टीशा अग्रवाल : बाकी तो…आल इज वेल…

इंडिया में किसी को कोई रूल फॉलो नहीं करना हैं! पर जब किसी चीज़ के लिए जब कोई तय नियम नहीं होते तो उनको सबसे ज्यादा कम्प्लेन इसी बात पर करनी है कि, कोई रूल नहीं हैं?…कोई सिस्टम नहीं है…ब्ला ब्ला ब्ला!

पर जैसे ही सिस्टम बना दिया जाए तो सडनली उनका वीआईपीपन जाग्रत हो जाता है।

‘ रूल हो तो बाकी लोग्स के लिए हों, मिडिल क्लास कीड़ो मकोड़ों के लिए हों…हम क्यों रूल माने…वी आर डिफरेंट!’

हमारी सोसायटी में कुछ दिन पहले तक गाड़ी पार्किंग के लिए जाने पर गेट पर हॉर्न बजाना होता था, और वहाँ खड़े गार्ड वो गेट खोल देते थे, फिर आप पार्किंग में जाकर अपनी गाड़ी लगा लो।

अब कुछ लोग चाहे जाम में दो घण्टा फस कर आएंगे, पर सोसायटी के गेट पर हॉर्न बजने के आधे मिनट का इंतजार उनसे बर्दाश्त नहीं। क्योंकि भई गार्ड चाहे 1 मिनट के लिए गेट से कहीं दूर हो, तो चाहे वो उड़कर आए, पर उनके आते ही गेट खुलना चाहिए ही! वरना उनके साथ अभद्रता और बदतमीजी आम बात हैं।

यह सब देखकर इतना दुःख होता है कि क्या ही कहें! कोई भी इंसान अपने मज़े के लिए 12 घण्टे की ड्यूटी दस बारह हजार में नहीं करता, उसकी अपनी मजबूरियाँ होंगी तभी वो इतनी कम सेलरी में काम कर रहा हैं। पर कुछ घमंडी लोगों को हर छोटे पद का व्यक्ति उनका नोकर लगता हैं।

ख़ैर, यह सब परिस्थितियों से निपटने के लिए गाड़ियों पर स्कैनिंग कार्ड लगाए गए, ताकि गेट ऑटोमेटिक ही खुल जाए!

अब जब यह रूल बन गया कि सभी को वो कार्ड लगाना अनिवार्य हैं तो कुछ वीआईपी लोगों का वीआईपीपन फिर से जाग्रत हो गया…

‘हमारी गाड़ी खराब लगेगी…गार्ड तो सारा दिन सोता है एक गेट भी नहीं खोल सकता क्या? हम अपनी गाड़ी तो बाहर गेस्ट पार्किंग में पार्क करते हैं हम क्यों लगाएं? और भी बहुत एक्सक्यूज! ‘

एक मोहतरमा ने सुबह 4 बजे गाड़ी अंदर लाने की बात पर गार्ड से बदतमीजी करी… मारपीट टाइप जब बात बढ़ गई तो वहाँ जाकर उन्हें समझाया गया कि रूल्स बन गए हैं…तो उनका जवाब था कि बाकी लोग के लिए रूल्स बनाओ…मेरे 3 फ्लेट यहाँ मैं इतना मेंटेनेंस पे करती हूँ मेरे लिए क्यों इतने रूल्स?

अब क्या ही कहें…लोगों ने माथा पी ट लिया। बहुत समझाने पर भी उन्होंने कुछ रूल्स मानने के लिए इनकार ही किया। खैर उनको तो अब बढ़िया से जवाब दिया ही जाएगा…

यहाँ बात बस ईगो की हैं। वो बन्दा बस अपनी ड्यूटी कर रहा वह किसी को नहीं दिखता…पर वो बन्दा उन्हें सलाम करें, उनकी फालतू की रूल्स तोड़ने वाली बातों पर रिएक्ट न करें यही उससे आशा रहती हैं!

हम न्याय की बात करते हैं। नियम की बात करते हैं। क्रांति की बात करते हैं पर वो सब बस दूसरों के लिए…स्वयं के लिए नहीं!

सच यही है कि, भगतसिंह सबको चाहिए, पर पड़ोसी के घर में।

बाकी तो…आल इज वेल।

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