ओमलवानिया ‘प्रोफेसर’ : PM मोदी ने चुनाव-प्रचार में इसरो के जीनियस नंबी नारायणन के मुद्दे व केसेज को क्यों शामिल किया था?
6 सितंबर 2019 की इसरो मुख्यालय बेंगलुरु की वीडियो व तस्वीर याद है। विक्रम ऑर्बिटर पर सालों की मेहनत का मनमाफिक फल न मिलने पर वैज्ञानिक निराश नजर आए।पीएम नरेंद्र मोदी जी इसरो चीफ के सिवन जी को गले लगाया था। उन्हें ढाढस बंधाया, उनके प्रयासों पर गर्व बतलाया।

27 मार्च 2019 के दिन पीएम ने अंतरिक्ष में भारत की अचीवमेंट पर देश को संबोधित करते हुए, देश को बतलाया कि भारत ने अंतरिक्ष में एंटी-सैटेलाइट मिसाइल से एक ‘लाइव’ सैटेलाइट को मार गिराकर अपना नाम अंतरिक्ष महाशक्ति के तौर पर दर्ज करा लिया है और भारत ऐसी क्षमता हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है।
पीएम मोदी इसरो के महत्व को अच्छे से समझते है तभी तो उन्होंने पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर अपने चुनाव-प्रचार में इसरो के जीनियस, तेज दिमाग नंबी नारायणन जी के मुद्दे व केसेज को शामिल किया था। कि आखिर कैसे इसरो को बर्बाद करने व रोकने के लिए उसके सोचने की शक्ति पर वार किया गया और नंबी जी को झूठे जासूसी व भ्रष्टाचार के केस में फंसाया। देश का गद्दार करार दिया गया। उनका मकसद इसरो को भटकना था। क्योंकि वहाँ दो तेज दिमाग अब्दुल कलाम साहब व नंबी जी कार्यरत थे। जो इसरो को नई ऊंचाइयां देने में जुटे थे। झूठ व प्रोपगेंडा से नंबी जी के जुनून व फोकस को तोड़ने में कामयाब रहे।
1998 में कोर्ट ने नंबी को निर्दोष पाया था। 1 लाख मुआवजे के एवज में नंबी जी सुप्रीम कोर्ट गए। इधर, भारत सरकार ने कोई पुरस्कार न दिया गया। मोदी जी ने प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद नंबी जी को केसेज में एडवांटेज मिला। 2018 में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा जी की पीठ ने नंबी जी को 1 करोड़ 30 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया और निर्दोष बतलाया।
पीएम मोदी जी नंबी जी के बड़े प्रशंसक रहे है 5 अप्रैल 2021 उनसे मुलाकात भी की और रॉकेट्री फ़िल्म के विजुअल्स देखें।
2019 में मोदी सरकार ने नंबी जी को पद्म भूषण से सम्मानित किया। जिस सम्मान को साजिशों ने ठेस पहुँचाई थी। नंबी जी को सरकार पर मानहानि केस करना चाहिए था। देशभक्त कभी भी ऐसा काम नहीं करते है जिससे देश का खराब हो।
रॉकेट्री-द नंबी इफेक्ट्स! भारतीय वैज्ञानिक और एयरोस्पेस इंजीनियर नंबी नारायणन को 2018 सीजेआई दीपक मिश्रा की बेंच ने ‘नो गिल्टी’ करार दिया।
मतलब बाई इज्जत बरी किया और मुआवजा भी दिया।
आखिर किसने 1994 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के ब्रिलियंट दिमाग को बर्बाद करने की साजिश रची और झूठे जासूसी व भ्रष्टाचार के केसेस में फंसाया?
नंबीनामा को अभिनेता आर माधवन, सुखमनी सदना और अनंत महादेवन ने कलमबद्ध किया है। कहानी जीनियस वैज्ञानिक के सफर को दिखलाती है कि भारत को सेटेलाईट मैप पर लाने के लिए माँ भारती का सपूत सबकुछ भूल बैठा और देश को आसमान में पहुँचाने में जुटा रहा। लेकिन…. लेकिन! अपने सपने में खोए लीजेंड को केरल पुलिस गिरफ्तार करके जगाती है। बस, पुलिस की हथकड़ी से सपना टूट कर बिखर जाता है। तेज दिमाग, जुनून, लगन और इमोशनल अध्याय में लिखी भारतीय वैज्ञानिक गाथा।
नंबीनामा को आर माधवन ने स्क्रीन प्ले व डायलॉग दिए है। फ़िल्म को ठेठ साइंटिफिक ट्रीटमेंट ने थोड़ा बोरिंग फील दिया है क्योंकि आम दर्शक को गूढ़ साइंस ज्ञान समझ न आएगा, इसलिए कहानी से कनेक्शन टूटता व जुड़ता रहेगा। जबकि कई सीक्वेंस में इमोशन की रेंज जितनी उभरनी चाहिए थी, दबी रही। 24 सालों से दर्द, पीड़ा, घुटन दबा रखी थी, उसे ठंग निकालने में कंजूसी कर दी। यक़ीनन, माधवन ने दिल से स्क्रिप्ट व स्क्रीन प्ले लिखा है। कहानी दिलचस्प है, अच्छी मेहनत हुई है।
