UPA सरकार के भ्रष्टाचार और गलत नीतियों से बैंकों के NPA बढ़े: रघुराम राजन
रघुराम राजन ने ‘द प्रिंट’ के कार्यक्रम में बताया कि एक वक्त था जब बैंकर्स आंत्रप्रेन्योर्स के पीछे पड़े रहते थे, पूछते थे कि कितना लोन चाहिए. एक बार भ्रष्टाचार के चलते जब ये प्रोजेक्ट फंस जाते थे, तो यही कर्ज NPA हो जाता था.

अक्सर सुनते हैं कि बैंकों ने लाखों करोड़ रुपये का NPA यानी डूबा हुआ कर्ज माफ कर दिया. सोशल मीडिया पर आए दिन इस तरह की खबरें या ग्राफिक चलते रहते हैं. मगर ज्यादातर लोगों को ये नहीं पता होता कि आखिर कोई कर्ज NPA बनता कैसे है, कैसे हजारों करोड़ रुपये का कर्ज डूब जाता है.
कर्ज के NPA बनने की प्रक्रिया और कैसे सरकार का भ्रष्टाचार इसके लिए जिम्मेदार है, इसे RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने ‘दि प्रिंट’ के इंटरव्यू में कही है.
रघुराम राजन ने बताया, ‘UPA सरकार के भ्रष्टाचार और गलत नीतियों से बैंकों के पास खराब लोन (NPA) जमा हुए. मैंने अगस्त 2013 में गवर्नर बनने के बाद इस समस्या से निपटना शुरू किया, इसमें तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भी पूरा साथ दिया.’
दिप्रिंट के कार्यक्रम में RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा, ‘भारत में ग्लोबल फाइनेंशियल संकट के अलावा भ्रष्टाचार भी एक समस्या थी. इससे प्रोजेक्ट्स को मंजूरी मिलने में देरी होती थी, प्रोजेक्ट्स को जमीन नहीं मिलती थी. पर्यावरण विभाग की मंजूरी नहीं मिलती थी और इन कारणों से प्रोजेक्ट अटक जाते थे और इससे फाइनेंशियल सिस्टम में NPA बढ़ जाता था.’
रघुराम राजन ने बताया कि 2008 के ग्लोबल फाइनेंशियल संकट से पहले बैंक खुलकर लोन बांटते थे. वो इसके लिए पर्याप्त ड्यू डिलिजेंस भी नहीं करते थे. मगर ग्लोबल फाइनेंशियल संकट के बाद स्थिति कुछ बिगड़ी और रही सही कसर सरकार की गलत नीतियों ने पूरी कर दी. उन्होंने कहा, ‘एक वक्त था जब बैंकर्स आंत्रप्रेन्योर्स के पीछे पड़े रहते थे, पूछते थे कि कितना लोन चाहिए. एक बार जब प्रोजेक्ट फंस जाता है तो यही कर्ज NPA हो जाता था. मुझसे पहले जो RBI गवर्नर थे उन्होंने NPA हुए लोन के लिए मोरेटोरियम की शुरुआत की. इसका परिणाम ये हुआ कि बैंकों के पास बहुत सारा NPA इकट्ठा हो गया, जिसे वो मोरेटोरियम के चलते NPA भी नहीं मान रहे थे. लेकिन ये मोरेटोरियम 2014 में मेरे गवर्नर बनने के साथ खत्म हो गया था. मुझे लगता था कि NPA को टालने से आगे चलकर और दिक्कत होगी, इसे साफ करना होगा. इसके बाद हमने बैंकों की एसेट क्वालिटी की समीक्षा शुरू की. इसके लिए हम हर बैंक के बही-खातों की पड़ताल शुरू की. इसके बाद बहुत सारे NPAs का पता चला, जिन्हें हमने जानबूझकर NPA करार नहीं देने की नीति बना रखी थी.’
रघुराम राजन ने NPA की समस्या से निपटने में तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली की भी भूरी-भूरी प्रशंसा की. उन्होंने कहा, ‘NPAs की पहचान करना बहुत जरूरी था, क्योंकि पब्लिक सेक्टर बैंकों से इकोनॉमी में जाने वाला क्रेडिट यानी कर्ज लगातार घट रहा था. ऐसा नहीं करते तो ये बैंक ज्यादा कर्ज देने की स्थिति में नहीं रहते. जब बैंक NPAs से दबे रहेंगे, वो अच्छा लोन भी नहीं दे पाएंगे. NPAs की समस्या से निपटने के लिए दो काम करना जरूरी था. पहला RBI की तरफ से NPAs की पहचान और दूसरा सरकार की ओर से बैंकों को कैपिटलाइज करना था. इसके लिए मैं तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली के पास गया, उनको स्थिति की जानकारी दी और उन्होंने कहा कि जो जरूरी हो वो कीजिए. इसके बाद हमने बैंकों के खातों की सफाई शुरू की.’
रघुराम राजन ने इस चर्चा में भी माना कि आज की तारीख में सरकारी बैंकों और फाइनेंशियल सिस्टम की स्थिति ज्यादा बेहतर है. सरकार ने बैंकों को बचाने के लिए जो फैसले लिए वे बहुत जरूरी थे.
