कंगन की चमक संग पवारी झटके..
कुशासन से 2 तरह की प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। कुशासन यानि कुश के आसन में बैठकर किया गया जप सिद्धि दिलाता है, कुशा हर यज्ञ के पहले हाथ की कनिष्ठा उंगली में धारण किया जाता है। कुशा से ही आया शब्द है कुशाग्र। किसी को वास्तव में तारीफ के साथ संबोधित किया जाता है तो कहा जाता है कि फलाना कुशाग्र बुद्धि का है।
दूसरे कुशासन से जनाक्रोश का सामना करना पड़ता है। कुशासन क्षणिक सफलता दिलाता है और इसमें किसी की निंदा करने के लिए कहा जाता है कि फलाना बेहद तेज है या चतुर है।
देश,प्रदेश, आंचलिक सभी स्तर पर इन्हीं आसनों को लेकर राजनीतिक दलों के बीच टकराव होता है। टकराव का यह प्रपंच ग्रामस्तर तक प्रभाव डालता है।
एक-दूसरे पर तंज, सवाल और प्रपंच के बीच आम आदमी हाशिये पर पड़ा यह सब देखकर ही भौचक रहता है।
विपक्ष की स्थिति बस बोलने के लिए बोलने की है।सार्थकता भरी बातें विपक्ष भूल चुका है। मुँह में बहुत ज्यादा भोजन भर लिया जाए तो न तो इसे निगला जा सकता है, न चबाया जा सकता है और अंतिम विकल्प सब मुँह से बाहर फेंक देने-उगल देने का ही रह जाता है और यही हो भी रहा है।
राजनीति के हिसाब से हरामखोर का मतलब नाटी और बेईमान होता है। कल हो सकता है कि कोई किसी को भी माँ-बहन की गाली देने के बाद खेद जताने के स्थान पर कहे कि हमारे यहां इसका मतलब ऐसा होता है।
कंगन पहनकर सामने से जवाब देना और चूड़ी पहनकर पीठ पर वार करने खेल में साथ जुड़े लोग भी कंगन की चमक के आगे नतमस्तक हो गए हैं और उखाड़ने वाले को ही पूरे Power से पवारी झटके दे रहे हैं।
