NRI राजीव मिश्रा : समृद्धि का सीधा संबंध स्वतंत्रता और नैतिकता से..
काशी को देखकर एक बात समझ में आई जो सिर्फ काशी नहीं, पूरे देश के लिए सत्य है…
काशी के घाटों को बेहद सुंदर बना दिया गया है. बाबा विश्वनाथ तो अपनी पूरी भव्यता से दिखाई दे रहे हैं. सड़कें भी अपेक्षाकृत अधिक चौड़ी और साफ दिखाई दे रही हैं. बाजार में मॉल्स और बड़े बड़े स्टोर्स मार्केट की संपन्नता और आर्थिक गतिविधियां दिखा रहे हैं. रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट भी अच्छे दिख रहे हैं…
पर बहुत कुछ है जो नहीं बदला है… पान की पीक की धार उतनी ही तेज है. खा पीकर पत्तल और कुल्हड़ सड़क पर फेंकने में संभवतः बहुत अंतर नहीं आया है. हां, दिन में चार बार सड़कों पर झाड़ू लग जाती है. पर लोगों की आदतों में कोई खास बदलाव नहीं आया है.
सरकारें जो बदलाव ला सकती हैं, वह बदलाव काशी में हो चुका है. इसके आगे कोई सरकार कुछ नहीं कर सकती. आगे बहुत कुछ है जो हमें ही करना है. काशी में लोगों के व्यवहार में बहुत कुछ है जो खटकता है. अगर सामने वाला जान ले कि आप बाहर से आए हैं तो ऑटो का किराया 50 से बढ़कर तीन सौ हो जायेगा, दस रुपए की चाय भी तीस रुपए की हो जायेगी. एक जगह कुल्हड़ की चाय के पचास रुपए काट लिए क्योंकि मैंने बिना पहले से रेट पूछे उसे पांच सौ का नोट दे दिया था.
काशी में आप यह अपेक्षा नहीं रख सकते कि किसी भी बिजनेस का व्यवहार हर किसी से एक समान रहेगा. काशी में विदेशी टूरिस्ट बहुत आते हैं और यह उनके साथ डील करने से पैदा हुई आदत है. भारत में ज्यादातर टूरिस्ट प्लेसेज पर यह आदत दिखाई देती है. लेकिन यह व्यवहार संपन्नता और समृद्धि नहीं देता. आप किसी से एक दिन दस की जगह तीस ले लेंगे, लेकिन इस तरह क्रेडिबिलिटी वाले बिजनेस नहीं खड़े किए जा सकते.
गोवा में यह अंतर दिखाई दिया…वहां होटल के रेट्स, खाने पीने के रेट्स, वाटर स्पोर्ट्स और एंटरटेनमेंट एक्टिविटीज के रेट्स पहले से घोषित होते हैं और भारतीय या विदेशियों के लिए एक समान होते हैं. उसका फर्क भी दिखाई देता है, गोवा अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत का अधिक पॉपुलर डेस्टिनेशन है. वहां हर चीज के रेट्स भी ऊंचे हैं, पर ठगे जाने का डर नहीं लगता. तो ऐसे में पूरे शहर को भरोसेमंद टूरिस्ट फ्रेंडली डेस्टिनेशन होने का लाभ मिलता है, ओवरऑल बिजनेस अधिक होता है.
समृद्धि का सीधा संबंध दो बातों से है.. स्वतंत्रता और नैतिकता से. सरकारें आपको इन्फ्रास्ट्रक्चर दे सकती हैं, लॉ एंड ऑर्डर दे सकती हैं, ईज ऑफ बिजनेस सुनिश्चित कर सकती हैं… लेकिन नैतिकता समाज में हर व्यक्ति का निजी विषय है. और नैतिकता के सिर्फ आध्यात्मिक ही नहीं, भौतिक रिवार्ड्स भी हैं. सरकार और राजनीतिक नेतृत्व यहां कुछ नहीं कर सकती, यह शुद्ध रूप से बौद्धिक, सामाजिक और धार्मिक नेतृत्व का दायित्व है कि समाज के नैतिक स्तर का उत्थान किया जाए.