आयुर्वेद रोग का समूल निदान करती है.. एलोपैथी रोग के लक्षण पर काम करती है..

विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति को लेकर वैश्विक परिदृश्य में विवाद लगातार जारी है।  श्रीविष्णु के अवतार माने जाने धन्वंतरि जिन्हें चिकित्सा जगत का देवता कहा जाता है। धन्वंतरि जहां भारतीय संस्कृति के चिकित्सा जगत के देवता हैं और इसी संस्कृति में चरक संहिता का नाम भी मुख्य है। इसके अंतर्गत मानव शरीर के अनेकों रोगों और उनके रोकथाम सहित चिकित्सा की पद्धति मौजूद हैं। वहीं आयुर्वेद में एक नाम महर्षि सुश्रुत का भी है जिन्हें शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है। इनको लेकर मान्यता है कि ,आज की एलोपैथी तकनीकों से  भिन्न सुश्रुत ने 2,500 वर्ष पहले ही प्लास्टिक सर्जरी कर ली थी। योग को भी धन्वंतरि द्वारा सृजित आयुर्वेद के ही एक अंग के रूप में  विशेष वैश्विक सम्मान प्राप्त है, जिसके लिए महर्षि पतंजलि का विशेष योगदान रहा है। योग से आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति को नई ऊंचाई मिली। 

क्सर कई लेखों के माध्यम से पाश्चात्य संस्कृति द्वारा अपनाई गई एलोपैथी की चिकित्सा पद्धति की हमेशा ही आयुर्वेद के साथ तुलना कर आयुर्वेद को तुच्छ दिखाने का प्रयास किया जाता हैं। ये तय है कि  भारतीय संस्कृति में आयुर्वेद का योगदान एलोपैथी से कहीं अधिक है। फिर भी आयुर्वेद को हीनता की दृष्टि से देखना और इनसे संबंधित डॉक्टरों का अपमान करना एलोपैथी चिकित्सकों का , स्वभाव बन गया है, जिसके खिलाफ आवाज कोई नहीं उठाता।
कुछ समय से योग गुरु स्वामी रामदेव ने आयुर्वेद और योग के प्रति एक नई आस्था समूचे देश में जगाई है। आयुर्वेद से घृणा करने वाले वामपंथी अब एक बयान को लेकर रामदेव के सहारे आयुर्वेद के प्रति अपनी कुंठा प्रकट कर रहे हैं। 

ये सच है कि कोरोना काल में एलोपैथी के जरिए महामारी का युद्ध सहज ढंग से लड़ा जा रहा है, परंतु इस दौरान लोग अपनी इम्मयुनटी बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक नुस्खे अपनाकर भी ठीक हो रहे हैं। यही कारण है कि भारत में मृत्यु दर अन्य देशों की तुलना में बहुत ही कम है। 
ऐसे में ये बकवास ही होगा कि आयुर्वेद कहीं से भी एलोपैथी से कमतर या व्यर्थ है, क्योंकि धन्वंतरि द्वारा सृजित आयुर्वेद का डंका विश्व में उस वक्त से है, जब एलोपैथी का कोई अस्तित्व तक नहीं था। इसके बावजूद सारी दिक्कत केवल इस बात से है कि आयुर्वेद की उत्पत्ति के साथ भारतीय संस्कृति का जुड़ाव है।


आयुर्वेद को लेकर सबसे बड़ा प्लस पॉइंट ये है कि इसके इलाज़ में कोई नकारात्मक परिणाम नजर नहीं आते हैं, जो इसे चिकित्सा की सर्वोत्तम पद्धति का दर्जा प्रदान करते हैं, लेकिन वर्तमान परिवेश में आयुर्वेद को लेकर अनेकों भ्रमजाल फैलाया जा रहा हैं।

आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए एक अलग आयुष मंत्रालय भारत सरकार चला रही है। इसके तहत आयुर्वेद के फायदों को अधिकतम लोगों तक पहुंचाने और रोगों को जड़ से खत्म करने का अभियान चल रहा है। धन्वंतरि ऋषि द्वारा सृजित आयुर्वेद का मुख्य पक्ष ये है कि मरीज़ की पीड़ा का समूल समाधान खोजकर है, उस रोग को जड़ से खत्म करने की क्षमता रखता है, जबकि एलोपैथी केवल लक्षणों के आधार पर काम करने वाली  है। इसमें कोई शक नहीं है कि अब विदेशों में एलोपैथी से लोगों का मोहभंग हो रहा है और अब योग से लेकर आयुर्वेद तक की लोकप्रियता विदेशों में बढ़ रही है।

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