच मैदान पर टिके रहने का पूरा अधिकार होता है।
अंतिम बात..राजनीतिक धर्म का पहला उपदेश है..”हर कोई जीतनेवाले से प्रेम करता है।”