लेकिन प्रोफेशनल लेखक की सख्त आवश्यकता नजर आई। क्योंकि सिनेमाई क्षेत्र में कुछ ड्रामैटिक तत्व डाले जाते है ताकि दर्शक जुड़े और कहानी के साथ चले। वरना डॉक्यूमेंट्री अहसास रह जाता है। पहला हाफ वैज्ञानिक बातों में उलझा रहा और दूसरे हाफ में कहानी दर्शकों को पकड़ती तो है लेकिन दर्शक पिछड़ जाते है। क्लाइमैक्स कुछ साथ देता है। इसमें भी गुंजाइश बची रही।
डाइलॉग भी माधवन ने लिखे है नंबीनामा को साइंटिफिक एक्यूरेट बनाने के फेर में संवाद भी स्क्रीन प्ले की भांति लिख गए है। विज्ञान के विद्यार्थी या कहे दर्शकों को अच्छे लगेंगे। आम दर्शक उबासी लेंगे। अच्छे संवाद में
‘मैंने रॉकेट्री में 35 साल बिताए है और जेल में 50 दिन, उन 50 दिनों की कीमत मेरे देश ने चुकाई ये कहानी उसकी है, मेरी नहीं’
प्रोडक्शन डिजाइन! बेहतरीन है कहानी के अनुरूप सेट, प्रॉप्स, कॉस्ट्यूम रखे गए है। वीएफएक्स ने आकर अच्छे से निखार दिया है।
संगीतकार सैम सी एस ने कहानी की डिमांड के हिसाब से बीजीएम दिया है। हर इमोशन को अंडर लाइन करता है।
सिरसा राय के नंबीनामा को शानदार तरीके से कैद किया है कई सीक्वेंस तो गज़ब बन पड़े है। जहाँ नंबी नारायणन जी को इंट्रोगेशन में थर्ड डिग्री दिया जाता।
आर माधवन! यार ये अभिनेता कितना दिल पर ले बैठा है इसरो के जीनियस ने दिल से उतार फेंका है। एक्टिंग करिश्मा से यूँ खींच लिया रे, मानो कोई बस न रह हो।
उनके हर शेड से मिले है और फील दर्शकों पर दे मारा है और बतला रहे है कि कैसे इसरो के साइंस्टिस को तड़पाया गया। उसके दिमाग को तोड़ा, उन्हें टूटने पर विवश किया गया। शारीरिक व मासिक यातनाएं दी गई। परिवार को टॉर्चर दिया, पत्नी मानसिक स्थिति में पहुँच गई। लेकिन जुनूनी व्यक्त्वि नंबी टूटे नहीं, अपनी सच्चाई के लिए लड़ते रहे और कहते कि मैं निर्दोष हूँ।
माधवन, नंबी से इस कदर जुड़ गए या कहे मिलने निकल गए। कि उन्होंने नंबीनामा को दूसरे लेखकों के साथ शेयर न किया। कुछ हिस्सा ही रखा दूसरों के लिए, क्योंकि मेडी चाहते थे। लीजेंड की कहानी उसी स्वरूप में बाहर निकले, जैसी है। इसका मर्म बना रहे। तभी तो निर्देशन भी खुदके पास रखा। माधवन इतना गहरा उतर गए, कुछ सिनेमाई बुनियादी बातें भी नजरअंदाज कर बैठे। अक्सर ऐसा होता है। निर्देशन अच्छा रहा है।
सिमरन ने मीना नारायणन को पर्दे पर जिया है हाव-भाव में अच्छा तालमेल दिखलाया है।
रंजीत कपूर ने विक्रम सारा भाई को लेकर निकले है। अच्छे से अपने किरदार को पकड़ा है लेकिन मेरे दिमाग में ईश्वक सिंह कैद हुए पड़े थे। तुलना करने बैठ गया।
बैडमैन यानी गुलशन ग्रोवर ने भारत रत्न वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मिलने आए है। दिल से कहूँ, गुलशन अब प्रभावी नहीं है एक ही फॉर्मेट में किरदारों से मिलकर निकल जाते है।
बाक़ी किरदारों ने अच्छा किया है।
शाहरुख खान कैमियो में नजर आए है। नंबी नारायणन का इंटरव्यू लेते है। इतने स्क्रीन प्रिजेंस में ठीक लगे है। ढाई-तीन घण्टे झेलना कतई भारी है।
एडिटिंग टेबल पर ब्रिजित बाला सुस्त रहे, कैंची रखकर सोते रहे। इसे बेहतर किया जा सकता था। लेंथ में कैंची चलाने से ज्यादा इफ़ेक्ट दिया जाता तो बढ़िया रहता।
सोचनीय प्रश्न है नंबी को इसरो से दूर रखकर भारत को कितना पीछे धकेला गया। इनके 24 वर्ष कोर्ट के चक्कर में बीत गए, वे भारत को अंतरिक्ष में स्थापित करने में लगने चाहिए थे। कोर्ट ने 1998 में निर्दोष साबित कर दिया था और मुआवजा भी दिया। लेकिन इस कम्पनशेषन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और इसका फ़ैसला 2018 में आया।
महान वैज्ञानिक और माँ भारती के सच्चे सपूत की दास्तां सभी ने सुननी व देखनी चाहिए। वाक़ई माधवन साहब 40 दिन में मजाक बनाता है फ़िल्में नहीं, पहली फ़िल्म में इतनी कमियां नजरअंदाज की जा सकती है। इसे छोड़ना मतलब ईको सिस्टम के घिनौने कृत्य से अनजान रहना।
-साभार


