प्रह्लाद सबनानी : भारत में बेरोजगारी के घट रहें हैं आंकड़े…
भारतीय सनातनी वेदों एवं ग्रंथो में इस बात के कई प्रमाण मिलते हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि भारत सदैव ही आर्थिक रूप से सम्पन्न देश रहा है एवं भारत के समस्त नागरिकों के लिए रोजगार के भरपूर अवसर उपलब्ध रहे हैं।
मुद्रा स्फीति, आय की असमानता, बेरोजगारी एवं ऋण के भारी बोझ के तले दबे रहना जैसे शब्दों का तो प्राचीन भारत के आर्थिक इतिहास में वर्णन नहीं के बराबर मिलता है। भारत के समस्त नागरिकों की पर्याप्त मात्रा में आय होती थी जिससे वह अपने परिवार का आसानी से गुजर बसर कर पाते थे एवं समाज में समस्त नागरिक प्रसन्नता पूर्वक रहते थे। दरअसल प्राचीन भारत के उस खंडकाल में नागरिकों में उद्यमशीलता अपने चरम पर थी। परिवार के जमे जमाए व्यवसाय पीढ़ी दर पीढ़ी सफलतापूर्वक आगे चलते रहते थे एवं परिवार के सदस्यों के आय अर्जन का मुख स्त्रोत बने रहते थे। इस दृष्टि से नागरिकों को सामान्यतः नौकरी के लिए परिवार के पारम्परिक व्यवसाय के बाहर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। इस प्रकार उस खंडकाल में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न ही नहीं होती थी।
भारत पर आक्रांताओं के आक्रमण एवं इसके तुरंत बाद अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय नागरिकों की उद्यमशीलता को समाप्त कर उनमें नौकरी करने की भावना को विकसित किया गया क्योंकि अंग्रेजों को अपने शासन को सुचारू रूप से संचालन के लिए नौकरों की आवश्यकता थी। अंग्रेजों के शासनकाल में भारत की शिक्षा पद्धति को भी कुछ इस प्रकार से परिवर्तित किया गया कि भारतीय नागरिक अपनी पढ़ाई समाप्त करने के पश्चात अंग्रेजों के संस्थानों में केवल नौकरी कर सके। दीर्घकाल में इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय नागरिक केवल नौकरी को ही रोजगार का साधन मानने लगे और उन्हें यदि नौकरी नहीं मिल पाती तो वे अपने आप को बेरोजगार मानने लगे। भारतीय नागरिकों में उद्यमशीलता तो जैसे समाप्त ही हो गई थी। परंतु, पिछले लगभग 10 वर्षों के दौरान भारतीय नागरिकों में उद्यमशीलता को पुनः पैदा करने के अथक प्रयास किये गए हैं, जिनमे सफलता भी मिलती दिखाई दे रही है और भारत में अब पुनः बहुत बड़ी मात्रा में उद्यमों को स्थापित किया जा रहा है, जिससे भारतीय नागरिक अब धीरे धीरे नौकर नहीं बल्कि नौकरी देने वाले बनते जा रहे हैं।
पिछले एक दशक के दौरान केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों ने भारतीय नागरिकों को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कई नई योजनाएं प्रारम्भ की हैं। वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) प्रारम्भ की गई थी। इस योजना को प्रारम्भ करने का मुख्य उद्देश्य देश के युवाओं को सुरक्षित बेहतर आजीविका प्राप्त करने के लिए उद्योग-प्रासंगिक कौशल प्रशिक्षण लेने में सक्षम बनाना था। वर्ष 2016 में स्टार्ट-अप इंडिया योजना देश में लागू की गई थी। इस योजना को लागू करने का मुख्य उद्देश्य एक ऐसा तंत्र विकसित करना था, जो पूरे देश में उद्यमिता का पोषण और प्रचार करता हो। वर्ष 2016 में ही स्टैंड अप इंडिया योजना प्रारम्भ की गई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य महिलाओं और एससी/एसटी उधारकर्ताओं को 10 लाख रुपये तक के बैंक ऋण की सुविधा तथा ग्रीनफील्ड उद्यम स्थापित करने के लिए 1 करोड़ रु. तक का ऋण प्रदान करना था। इसके पूर्व, वर्ष 2014 में राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन की स्थापना ‘कौशल भारत’ एजेंडे को ‘मिशन मोड’ में चलाने के लिए की गई थी ताकि मौजूदा कौशल प्रशिक्षण पहलों को एकजुट किया जा सके